. "गंगा दशहरा"
हर साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस साल गंगा दशहरा 30 मई, 2023 दिन मंगलवार को मनाया जा रहा है।
गंगा दशहरा का महत्व
पुरणों के अनुसार भगीरथी की तपस्या के बाद जब गंगा माता धरती पर आती हैं उस दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी थी। गंगा माता के धरती पर अवतरण के दिन को ही गंगा दशहरा के नाम से पूजा जाना जाने लगा। इस दिन गंगा नदी में खड़े होकर जो गंगा स्तोत्र पढ़ता है वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। स्कंद पुराण में दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र दिया हुआ है।
अगर आप गंगा नदीं नही जा पा रहे है तो आप घर के पास किसी नदी या तालाब में गंगा माँ का ध्यान करते हुए स्नान कर सकते है। यदि वह भी संभव ना हो तो अपने घर के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। गंगा जी का ध्यान करते हुए षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। इसके बाद इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
''ॐ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:''
इस मंत्र के बाद “ॐ नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा” मंत्र को पांच पुष्प अर्पित करते हुए गंगा को धरती पर लाने भगीरथी का नाम मंत्र से पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही गंगा के उत्पत्ति स्थल को भी स्मरण करना चाहिए। गंगा जी की पूजा में सभी वस्तुएं दस प्रकार की होनी चाहिए। जैसे दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल होने चाहिए।
अगर आप पूजन के बाद दान देना चाहते है तो दस चीजें का ही दान दें, क्योंकि ये अच्छा माना जाता है, लेकिन जौ और तिल का दान सोलह मुठ्ठी का होना चाहिए। दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए। जब गंगा नदी में स्नान करें तब भी दस बार डुबकी लगानी चाहिए।
गंगा दशहरा के पर्व पर दान-पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है। गंगा दशहरा पर शीतलता प्रदान करने वाली वस्तुओं का विशेष महत्व है। इसमें आप ठण्डे फल पंखा मटका आदि वस्तुएँ दान कर सकते हैं। इस दिन घर में सत्यनारायण की कथा कराने का भी विशेष महत्व माना जाता है।
"श्रीगंगा स्त्रोतं"
देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे।
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले॥१॥
भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम्॥२॥
हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम्॥३॥
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम्।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः॥४॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खंडित गिरिवरमंडित भंगे।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये॥५॥
कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवति कृततरलापांगे॥६॥
तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे॥७॥
पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे।
इंद्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये॥८॥
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥९॥
अलकानंदे परमानंदे कुरु करुणामयि कातरवंद्ये।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुंठे तस्य निवासः॥१०॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः।
अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥११॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम्॥१२॥
येषां हृदये गंगा भक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः।
मधुराकंता पंझटिकाभिः परमानंदकलितललिताभिः॥१३॥
गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम्।
शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः तव इति च समाप्तः॥१४॥
"हर हर गंगे"