कैलाश मंदिर, महाराष्ट्र
ये कैलाश मंदिर जिसके आश्चर्यों को मिटाने के लिए दुनियाँ के सात झूठे आश्चर्यों की लिस्ट तैयार की गई।
जब यह भूखी नंगी दुनियाँ आदमखोरों और लुटेरों की जिंदगी जी रही थी तब हमारे पूर्वजों ने एक पहाड़ को काटकर इस मंदिर का निर्माण कर पूरी दुनियाँ को हैरान कर दिया था।
अपने आप में अद्वितीय इस मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण (प्रथम) ने करावाया था।
इसका निर्माण के लिए पहाड़ से 40000 हजार टन पत्थर काट कर निकाले गएम एक अनुमान के मुताबिक अगर 7000 कारीगर प्रतिदिन मेहनत करें तो लगभग 150 वर्षों में इस मंदिर का निर्माण कर सकेंगे, लेकिन इस मंदिर का निर्माण केवल 18 वर्षों में ही कर लिया गया। जरा सोचिए आधुनिक क्रेन और पत्थरों को काटने वाली बड़ी बड़ी मशीनों की गैर मौजूदगी में ऐसे कौन से उपकरणों का इस्तेमाल किया गया जिनकी वजह से मंदिर निर्माण में इतना कम समय लगा।
जहाँ दुनियाँ के सारे निर्माण नीचे से ऊपर की ओर पत्थरों को जोड़कर किये गए हैं वहीं इस मंदिर को बनाने के लिए एक विशाल पर्वत को ऊपर से नीचे की ओर काटा गया है।
आधुनिक समय में एक बिल्डिंग के निर्माण में भी 3D डिजाइन साफ्टवेयर, CAD साफ्टवेयर, और सैकड़ो ड्राइंग्स की मदद से उसके छोटे मॉडल्स बनाकर रिसर्च की जरूरत होती है फिर उस समय हमारे पूर्वजों ने इस मंदिर का निर्माण कैसे सुनिश्चित किया होगा?
हैरान करने वाली बात है कि पर्वत को काटकर निकाले गए लगभग 40000 टन पत्थर आसपास के 50KM के इलाके में भी कहीं नहीं मिलते, आखिर इतनी भारी मात्रा में निकाले गए पत्थरों को किसकी सहायता से और कितनी दूर हटाया गया होगा।
जरूरी स्थानों पर खंभे, दो निर्माणों के बीच में पुल, मंदिर टावर, महीन डिजाइन वाली खूबसूरत छज्जे, गुप्त अंडरग्राउंड रास्ते, मंदिरों में जाने के लिए सीढ़ियां और पानी को स्टोर करने के लिए नालियाँ, इन सभी का ध्यान पर्वत को ऊपर से नीचे की ओर काटते हुए कैसे रखा गया होगा?
इस निर्माण को आप कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि जैसे एक मूर्तिकार एक पत्थर को तराशकर मूर्ति का निर्माण करता है वैसे ही हमारे पूर्वजों ने एक पर्वत को तराशकर ही इस मंदिर का निर्माण कर दिया गया।
एक तरफ जहाँ दुनियाँ के छोटी छोटी इमारतें भी एक वेस्टर्न प्रोपगैंडा के तहत प्रसिद्धि प्राप्त कर चुकी हैं वहीं हमारी महान विरासतें सनातन विरोधी षड्यंत्रो में कांग्रेसी शासकों और वामपंथी इतिहासकारों की मिलीभगत से भारत में भी पहचान नहीं बना सकीं।
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