GOOD NIGHT #शुभ_रात्रि
ये कैसा ईश्वर है जो एक भूकें बच्चे को भोजन नही दे सकता, लज्जा छिनी जा रही स्त्री की रक्षा नही कर सकता, दरिद्र पर हो रहे अन्याय को नही रोक सकता ?
दूध में नमक डाला है तो खीर तो नही बनेगी ये तय है, फिर भी अगर तुम दूध के नष्ट होने पर ईश्वर को ही कोसते हो तो मेरा प्रश्न तुमसे है तूम कैसे हो भाई जो अपने क़िये का दोष माता पे लगाते हो?
मन से, कर्म से वचन से सैकड़ों बार अपराध कर रहे है हम फिर भी स्वयं को निर्दोष मानते है और परिणाम के संमूख होने पर ईश्वर को भला बुरा कहते है! एक श्वान महँगी गाड़ी में बैठा उसकी खिड़की से बाहर इतराते हुए देख रहा है और आनंद से जा रहा है और एक बच्चा रेल की पटरी के पास पत्थरों पर फटी गंदी गुदड़ी पर पड़ा भूख से बिलख रहा है, क्यूँ? कोई कारण नही क्या? क्या सब संयोग मात्र है? हम केवल जन्म से मृत्यु के मध्य को जानते है विधि असंख्य जन्मों का हिसाब लिए बैठी है!
गड्ढे में गिरे है तो क्या करेंगे?
और माटी खोद के नीचे जाएँगे या ऊपर चड्ने का प्रयास करेंगे!
परिस्थिति का विकट होना कर्मों की गति का परिणाम है और विवेक से हरी शरणागति में रह कर अच्छे कर्मों का करना भविष्य की परिस्थितियों को अनुकूल बनाता है! भागवत जी में कथा आती है जब एक राजा मृत्यु के निकट पोहोंचा तो देखता है आकाश में सैकड़ों पशू उसे मारने के लिए क्रोध में खड़े है! वो घबरा जाता है तब साधु श्रेस्ठ हरी प्रिय मुनि नारद उसे उसके द्वारा निर्दोष जीवों को मारने की याद दिलाते है, और बताते है की राजन सैकड़ों जन्म लोगे और एक एक जीव के हाथों वैसे ही मारे जाओगे जैसे तुमने इनको मारा था! जब तक ये चक्र पूरा नही होता तुम मुक्त नही हो सकते!
हम दुःख कभी भी हरी इच्छा से नही भोगते ऐसा मेरा मान ना है क्यूँकि दुःख अभिमान से भरे आचरण का प्रारब्ध है और शूभ कर्मों से मिले सुख भगवान की बड़ी क्रपा का! क्यूँ जी?
क्यूँकि सद बुद्धि बिना हरी क्रपा के नही मिलती! न विश्वास हो तो आप अपने द्वारा कर्मों को ध्यान से देखिए और किसी अनन्य भक्त के कर्मों को, आप समझ जाएँगे!
आप दान करें तो प्रयास करेंगे की सबको दिख जाए कुछ प्रशंशा मिल जाए और संत क्रपा बिना शोर के होती है! सूर्य बिना प्रशंशा के सबको प्रकाश देता है, धरा सबको अन्न देती है सबकी लातें प्रहार खा के भी!
लोकाचार और शास्त्रों के द्वारा निर्धारित सीमाओं को हमें लांघना है और उसके दूश परिणामों के लिए ईश्वर को दोष देना है! संसार काम का परिणाम है! ये इतना प्रबल है की ब्रहम्मा सहित देवता भी इस से अछूते नही और हम सोचते है की हम इस से बच जाएँगे! काम को केवल विवेक बुद्धि से जीता जा सकता है और विवेक बुद्धि गुरु क़्रिपा से सिद्ध साधना है वरना आधुनिक शिक्षा से शिक्षित लोगों में से ही कुछ लोग आत्मघाती बन कर निर्दोष मनुष्यों के प्राण हर रहे है! आधुनिक शिक्षा आपको रोटी कमाने में भले ही दक्ष बना दे पर मनुष्य बन ने के लिए आपको सत संग चाहिए ही होगा! यदि ये सत संग हरी भक्तों का हो तो आप से धनवान कोई नही!
कर्मों के रेखा बोहोत लम्बी है और वर्तमान जीवन उसके असंख्य बिंदुओं में से एक बिंदु! इस से बचने का उपाय है कर्मों से मुक्ति जो केवल शरणागत को प्राप्त है हरी दास को प्राप्त है क्यूँकि उसका कोई भी कर्म स्वयं का होता ही नही जिनका है उनको वो अर्पित कर मुक्त रहता है! न कर्म रहे न प्रारब्ध! अपनी माता का आँचल छोड़ कर फाड़ कर स्वयं को महा ज्ञानी मान कर ईश्वर के अस्तित्व पे सवाल उठाने वाले लोग केवल अपने गड्ढे को और गहरा करते है क्यूँकि वो और बुरे कर्मों में अग्रसित हो जाते है काम से मोहित हुए घूमते है!
. 🚩 जय सियाराम 🚩
. 🚩 जय हनुमान 🚩