किताबें यानी पढा-लिखा व्यक्ति ट्रैप हो सकता है। लेकिन व्यक्तियों को पढ़ने व समझने वाला मुश्किल से जाल में आता है या कहे आता ही नहीं है।
देश के समक्ष दो कट्टर उदाहरण है। 2004 से 2014 तक पूर्व आरबीआई गवर्नर, वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री पोर्टफोलियो वाले महान अर्थशास्त्री व्यक्त्वि रबर स्टैम्प बने रहे। और बड़े बड़े घोटाले निकलते रहे। तो वही, 2013 से वर्तमान में दिल्ली कट्टर पढ़े-लिखे व्यक्त्वि के कारनामे देख रही है। जिसने खुद कोई ज़िम्मेदारी नहीं ले रखी है फिर भी लूट में सरदार बना हुआ है।
वर्तमान पीएम मोदी को अनपढ़, चौथी फैल राजा सरीखे तमगे देने वाले पढ़े-लिखे देखें, पीएम मोदी पापुआ न्यू गिनी पहुँचे तो पीएम जेम्स मारापे स्वयं रिसीव करने गए और पैर छूकर स्वागत किया। फिजी ने अपना सर्वोच्च सम्मान दिया। अभी ऑस्ट्रेलिया में है और वहाँ के पीएम एंथोनी अल्बनिज कहते है, "पीएम मोदी इज द बॉस, जहाँ जाते है वहाँ रॉक स्टार जैसा स्वागत होता है।"
पीएम मोदी ने भारत का नेतृत्व संभालते ही छोटे छोटे देशों पर ध्यान केंद्रित किया। 28 साल बाद 2014 में कोई भारतीय पीएम ऑस्ट्रेलिया पहुँचा था। ऐसे अन्य देश भी रहे, जो भारत की पकड़ से दूर थे। ऐसे ही छोटे छोटे कदम से पीएम मोदी 5 वीटो पवार देशों की आंखों में आँखें डालकर बात करते है। तभी तो अमेरिका के राष्ट्रपति कहते है, "आपका ऑटोग्राफ लेना पड़ेगा, अमेरिका में आपकी लोकप्रियता बहुत है।"
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के साथ रूस वॉर पर बातचीत की और बतलाया 'यूक्रेन युद्ध में मेरा संदर्भ मानवीय मुद्दा है।'
तो जी-7 में मुखरता व प्रमुखता से कहा, "अंतरराष्ट्रीय कानूनों, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए।"
पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र को भी केंद्र में रखकर बड़ी बात कही, ''वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि हमारा साझा उद्देश्य है। वे वर्तमान की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करते। इसलिए आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र जैसे बड़े संस्थानों में सुधारों को लागू किया जाना चाहिए। उन्हें ग्लोबल साउथ की आवाज भी बनना होगा। अन्यथा हम केवल संघर्षों को समाप्त करने के बारे में बात करते रहेंगे। संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद सिर्फ वार्ता की दुकान बनकर रह जाएंगे।''
देश हित में कार्य करने वाला व्यक्त्वि, उन तथाकथित पढ़े-लिखों से लाख गुना बेहतर है। जो देश की बर्बादी, शांति और अखंडता के लिए खतनाक बने, अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए अराजक बन बैठें...
धीरे धीरे पश्चिमी देश भारत के पीछे खड़े होने पर विवश होंगे और भारतीय रुपया भी पैन वर्ल्ड करंसी में अव्वल स्थान पर पहुँचने वाला है। 1945 में अमेरिका की ताकत के समक्ष राष्ट्र संघ को रद्द करके संयुक्त राष्ट्र बनाया गया था। इसमें अमेरिका की भागीदारी बहुत अधिक है, इसलिए मैं माने प्रतिबंध थोपता आया है। लेकिन अब माहौल बदलने लगा है भारत पर खूब दबाव डाला गया था कि यूक्रेन-रूस युद्ध में नाटो का पक्ष ले। लेकिन पीएम मोदी के नेतृत्व में विदेश मंत्री एस जय शंकर ने पश्चिमी देशों के मंचो पर यूरोप व उसके हेड अमेरिका को खुलेआम लताड़ा और अपना क्लियर रुख बतला दिया।
देशहित में सोचने व कार्य करने वालों के इरादे स्पष्ट रहते है कोई बरगला नहीं सकता है। इसलिए तो अमेरिका से भारत के लिए जिस अम्बेसडर की नियुक्ति चर्चाओं में है मोदी को खास पसंद न करता है। इसपर विदेश मंत्री ने मस्त जबाव दिया था... आने तो दीजिए। कुछ लगेगा तो डिपोर्ट करवा देंगे।
समझ मे नही आता, पंचजन्य को मोदी का भाट, चारण किसने बना दिया, इतनी चाटुकारी तो गोदी मीडिया नही करता, कुछ तो शर्म करें ये लिखने मे कि भारतीय कर्रेंसी ग्लोबल कर्रेंसी बनने जा रही है, अफीमची कहीं के, अपने आकाओ मोदी योगी के साथ तुम भी नशेड़ी हो क्या, मिथ्याभीमानी फ़र्ज़ी राष्ट्रवादियों.. चाटुकारी और प्रछन्न धृष्टता और निर्लज्जता की भी एक मर्यादा होती है, फ़र्ज़ी डिग्री वाले के प्रशंसक, RSS के भोंपू, हिंदू मति नाशक फ़र्ज़ी मीडिया!
ReplyDeleteअजय बलानी, आपकी भाषा आपका संस्कृति बताता है। आप मोदी से इतना ईस्या करते हैं कि भारत भूमि को भी नफरत से देखते हैं।
DeleteAjay balaji bhang ke nashe tum ho jo pappu jaiso ki chatukarita mein lage ho.kajrudin jaiso ke charano mein baithe kar unke gyan ke guun gaon aur apni dal roti chalao.kyunki desh ki tarakki toh tumhe sahn hogi nhi.
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