जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार की 1631 शिकायतों का क्या किया न्यायपालिका ने। (कानून मंत्री किरेन रिजिजू की सूचना)
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने 31 मार्च, 2022 को लोकसभा में बताया कि 5 वर्ष में (जनवरी, 2017 से लेकर दिसंबर, 2021 तक) जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार की 1631 शिकायतें मिली थी जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और अलग अलग हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पास कार्यवाही करने के लिए भेजा गया था।
ये शिकायतें सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स को “in-house mechanism” के माध्यम से निष्पादन और आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी गई थी जिसका मतलब होता है कि न्यायपालिका स्वयं ही उन पर कार्रवाई करती है। पिछले 5 साल में केवल एक हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज के खिलाफ कानून मंत्रालय ने राष्ट्रपति की अनुमति से मुकदमा करने की अनुमति दी है। अब सवाल यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों ने भ्रष्टाचार की 1631 शिकायतों पर क्या कार्रवाई की। राजनेताओं के खिलाफ तो सुप्रीम कोर्ट और अन्य अदालतें खुले में आदेश जारी करती हैं और लालू यादव जैसे सजायाफ्ता मुजरिमों को 32 साल की सजा के बावजूद जमानत दे कर रखती है लेकिन अपने घर के बारे में सब कुछ गोलमोल रखा जाता है।
किरेन रिजिजू ने यह सूचना 31 मार्च को दी और 8 अप्रैल, 2022 को सुप्रीम कोर्ट के CJI एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच MPs/MLAs के खिलाफ लंबित 4984 क्रिमिनल केसेस के सुनवाई के लिए तारीख तय कर रही थी। ऐसी रिपोर्ट कोर्ट के सामने थी कि 4 दिसंबर, 2018 तक 2775 केस निपटने के बाद भी MPs/MLAs के खिलाफ केस 4122 से बढ़ कर 4984 हो गए।
MPs/MLAs के खिलाफ केस हों तो उनके लिए ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में जा सकते हैं परंतु सुप्रीम कोर्ट के अपने घर में कुछ गड़बड़झाला हो तो उसके लिए कोई कहां जायेगा।
शायद लोगों को पता नहीं है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के किसी भी केस के लिए सरकार या उसकी किसी भी एजेंसी CBI / ED /इनकम टैक्स या विजिलेंस कमीशन को जांच करने की पॉवर नहीं है और यह काम भी न्यायपालिका ने अपने हाथ में ले रखा है।
इसके अनुसार जांच भी न्यायपालिका की अनुमति से ही हो सकती है और यही कारण है कि न्यायपालिका का भ्रष्टाचार जनता के सामने नहीं आता। एक सरकारी अधिकारी के भ्रष्टाचार के पीछे तो हर एजेंसी लग जाती है मगर अदालतों में बैठे जजों के भ्रष्टाचार के लिए कोई कुछ नहीं कर सकता।
मजे की बात यह है कि अदालतों में in-house mechanism न्यायपालिका की स्वतंत्रता कायम रखने के लिए बनाया हुआ है और यह स्वतंत्रता हर तरह के घोटाले को दफ़न करने में सक्षम है। पिछले दिनों एक सुप्रीम कोर्ट के वकील के लिए कुछ चर्चा था कि उसकी पत्नी ने 160 करोड़ का बंगला खरीदा है। लेकिन कभी कोई जजों के परिवारों के किसी सदस्य के बारे में खबर नहीं देता कि किसने कितनी संपत्ति अर्जित की है।
भ्रष्टाचार में न्यायिक पारदर्शिता तब तक जांच निष्पक्ष नहीं हो सकती जब तक इसे न्यायपालिका के अधिकार से मुक्त न कर दिया जाये। इसके लिए यह भी पब्लिक डोमेन में आना चाहिए कि किसी वकील को कितनी फीस उसके क्लाइंट दे रहे हैं जैसे यह पता चलना जरूरी है कि आज सेम सेक्स मैरिज के लड़ने वाले याचिकाकर्ता बड़े बड़े वकीलों को पैसा कहां से दे रहे हैं, यह बहुत गंभीर मसला है।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ को सुप्रीम कोर्ट के बारे में प्राप्त हुई सरकार से शिकायतों के बारे की गई कार्रवाई और अलग अलग हाई कोर्ट के हर चीफ जस्टिस द्वारा की गई कार्रवाई की रिपोर्ट एक व्हाइट पेपर जारी करके जनता के सामने लानी चाहिए।