कटा इस कदर एक बेजुबान, और खून सारा नाली में बह गया...पत्थर दिल था कोई, जो बहते खून को देखकर भी खुशियां मना गया
कहीं पानी बहाने,दुग्धाभिषेक को भी गुनाह कह देते हैं,कहीं खून बहने पर भी मुबारकबाद देते हैँ ..
जो कत्ल करे गाय-भैंस और बकरा, उसका मुक्कमल ईमान हो गया। हिन्दू पानी,दूध और पटाखों से ही बदनाम हो गया !!
ऊपर जो आपने 4 लाइनें पड़ी एंटरटेनमेंट के लिए लिखी गई कविता नहीं है बल्कि वर्तमान समाज के खिलौने और दोगली सच्चाई है जो लोगों के दोगले पन को शब्दों के माध्यम से सामने ला रही है।
साधारण व्यक्ति यदि सोचे कि ईश्वर जो सबको रचने वाला है जो संपूर्ण सृष्टि का स्वामी है जिसने सब कुछ बनाया क्या वह ऐसे कृत्य से खुश हो सकता है जिससे आप उसके ही बनाई गई जीव को तड़पा तड़पा कर मौत के घाट उतार दें।
या तो जिसे आप खुश कर रहे हैं वह सृष्टि का रचयिता नहीं है (कोउनो फिरकी ले रहा है) और यदि वो श्रृष्टि का रचिता है जिसे आप खुश कर रहे हैं तो आप बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं वह खुश नहीं बल्कि दुखी होगा संभवत क्रुद्ध भी होगा।
कुछ बुद्धिजीवी जो दीपावली और होली पर जानवरों की तकलीफों को लेकर भावुक हो जाते हैं , रोकर दिखाते हैं वो eid पर तड़प तड़प कर मरते जानवरों के खून को देखकर मुबारकबाद देते हैं।