भूमि रेलवे की, मंदिर हिन्दुओं का, अतिक्रमण समुदाय विशेष का। विधिक सूचना देने के उपरांत विध्वंसक कार्रवाई आरंभ हुई। भूमि को अतिक्रमण मुक्त किया गया ताकि रेलवे अपने पटरियों का विस्तार कर सके। अजीत भारती जी के ट्विटर से
सुप्रीम कोर्ट ने दस दिनों की रोक लगा दी। प्रशासन, पुलिस और रेलवे के दलों ने सर्वेक्षण के बाद ‘नई बस्ती’ को तोड़ने का निर्णय लिया था। लगभग दो सौ घर थे जो तोड़े गए।
‘नई बस्ती’ एक अतिक्रमण मॉडल है समुदाय विशेष द्वारा जो आपको हर रेलवे स्टेशन से सटे स्लम में दिख जाएगा। मथुरा में वंदे भारत के परिचालन हेतु ब्रॉड गेज पटरी बिछानी है। हर रेलवे स्टेशन के आस-पास रेलवे बड़ी भूमि भविष्य के विस्तारीकरण हेतु रखती है।
जब तक नया प्रोजेक्ट नहीं आता, तब तक वो रिक्त होती है जिस पर समुदाय विशेष अपनी पैतृक संपत्ति समझ कर पन्नी, फ्लैक्स से होते हुए पक्के मकान बना लेता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस अतिक्रमण मॉडल को बढ़ावा देने हेतु अपने पूर्व के एक आदेश में इन अतिक्रमण करने वालों को प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम से किसी नियत स्थान पर भूमि और आवास देने के लिए जिलाधीश को निर्देशित किया था।
ये डेमोग्रफी बदलने का उत्तम मार्ग है। कहीं से भी आ कर वैसी जगह बसो जहाँ जनसंख्या कम है, फिर मानवता की बात कर के, कोर्ट के माध्यम से अवैध को वैध बनवा लो। रेलवे के पास अवैध बस्ती सुरक्षा की दृष्टि से भी उचित नहीं है। रेलवे के वकील क्या कर रहे हैं, पता नहीं।
यदि वो बाहर से आए हैं, तो उन्हें उनके अपने राज्यों में उन्हीं जगहों पर बसाया जाए, जहाँ के वो निवासी थे। किसी भी राज्य में किसी भी समुदाय के प्रति किसी भी प्रकार के उत्पीड़न की समस्या जब नहीं है तो ये अतिक्रमण मॉडल क्यों?