GOOD NIGHT - #शुभ_रात्रि
शास्त्रों में आत्म निर्माण के चार साधन बताएं गये हैं। (१) साधना (२) स्वाध्याय (३) संयम (४) सेवा। इन चारों की वही उपयोगिता है जो शरीर में हाथ पैरों की है। इनके बिना आत्म-कल्याण की दिशा में एक कदम भी आगे बढ़ सकना सम्भव नहीं हो सकता।
साधना - ईश्वर उपासना को दैनिक जीवन में से बिल्कुल हटा देना किसी भी प्रकार उपयुक्त नहीं। मन न लगने पर भी किसी न किसी प्रकार आदत में इसे सम्मिलित करने के लिए साधना का कुछ न कुछ अभ्यास नित्य ही करते रहना चाहिए। आत्म शक्ति जब कभी जिस किसी को भी प्राप्त हुई है तब उसमें आस्तिकता और उपासना का कोई न कोई अंश जरूर रहा है। भले ही हम बिस्तर से उठते और सोते समय पन्द्रह-पन्द्रह मिनट तक ही सर्वव्यापक, निष्पक्ष, न्यायकारी, विचार और कार्यों के अनुरूप प्रसन्न एवं अप्रसन्न होने वाले परमात्मा का ध्यान और स्मरण किया करें, पर किसी न किसी रूप में दैनिक उपासना तो किया करें। इसमें फुरसत का प्रश्न नहीं, अभिरुचि का प्रश्न है। थोड़ी अभिरुचि इधर बढ़ते ही इस मार्ग में आनन्द आने लगता और फुरसत भी मिलने लगती है।
ईश्वर उपासना का अर्थ यथावत् कुछ पूजा अर्चा की लकीर पीटना या भगवान से अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रार्थना करना नहीं है। उपासना का अर्थ है पास बैठना। अग्नि के पास बैठने से गर्मी, बर्फ के समीप से शीतलता आती हैं, तो उपासना से देवत्व-ईश्वरत्व की वृद्धि होनी चाहिए। अपनी आकांक्षाओं से लेकर आचरण में दिव्यता का समावेश करना ही उपासना का उद्देश्य है। ऐसा होने से मनुष्य उस महत् सत्ता से जुड़कर असीम शक्ति सम्पन्न हो जाता है। लौकिक एवं पारलौकिक विभूतियां उसके चरण चूमने लगती हैं।
उपासनात्मक कर्मकाण्ड के साथ भावनाओं का समन्वय करने से उपासना बनती है। उपासना चाहे थोड़ी हो पर उसमें इष्ट के साथ घुल-मिल जाने एकाकार हो जाने जैसी तड़पन होनी चाहिए। मां बेटे, गाय बछड़े, दीप पतंग जैसी आतुरता से की गयी उपासना चमत्कार उत्पन्न कर सकती है।
उपासना एक पक्ष है, उसके साथ-साथ अपने जीवन आचार-विचारों को भी ईश्वर परायण के ढंग का बनाने का प्रयास जोड़ने से समग्र साधना बनती है। अपने हर कार्य व्यवहार को, अपने इष्ट को, ईश्वर को प्रतिष्ठा का प्रश्न मानकर चलने से जीवन में पवित्रता एवं व्यवस्था बढ़ती चली जाती है। वाल्मीकि जैसों के उतरे पुतरे कर्मकांड भी चमत्कार पैदाकर गये, इसका श्रेय भी इसी प्रखर साधनात्मक प्रवृत्ति को दिया जा सकता है। अस्तु व्यक्तिगत जीवन में इसी स्तर की साधना को स्थान दिया जाना चाहिए।
स्वाध्याय - मैले, कपड़े को साफ करने के लिए जो उपयोगिता साबुन की है वही मन पर चढ़े हुए मैलों को शुद्ध करने के लिए स्वाध्याय की है। मनुष्य के पास सर्वोत्तम विशेषता उसकी बुद्धि की ही है और इन विचारों का सही एवं सुसंस्कृत बनना स्वाध्याय पर निर्भर है। श्रेष्ठ पुरुषों की कमी, उनके पास समय का अभाव और अपने लिए भी समुचित फुरसत की कमी रहने के कारण अब उपयुक्त सत्संग की व्यवस्था बन सकना कठिन है, ऐसी दशा में जीवन निर्माण के श्रेष्ठ साहित्य का स्वाध्याय ही सत्संग की आवश्यकता को पूरी करता है। जिस प्रकार भोजन त्याग कर शरीर को जीवित रख सकना कठिन है, इसी प्रकार स्वाध्याय की उपेक्षा करके, उसका परित्याग करके कोई व्यक्ति न तो अपने आत्मिक स्तर को ऊंचा उठा सकता है न स्थिर रख सकता है। बिना पढ़े लोगों के लिए भी उचित है कि वे श्रेष्ठ साहित्य का श्रवण किया करें। दुर्भिक्ष काल में जिस प्रकार साधन सम्पन्न लोग भूखों मरते हुओं को अन्न की व्यवस्था जुटाते हुए पुण्य लाभ करते हैं, उसी प्रकार स्वाध्यायशील सज्जनों का कर्तव्य है कि जीवन निर्माण साहित्य अपने घर के तथा बाहर के अशिक्षितों को पढ़कर सुनाया करें और उनके आत्मिक जीवन को अपने पसीने से खींच कर हरा-भरा रखने का पुण्य प्राप्त किया करें।
स्वाध्याय, पुस्तक पढ़कर भी किया जा सकता है तथा सुनकर भी किन्तु कुछ भी पढ़ना या सुनना स्वाध्याय नहीं कहा जा सकता। जीवन को दिशा दे सकने योग्य प्रेरणा पढ़कर या सुनकर प्राप्त करने तथा उसे मनन चिन्तन द्वारा आत्मसात् करने से स्वाध्याय का लाभ मिलता है। नित्य ऐसे प्रेरक विचारों एवं प्रसंगों को पढ़ने-सुनने का सुनिश्चित क्रम बनाया जाना चाहिए।
संयम-संयम को शक्ति का स्रोत कहा गया है। मनुष्य को बहुत कुछ मिला है तथा उससे भी अधिक मिल सकता है। संयम के अभाव में व्यक्ति निरर्थक अपनी शक्तियों, विभूतियों को गंवाता रहता है तथा अधिक कुछ कर पाने की पात्रता भी नहीं प्राप्त कर पाता। शक्तियों एवं विभूतियों को निरर्थक, हानिकारक एवं कम महत्व के प्रसंगों से हटाकर उन्हें सार्थक, हितकारी एवं अधिक उपयोगी विषयों में ठीक प्रकार नियोजित करना ही संयम कहलाता
संयम का क्षेत्र बड़ा व्यापक है। इन्द्रिय निग्रह से लेकर, आत्म व्यवहार, समय, विचारों एवं भावनाओं के नियंत्रण तक को उसके अन्तर्गत लिया जाता है। साधक को इसी व्यापक दृष्टि से संयम को समझना एवं अपनाना चाहिए।
. क्रमशः
. 🚩जय सियाराम 🚩
. 🚩जय हनुमान 🚩