सेंसर बोर्ड की यह जिम्मेदारी है कि वह फिल्मों को बारीकी से देखें समझे , समाज के अनुशार कुछ गलत नजर आए तो उसे हटाए और उसके बाद उसे समाज को समर्पित करें, लेकिन आजकल देखा जा सकता है कि सेंसर बोर्ड न जाने कौन से नशे में हर प्रकार की भद्दी और वाहियात फिल्मों को समाज की तरफ प्रेषित कर देता है। जिससे समाज में अश्लीलता, नग्नता, नशा, अपराध बढ़ते जा रहे हैं और फिल्मों के माध्यम से लोगों की आस्था पर प्रहार हो रहा है उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत किया जा रहा है।
फिल्मों में महिलाओं को भी केवल भाग्य वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जो एक प्रकार से सभी महिलाओं का घोर अपमान है लेकिन इस पर ना तो सेंसर बोर्ड ध्यान देता है और ना ही कथित महिला सशक्तिकरण की बातें करने वाले संगठन, नेता और अभिनेता आदि.. "सब दोगले हैं"
माना फिल्म मेकर्स तो व्यापार करने के हिसाब से फिल्म बनाते हैं लेकिन सेंसर बोर्ड की तो जिम्मेदारी है कि वह समाज के भले के लिए और समाज को कुछ अच्छी सीख देने के लिए बनाई जा रही फिल्मों को आगे बढ़ाएं ना कि ऐसी फिल्मों को जो समाज को गलत दिशा में ले जाए या लोगों की आस्था, भावनाओं का खिलवाड़ करे।
इसलिए जरूरी है कि एक एक फिल्मों का बॉयकॉट करने की जगह है सेंसर बोर्ड पर दबाव बनाया जाए और सरकार तथा प्रशासन से सेंसर बोर्ड के अनफिट अधिकारियों पर कार्यवाही करने का निवेदन कठोरता से किया जाए। क्योंकि सेंसर बोर्ड यदि अपना काम समाज के प्रीति निष्ठावान होकर करेगा तो कभी बैन या बॉयकॉट की जरूरत ही नहीं पड़ेगी...
प्रशासक समिति द्वारा इसी विषय पर एक शॉर्ट वीडियो के साथ एक ट्वीट कर सेंसर बोर्ड के विरुद्ध आवाज उठाई गई (ट्वीट में PMO, MIB, अनुराग ठाकुर, प्रेसिडेंट आदि को टैग किया गया है। सभी साथी इस ट्वीट को रीट्वीट कर कार्यवाही की मांग जरूर करें 👇👇
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