. #शुभ_रात्रि
सारा संसार ईश्वर का रूप है और उस पर जलधारा सावन मास में हो रही है| प्रकृति इस धरती को अभिषेक कर रही है; जल चढ़ा रही है | इसी की नक़ल हम भी करते हैं, सावन में हम भी थोड़ा सा जल चढ़ा देते हैं शिव जी के ऊपर | और अपने आप को कृतार्थ समझते हैं कि हम भी ईश्वर के हैं | इसी कृत्य के साथ जुड़ गए, बस यही है ! हर महीने का कुछ न कुछ, जैसे ज्येष्ठ का कुछ है, फिर सावन का कुछ है, फिर आगे हम कहते हैं कार्तिक मास बड़ा विशेष है, तो कौन सा मास ऐसा है बताओ न, जहाँ पर कोई त्यौहार नहीं हो हिंदुस्तान में ? सावन-भादव में बारिश होती है, गर्मी से शीतलता मिलती है लोगों को | ऐसे ही मन की जो दुःख है, पीड़ा है, समस्याएँ हैं ; ज्ञान का श्रवण करने से, मन को शीतलता पहुंचती है| ज्ञान का अभिषेक हो मन के ऊपर तो, मन शांत होता है; शीतल होता है | ऐसे ही तपती हुई धरती पर वर्षा होती है, तो धरती को ठंढक पंहुचती है और फल-फूल उगते हैं, पेड़ों में पत्ते-फूल सब लगने लगते हैं| बारिश से सिंचन होता है न ! और प्रकृति फलप्ती है, पानी ही जीवन है और वह जीवन उतरता है धरती पर | पानी के बिना कैसे जीवन हो सकता है ?
श्रावण मने श्रवण | श्रवण मने क्या? जिस महीने में बैठ के कथाएं सुनते हैं | ईश्वर का गुणगान सुनते हैं, तो हमारे भीतर समाधान एवं आत्मविश्वास होता है। इसलिए श्रावण मास की यही विशेषता है| और श्रावण मास में, बारिश के मौसम में लोग बाहर नहीं जाते थे | संन्यासियों के लिए भी यही नियम था | प्राचीन काल में साधु, संत, संन्यासी स्थान स्थान पर अपना अधिवास करते थे उपरोक्त अधिवास वर्षा ऋतु अर्थात चतुर्मास वही अपना जीवन प्रभु संकीर्तन, सतसू में व्यतीत करते थे। चतुर्मास मैं जिस स्थान पर रहते वहीं भगवत भक्ति करते एवं सत्संग के द्वारा जनसामान्य में प्रभु भक्ति एवं धर्म का प्रचार प्रसार करते थे। चतुर्मास की अवधि में वर्षा ऋतु होने के कारण खेत खलिहान में कोई विशेष कार्य नहीं होता था एवं प्रकृति स्वयं खेत खलियानों का रक्षण एवं पालन करती है। चतुर्मास्य की अवधि में कीट, कीटक, पतंगा एवं बहुत से प्रकार के सूक्ष्म जीव जंतु संध्या की बेला में निकलते हैं उस कारणवश चतुर्मास में केवल एक समय का ही भोजन ग्रहण किया जाता था। सभी भागवत भक्ति में लीन रहते एवं नित्य नए भजन गुनगुना कर आनंदमय जीवन व्यतीत किया जाता था।
. *🚩हर हर महादेव 🚩*