हम ऑर्गेनिक खेती करते थे।
पश्चिम ने कहा पेस्टीसाइड डालो मूर्खों।
आज वही पश्चिम ऑर्गेनिक खेती को कहने लगा है।
हम मोटा अनाज खाते थे।
पश्चिम ने कहा कि आटा मैदा खाओ मूर्खों।
आज वही पश्चिम मिलेट की बात करने लगा है।
हम आयुर्वेद पर चलते थे।
पश्चिम ने कहा एलोपेथी अपनाओ मूर्खों।
आज वही पश्चिम आयुर्वेद को हर्बल कह अपनाने लगा है।
हम पेड़, नदी, धरती हर किसी को पूजते थे।
पश्चिम ने कहा ये हैं जाहिल पैगन मूर्ख।
आज वही पश्चिम क्लाइमेट चेंज की बात करने लगा है।
हम योग और ध्यान किया करते थे।
पश्चिम ने कहा मसल पॉवर की बात करो मूर्खों।
आज वही पश्चिम मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो योग और ध्यान करने लगा है।
कहने का अर्थ की पश्चिम ने हमारे हर कॉन्सेप्ट का मजाक बनाया और हमें उनके जैसा करने को कहा लेकिन देर सवेर इन्हें अक्ल आ ही गयी और ये हमारे कॉन्सेप्ट को अपनाने को मजबूर हुए।
इसी तरह आजकल पश्चिम हमें ये सिखा रहा है कि ह्यूमन बॉडी और उसकी नीड क्या होती है। ये हमें टेस्टोस्टेरोन, एस्ट्रोजन, डोपामिन का ज्ञान दे रहा है।
जबकि जब पश्चिम पाषाण युग मे जी रहा था उससे पहले से हमारे यहां ऋषि(वैज्ञानिक) उस स्तर पर पहुंच गए थे वो इंद्रियों तक को समझ गए थे कि मानव शरीर और उसकी जरूरतें कुछ और नही बल्कि इन्ही इंद्रियों के बेकाबू और काबू करने का खेल मात्र है।
कुम्भ में अधिकतर विदेशी आकर यही सवाल करते हैं कि इतने सालों से कैसे साधु लोग बिना सेक्स के रह रहे हैं?
कैसे ये इसपर कंट्रोल कर सकते हैं?
और जानकर दंग रह जाते हैं कि भारत की ऋषि परम्परा कैसे खुद को भोग विलास से दूर इतनी आसानी से रख लेती है।
कहने का मतलब जिस सेक्स को पश्चिम एक्सपेरिमेंट के नाम पर अनाप शनाप रूप से फैला और सीखा रहा है उसके उलट भारत मे सेक्स का इतना गहरा ज्ञान है कि लोग कैसी संतान चाहिए इसपर भी मास्टर हैं।
पीरियड के कितने दिन बाद छोड़ो बल्कि कौन से दिन सम्भोग से पुत्र या पुत्री होगी ये तक यहां सदियों से पता था।
किस नक्षत्र और गृह दशा में सम्भोग करने से संतान को राजयोग प्राप्त होगा, ये तक पता था।
कौन से वो काल, परिस्थिति थी जब कोई महापुरुष जन्म लिया था और क्या ऐसा दिन फिर खुद को दोहरायेगा यहां तक हमारे ऋषि जानते थे।
अब ऐसे देश को कुछ हावर्ड से पढ़े समझाने चले हैं क्योंकि उन गुलामों को लगता है कि यहां वाले मूर्ख हैं जो एक समय दुनिया मे "विश्वगुरु" से पहचाने जाते थे।