किसी ने सचमुच परवाह नहीं की जब कातिल कल जेल से बाहर चला गया ।
माफिया बिंदी यादव और जदयू एमएलसी मनोरमा के बेटे रॉकी यादव ने कार से ओवरटेक करने के मामले में आदित्य(तब 18 वर्ष का कक्षा 12 के छात्र) की गोली मारकर हत्या कर दी ।
आदित्य तो कार चला भी नहीं रहा था ।
साल 2016 में आदित्य सचदेवा और उनके दोस्त बर्थडे पार्टी से स्विफ्ट डिजायर कार से लौट रहे थे, गया (बिहार) की एक संकरी सड़क पर रॉकी के रेंज रोवर को ओवरटेक के लिए साइड नहीं से पाए
रॉकी और उसके साथियों ने उनका पीछा किया और दया के लिए अनुरोध करने के बावजूद उन्होंने नसीर (जो कार चला रहा था) को रौंद दिया । जब बाकी सभी ने भागने की कोशिश की तो रॉकी ने खुलेआम कार को गोलियों से भून दिया, जिससे आदित्य की मौत हो गई ।
कहानी ने देश को हिलाकर रख दिया और मीडिया कहानी 24 * 7 चलाता रहा। राज्य, दबाव में 3 दिनों के बाद रॉकी को गिरफ्तार कर लिया और फास्ट-ट्रायल कोर्ट चला ।
15 महीने के भीतर रॉकी को दोषी करार दिया गया और सत्र न्यायालय ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई ।
मीडिया ने जश्न मनाया और माता-पिता ने न्याय प्रणाली को धन्यवाद दिया, भारतीय न्यायपालिका प्रणाली और राजनीतिक मांसपेशियों की शक्ति के बारे में बहुत कम जानकारी!
2023 तक का समय बीत गया ।
बुधवार को पटना हाईकोर्ट ने रॉकी को बरी कर दिया । यह बताने करने की आवश्यकता नहीं है कि गवाह कैसे बदल गए और राज्य अभियोजन पक्ष मामले को आगे बढ़ाने में कैसे विफल रहा ।
सही समय पर, कल जब पूरा मीडिया और सोशल मीडिया मणिपुर की बात कर रहा था, रॉकी जेल से बाहर चला गया और एक भी मीडिया व्यक्ति द्वारा पीछा किए बिना अपने निवास पर पहुंच गया ।
यह आपराधिक न्याय प्रणाली और राज्य की विफलता है जो देश के किसी कोने में हर रोज एक सचदेवा माता-पिता का मजाक उड़ाती है!
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रॉकी यादव को "बेनिफिट ऑफ डाउट" दिया गया था!
न्याय की कीमत पर "बेनिफिट ऑफ डाउट"।🤷🏻♂️
🤨रॉकी की सजा पर सेशन कोर्ट द्वारा मंजूर किए गए सबूतों को राज्य क्यों बरकरार नहीं रख सका?
🤔क्या आदित्य के दोस्तों - आयुष, अंकित, नासिर और कैफी को कोई जान का खतरा था?
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