कुछ लोग टीपू सुल्तान की कथित पुण्यतिथि मना रहे हैं और उसे सेकुलरिस्म का मसीहा बता रहे हैं , कहते हैं उसने हिन्दू मंदिरों को बचाया , उनका पुनर्निर्माण कराया , लेकिन कुछ लोगों का मानना है की उसका गलत इतिहास पढ़ाया गया और उसकी गलत छवि लोगों के मन में तैयार की गयी जबकि वो एक जेहादी था जिसने हिन्दुओं पर अनवरत अत्याचार किये , उनका धर्मान्तरण किया, हत्याएं की , बलात्कार किये , मंदिर तोड़े
कुछ लोगों का तो ये भी मानना है की इसकी जो फोटो दिखा जाती है वो भी सच नहीं है , वो दीखता भी दरिंदे जैसा ही था,लेकिन कथित बिकाऊ इतिहासकारों ने उसकी छवि और उसकी फोटो सब बदलकर गलत तरीके से पढ़ाया जैसी अन्य मुगलों का गलत इतिहास पढ़ाया गया है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक बनाने वाले निर्माता संदीप सिंह ने अपनी एक नई फिल्म ‘टीपू’ का एलान किया है, जिसमें टीपू सुल्तान के चेहरे पर कालिख पुती नजर आ रही है। इरादा साफ है कि वह टीपू सुल्तान का वह चेहरा दिखाने की कोशिश करने जा रहे हैं, जिसके दामन पर ही नहीं बल्कि चेहरे पर भी दाग ही दाग नजर आने वाले हैं।👇VIDEO "STORYOF TIPU SULTAN"
जब टीपू की सच्चाई अंग्रेज इतिहासकार बताते हैं तो वामपंथी इतिहासकार कहते हैं ब्रिटिश टीपू सुल्तान के विरोधी थे इसलिए ऐसा लिखे हैं और जब टीपू के दरबारी मुस्लिम इतिहासकार टीपू की क्रूरता, नृशंसता और जिहादी कुकृत्यों का भूरी भूरी प्रशंसा कर वर्णन करता है तो धूर्त वामपंथी इतिहासकार यह कहकर झूठ फैलाते हैं कि उन लोगों ने बढ़ा चढ़ाकर लिख दिया होगा. इसी तरह के शैतानी कुकृत्य करनेवाले तमाम इस्लामिक आक्रान्ताओं और सुल्तानों को इन वामपंथी इतिहास्यकारों ने इन्सान और महान बताकर फर्जी इतिहास लिखकर हम भारतियों को मूर्ख बना रखा है. जरा इन धूर्तों से पूछिए कि मुस्लिम इतिहासकार अगर मुस्लिम सुल्तानों द्वारा हिन्दुओं, बौद्धों के नरसंहार, उनके मन्दिरों के विध्वंस या मस्जिदों में परिवर्तन जैसे कुकृत्य का निंदा करने कि जगह बढ़ा चढ़ाकर और प्रशंसा करते हुए लिखते है तो उसका क्या अर्थ निकलता है?
टीपू सुल्तान गद्दी पर बैठते ही मैसूर को मुस्लिम राज्य घोषित कर दिया. मुस्लिम सुल्तानों की परम्परा के अनुसार टीपू ने आम दरबार में घोषणा की, “मै सभी काफिरों (गैर मुस्लिमों) को मुस्लमान बनाकर रहूंगा. उसने सभी हिन्दुओं को फरमान जारी कर दिया. उसने मैसूर के गाव-गाँव के मुस्लिम अधिकारियों के पास लिखित सूचना भिजवादी कि, “सभी हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षा दो. जो स्वेच्छा से मुसलमान न बने उसे बलपूर्वक मुसलमान बनाओ और जो पुरूष विरोध करे, उनका कत्ल करवा दो और उनकी स्त्रियों को पकड़कर शरिया कानून के अनुसार मुसलमानों में बाँट दो.”
इतिहासकार लिखते हैं टीपू हर गाँव में एक हाथ में तलवार और दुसरे हाथ में कुरान लेकर पहुंचा और लोगों को मुसलमान बनाया या फिर मौत के घाट उतार दिया.
कर्नाटक के डॉक्टर चिदानंद मूर्ति ने कन्नड़ भाषा में टीपू पर लिखी अपनी किताब में लिखा है, “वे बेहद चालाक शासक थे. वे तटीय क्षेत्रों और केरल के मलाबार इलाक़े पर हमले में हिंदुओं के लिए बहुत क्रूर थे.”
“वे क्रूर और पक्षपाती शासक थे. वे जिहादी थे. उन्होंने हज़ारों हिंदुओं को ज़बदरदस्ती मुस्लिम बना दिया. वह अपनी धार्मिक पुस्तक का पालन करता था जिसमें लिखा था मूर्तिपूजकों का वध करो.”
ब्रिटिश अधिकारी विलियम लोगान ने टीपू पर लिखी अपनी किताब “मालाबार मैनुअल” में टीपू को एक असहिष्णु और निरंकुश शासक बताया है. लोगान ने अपनी किताब में कई ऐसे उदाहरण दिए हैं जिसमें टीपू द्वारा बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों को गिराए जाने और लाखों लोगों को तलवार के बल पर धर्मांतरण कराने की जानकारी है. अपनी इन्ही धर्मांध नीतियों के कारणों टीपू सुल्तान को दक्षिण का औरंजेब भी कहा जाता है. इस्लामीकरण का यह तांडव टीपू ने इतनी तेजी से चलाया कि पूरे हिंदू समाज में त्राहि त्राहि मच गई.इस्लामिक शैतानों से बचने का कोई उपाय न देखकर धर्म रक्षा के विचार से हजारों हिंदू स्त्री, पुरुषों ने अपने बच्चों सहित तुंगभद्रा आदि नदियों में कूद कर जान दे दी, हजारों ने अग्नि में प्रवेश कर अपनी जान दे दी.
टीपू सुल्तान ने हिन्दुओं पर अत्याचार एवं उनके धर्मान्तरण के लिए कुर्ग एवं मलाबार के विभिन्न क्षेत्रों में अपने सेना नायकों को अनेकों पत्र लिखे थे. जिन्हें प्रख्यात विद्वान और इतिहासकार पणिक्कर ने लन्दन के इन्डिया ऑफिस लाइब्रेरी तक पहुँच कर ढूँढ निकाला था.
टीपू सुल्तान ने १४ दिसम्बर १७८८ को कालीकट के अपने सेना नायक को पत्र लिखा:
”मैं तुम्हारे पास मीर हुसैन अली के साथ अपने दो अनुयायी भेज रहा हूँ. उनके साथ तुम सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लेना और यदि वो इस्लाम कबूल ना करे तो उनका वध कर देना. मेरा आदेश है कि बीस वर्ष से कम उम्र वालों को कारागृह में रख लेना और शेष में से पाँच हजार को पेड़ पर लटकाकार वध कर देना.” (भाषा पोशनी-मलयालम जर्नल, अगस्त १९२३)
दिनांक २२ मार्च१७८८ टीपू सुल्तान ने अब्दुल कादर को पत्र लिखा:
“बारह हजार से अधिक हिन्दुओं को इस्लाम में धर्मान्तरित किया गया. इनमें अनेकों नम्बूदिरी थे. इस उपलब्धि का हिन्दुओं के बीच व्यापक प्रचार किया जाए ताकि स्थानीय हिन्दुओं में भय व्याप्त हो और उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए. किसी भी नम्बूदिरी को छोड़ा न जाए.”
टीपू सुल्तान का अपने सेनानायक को पत्र:
”जिले के प्रत्येक हिन्दू का इस्लाम में धर्मान्तरण किया जाना चाहिए; अन्यथा उनका वध करना सर्वोत्तम है; उन्हें उनके छिपने के स्थान में खोजा जाना चाहिए; उनका इस्लाम में सम्पूर्ण धर्मान्तरण के लिए सभी मार्ग व युक्तियाँ सत्य-असत्य, कपट और बल सभी का प्रयोग किया जाना चाहिए.”
(हिस्टौरीकल स्कैचैज ऑफ दी साउथ ऑफ इण्डिया इन एन अटेम्पट टू ट्रेस दी हिस्ट्री ऑफ मैसूर- मार्क विल्क्स, खण्ड २ पृष्ठ १२०)
टीपू सुल्तान ने दिनांक १९ जनवरी १७९० को बदरुज़ समाँ खान को पत्र लिखा:
”क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि मैंने मलाबार में एक बड़ी विजय प्राप्त की है. चार लाख से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बना लिया गया. मैंनें अब उस रमन नायर की ओर बढ़ने का निश्चय किया हैं ताकि उसकी प्रजा को इस्लाम में धर्मान्तरित किया जाए. मैंने रंगापटनम वापस जाने का विचार त्याग दिया है”
कदाथंद राजा के मुख्यालय (किला) कुट्टीपुरम पर टीपू सुल्तान ने भारी सैनिकों के साथ हमला किया और किले को घेर लिया. नायरों ने यथाशक्ति प्रतिरोध किया पर किले को नहीं बचा पाने कि स्थति में आत्मसमर्पण कर दिया. उन्हें बंदी बनाकर दूसरे जगह ले जाया गया. उन्हें जबरन मुसलमान बनाया गया और खतना किया गया. अगले दिन सभी स्त्री पुरुष बंदियों को जबरन गौ मांस खिलाया गया (विकिपीडिया).
दी मैसूर गज़टियर बताता है कि टीपू ने दक्षिण भारत में आठ सौ से अधिक मन्दिर नष्ट किये थे. के.पी. पद्मानाभ मैनन द्वारा लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ कोचीन’ और श्रीधरन मैनन द्वारा लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ केरल’ उन नष्ट किये गये मन्दिरों में से कुछ का वर्णन करते हैं:
”अगस्त १७८६ में टीपू की फौज ने प्रसिद्ध पेरुमनम मन्दिर की मूर्तियों का ध्वंस किया और त्रिचूर तथा करवन्नूर नदी के मध्य के सभी मन्दिरों का ध्वंस कर दिया. इरिनेजालाकुडा और थिरुवांचीकुलम के भव्य मन्दिरों को भी टीपू की सेना द्वारा नष्ट किया गया.
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया टीपू सुल्तान द्वारा तिन प्रमुख मन्दिरों के विध्वंस का विवरण देता है. ये हैं हरिहर के हरिहरेश्वर मन्दिर जिसे मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया, श्रीरंगपट्टनम के वराहस्वामी मन्दिर और होसपेट के ओडाकार्या मन्दिर (Kamath, M. V. “Tipu Sultan: Coming to terms with the past)
अन्य प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिरों में से कुछ जिन्हें लूटा गया और नष्ट किया गया था वे हैं:
त्रिप्रंगोट, थ्रिचैम्बरम्, थिरुमवाया, थिरवन्नूर, कालीकट थाली, हेमम्बिका मन्दिरपालघाट का जैन मन्दिर, माम्मियूर, परम्बाताली, पेम्मायान्दु, थिरवनजीकुलम, त्रिचूर का बडक्खुमन्नाथन मन्दिर, वेलूर शिवा मन्दिर आदि.
टीपू सुल्तान के दरबार में १५ नवयुवक ब्राह्मण लिपिक थे. जिनमें से १४ के दाहिने हाथ के अंगूठे और तर्जनी अंगुली कटी हुई थी. जो १५ वा युवक था वह बाएं हत्था था तो उसकी बाएं हाथ का अंगूठा और बाएं हाथ की तर्जनी काटी गई थी. किसी भी छोटी लिपिक त्रुटि पर यह दंड दिया जाता था मुख्यतः ब्राह्मणों को.
टीपू द्वारा ब्राह्मणों को एक पतले से स्थान पर घंटो खड़ा कर के प्रताड़ित किया जाता था. यदि ब्राह्मण दंड किसी तरह झेल जाता तब उसे चाबुकों से पीटा जाता था. यदि कोड़े भी ब्राह्मण झेल जाता तो उस पर सूइयां चुभाई जाती.
यदि फिर भी ब्राह्मण से वो धर्म परिवर्तन नही करवा पाते तो उसे एक पिंजरे में सड़ने देते थोड़े से चावल और नमक के साथ बिना पानी के जब तक मृत्यु न हो जाए. टीपू सुल्तान का मानना था कि अगर ब्राह्मण का धर्मपरिवर्तन करवा दिया गया तो इसके पीछे कई हिन्दू आसानी से धर्मपरिवर्तन कर लेंगे पर पर लगभग ९५% ब्राह्मणो ने अपने प्राण दे दिये लेकिन धर्मपरिवर्तन नही किया. सोर्स: द केपेटिविटी सफरिंग एंड एस्केप ऑफ जेम्स स्क्युरी (पेज नंबर 114 से 117)
श्री रंगपटनम के किले में प्राप्त टीपू का लिखवाया शिला लेख
शिलालेख के शब्द इस प्रकार हैं: ”हे सर्वशक्तिमान अल्लाह! काफिरों (गैर-मुसलमानों) के समस्त समुदाय को समाप्त कर दे. उनकी सारी जाति को बिखरा दो, उनके पैरों को लड़खड़ा दो अस्थिर कर दो! और उनकी बुद्धियों को फेर दो! मृत्यु को उनके निकट ला दो, उनके पोषण के साधनों को समाप्त कर दो. उनकी जिन्दगी के दिनों को कम कर दो. उनके शरीर सदैव उनकी चिंता के विषय बने रहें, उनके नेत्रों की दृष्टि छीन लो, उनके चेहरे काले कर दो, उनकी जीभ को बोलने के अंग को, नष्ट कर दो! उन्हें शिदौद की भाँति कत्ल कर दो जैसे फ़रोहा को डुबोया था, उन्हें भी डुबो दो और उन पर अपार क्रोध करो. हे संसार के मालिक मुझे अपनी मदद दो.” Rao, C. Hayavadana, Mysore Gazetteer. Volume II, Part IV. Government Press. p. 2697.
टीपू का जीवन चरित्र
टीपू की फारसी में लिखी ‘सुल्तान-उत-तवारीख’ और ‘तारीख-ई-खुदादादी’ नाम वाली दो जीवनियाँ हैं. ये दोनों जीवनियाँ लन्दन की इण्डिया ऑफिस लाइब्रेरी में रखी हुई हैं. इन दोनों जीवनियों में टीपू ने स्वयं को इस्लाम का सच्चा नायक दिखाने के लिए हिन्दुओं पर ढाये अमानवीय अत्याचारों और यातनाओं, का विस्तृत वर्णन खुद ही किया है.
यहाँ तक कि मोहिब्बुल हसन, जिसने अपनी पुस्तक, हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान में टीपू को एक समझदार, उदार और धर्मनिरपेक्ष शासक बताया था उसको भी स्वीकार करना पड़ा था कि ”तारीख यानी कि टीपू की जीवनियों के पढ़ने के बाद टीपू का जो चित्र उभरता है वह एक ऐसे धर्मान्ध, काफिरों से नफरत के लिए मतवाले पागल का है जो गैर-मुस्लिम लोगों की हत्या और उनके इस्लाम में बलात परिवर्तन कराने में सदैव लिप्त रहा था.” (हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान, मोहिब्बुल हसन, पृष्ठ ३५७)
१९६४ में प्रकाशित किताब “लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान” की माने तो उसने मलाबार क्षेत्र में एक लाख से अधिक हिंदुओं और ७० हजार से ज्यादा ईसाइयों को तलवार के दम पर इस्लाम अपनाने को मजबूर किया था. इतिहासकार पणिक्कर ने यह संख्यां पांच लाख बताई है. टीपू सुल्तान के पोते गुलाम मोहम्मद ने हैदर अली और टीपू सुल्तान पर एक किताब लिखी थी जो १८८६ में छपी थी. १९७६ में इसका दोबारा प्रकाशन किया गया. इसमें टीपू के पोते ने उन घटनाओं का जिक्र बड़े विस्तार से किया है कि टीपू इस्लाम को फैलाने के लिए हिंदुओं और अन्य धर्म के लोगों पर किस तरह के अत्याचार किया करता था.
प्रत्यक्षदर्शियों के वर्णन:
दक्षिण भारत में इस्लाम के प्रसार के लिए टीपू द्वारा किये गये भीषण अत्याचारों और यातनाओं को एक पुर्तगाली यात्री और इतिहासकार, फ्रा बार्थोलोमियो ने १७९० में अपनी आँखों से देखा था. उसने जो कुछ मालाबार में देखा उसे अपनी पुस्तक ‘वौयेज टू ईस्ट इण्डीज’ में लिखा है:
”कालीकट में हिन्दू आदमियों और औरतों को छोटी गलतियों के लिए फाँसी पर लटका दिया जाता था ताकि वो जल्दी से जल्दी इस्लाम स्वीकार कर लें. पहले माताओं और उनके बच्चों को गर्दनों से बाँधकर लटकाकर फाँसी दी जाती थी. उस बर्बर टीपू द्वारा नंगे हिन्दुओं और ईसाई लोगों को हाथियों की टांगों से बँधवा दिया जाता था और हाथियों को तब तक दौड़ाया जाता था जब तक कि उन असहाय निरीह विपत्तिग्रस्त प्राणियों के शरीरों के चिथड़े-चिथड़े नहीं हो जाते थे.
मन्दिरों और गिरिजों में आग लगाने, खण्डित करने, और ध्वंस करने के आदेश दिये जाते थे. टीपू की सेना से बचकर भागने वालों और वाराप्पुझा पहुँच पाने वाले अभागे व्यक्तियों से सुनकर मैं विचलित हो उठा था… मैंने स्वंय अनेकों ऐसे विपत्ति ग्रस्त व्यक्तियों को वाराप्पुझा नदी को नाव द्वारा पार जाने के लिए सहयोग किया था.’ ‘ (वौयेज टू ईस्ट इण्डीजः फ्रा बर्थोलोमियो पृष्ठ १४१-१४२)
टीपू सुल्तान की डायरी
“चिराकुल राजा ने मेरी सेना द्वारा स्थानीय मन्दिरों को विनाश से बचाने के लिए मुझे चार लाख रुपये का सोना चाँदी देने का प्रस्ताव रखा था. किन्तु मैंने उत्तर दिया यदि सारी दुनिया भी मुझे दे दी जाए तो भी मैं हिन्दू मन्दिरों को ध्वंस करने से नहीं रुकूँगा (फ्रीडम स्ट्रगिल इन केरल: सरदार के.एम.पाणिक्कर).
टीपू द्वारा केरल की विजय का प्रलयंकारी एवं सजीव वर्णन, ‘गजैटियर ऑफ केरल के सम्पादक और विख्यात इतिहासकार ए. श्रीधर मैनन द्वारा किया गया है. उसके अनुसार, “हिन्दू लोग, विशेष कर नायर और सरदार जाति के लोग जिन्होंने टीपू के पहले से ही इस्लामी आक्रमणकारियों का प्रतिरोध किया था, टीपू के क्रोध का प्रमुख निशाना बन गये थे. सैकड़ों नायर महिलाओं और बच्चों को पकड़ कर श्री रंगपट्टनम ले जाया गया और डचों के हाथ दास के रूप में बेच दिया गया था. हजारों ब्राह्मणों, क्षत्रियों और हिन्दुओं के अन्य सम्माननीय जाति के लोगों को इस्लाम या मृत्यु में से एक चुनने को बाध्य किया गया.”
अफगानिस्तान के शाह से मिलकर भारत विरोधी षड्यंत्र
मैसूर के तृतीय युद्ध (१७९२) के पहले से ही टीपू सुल्तान अफगानिस्तान के कट्टर इस्लामी शासक जमनशाह जो भारत में हिन्दुओं के खून की होली खेलने वाले अहमदशाह अब्दाली का परपोता था को पत्र लिखा करता था जिसे कबीर कौसर ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान (पृष्ठ१४१-१४७) में इसका अनुवाद किया है:
१. टीपू के ज़मन शाह के लिए पत्र
”महामहिम आपको सूचित किया गया होगा कि, मेरी महान अभिलाषा का उद्देश्य जिहाद है. मेरी इस युक्ति का अल्लाह ‘नोआ के आर्क’ की भाँति रक्षा करता है और त्यागे हुए काफिरों की बढ़ी हुई भुजाओं को काटता रहता है.”
२. टीपू से जमनशाह को पत्र दिनांक ५ फरवरी १७९७:
”… .इन परिस्थितियों में जो, पूर्व से लेकर पश्चिम तक, मैं विचार करता हूँ कि अल्लाह और उसके पैगम्बर के आदेशों से हमें अपने धर्म के शत्रुओं के विरुद्ध जिहाद करने के लिए, संगठित हो जाना चाहिए. इस क्षेत्र में इस्लाम के अनुयाई, शुक्रवार के दिन एक निश्चित किये हुए स्थान पर एकत्र होकर प्रार्थना करते हैं.
”हे अल्लाह! उन लोगों को, जिन्होंने इस्लाम का मार्ग रोक रखा है, कत्ल कर दो. उनके पापों को लिए, उनके निश्चित दण्ड द्वारा, उनके सिरों को दण्ड दो.”
मेरा पूरा विश्वास है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह अपने प्रियजनों के हित के लिए उनकी प्रार्थनाएं स्वीकार कर लेगा और तेरी (अल्लाह की) सेनायें ही विजयी होंगी.”
श्रीरंगपट्टनम हारने के बाद (४ मई १७९९) ज़ब्त की गई टीपू सुलतान की तलवार की मूठ पर लिखा है: “मेरी तलवार काफिरों के लिए चमकती है, ऐ खुदा!! उसे विजयी बना, जो पैगम्बर पर भरोसा करता है, जो मोहम्मद पर विश्वास नहीं करते उनका नाश करना और जो इस तरफ झुकाव रखते हैं, उन्हें बचाना…” (हिस्ट्री ऑफ मैसूर सी.एच. राव खण्ड ३, पृष्ठ १०७३)
REF:
https://truehistoryofindia.in/tipu-sultan-or-tipu-shaitan/