खैर हिंदुओं को अब कोई फरक नहीं पड़ता क्योंकि उनकी बुद्धि पर वेस्टरनाइजेशन और मॉडर्नाइजेशन के बड़े बड़े ताले पड़े हैं। पर एक प्रश्न सभी अपने आप से जरूर करें की यदि ऐसे ही किसी अन्य मजहब या पंथ पर फिल्म बनती तो क्या होता? किसी डायरेक्टर प्रोड्यूसर ने अपनी मां का दूध पिया है तो बनाके बताए
हिंदू इतना सहिष्णु है, इतना सेकुलर है की वो अपने देवी देवताओं का, अपने धर्म का, अपनी परंपराओं का जितना चाहे अपमान सह सकता है।
हिंदू संगठन भी इतने सारे इतने बड़े बड़े हैं लेकिन एक फिल्म तक रिलीज होने से रुकवा नहीं पाते भले ही उसमें उस हिंदू धर्म का जमकर अपमान हुवा हो जिसका झंडा लेकर वो अपनी दुकानें चलाते हैं।
हिन्दुओं यदि जरा सी भी शर्म बची है, यदि 1 प्रतिशत भी अपने आप को हिंदू मानते या समझते हो तो हिंदू धर्म के विरुद्ध उठने वाले कदम, मुंह, उंगली का कम से कम थोड़ा सा विरोध तो करो...