माता जानकी के अपहरण का सुझाव लंकेश रावण को सर्वप्रथम किसने दिया था ?
( महर्षि वाल्मीकिकृत रामायण के आधार पर)
अधिकतर लोग इसका उत्तर शूर्पणखा बताएंगे , पर वस्तुतः ऐसा नहीं है। तो आइए ! चलते हैं , हम वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड में , जहां सर्वप्रथम रावण को माता जानकी के अपहरण का सुझाव दिया गया था।
हम सभी जानते हैं कि पंचवटी आश्रम में जब शूर्पणखा नाम की राक्षसी माता सीता को खाने के लिए झपटी थी , तब लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट लिए थे।
तब वह वहां से भाग कर जनस्थान-निवासी अपने भाई ' खर ' के पास पहुंची और सारा वृत्तांत सुनाया। तब राक्षस खर ने अपने सेनापति दूषण सहित 14000 राक्षसों के साथ पंचवटी पहुंच कर श्रीराम से युद्ध प्रारंभ किया।
युद्ध का वर्णन करते हुए वाल्मीकि जी लिखते हैं -
चतुर्दशसहस्राणि रक्षसां भीमकर्मणाम्।
हतान्येकेन रामेण मानुषेण पदातिना।।
मानवरूपधारी श्रीराम अकेले और पैदल थे , तो भी उन्होंने भयानक कर्म करने वाले चौदह हजार राक्षसों को तत्काल मौत के घाट उतार दिया।
त्वरमाणस्ततो गत्वा जनस्थानदकम्पन:।
प्रविश्य लंका वेगेन रावणं वाक्यमब्रवीत्।।
तदनन्तर जनस्थान से " अकम्पन " नामक राक्षस बड़ी उतावली के साथ लंका की ओर गया और शीघ्र ही उस पुरी में प्रवेश करके रावण से कहा -
जनस्थानस्थिता राजन् राक्षसा बहवो हता:।
खरश्च निहत: संख्ये कथंचिदहमागत:।।
राजन् ! जनस्थान में जो बहुत-से राक्षस रहते थे , वे सब मार डाले गए। खर युद्ध में मारा गया । मैं किसी तरह जान बचाकर यहां आया हूं।
अकम्पन की बात सुनकर रावण ने कहा -
गमिष्यामि जनस्थानं रामं हन्तुं सलक्ष्मणम्।।
मैं अभी लक्ष्मणसहित राम का वध करने के लिए जनस्थान को जाऊंगा।
रावण से यह सुनकर अकम्पन ने कहा - आप अथवा समस्त राक्षस-जगत भी युद्ध में श्री राम को नहीं जीत सकते। उनके वध का एक उपाय मुझे सूझा है।
तस्यापहर भार्यां त्वं तं प्रमथ्य महावने।
सीतया रहितो रामो न चैव हि भविष्यति ।।
उस विशाल वन में जिस किसी भी उपाय से श्रीराम को धोखे में डालकर आप उनकी पत्नी का अपहरण कर लें। सीता से बिछुड़ जाने पर श्रीराम कदापि जीवित नहीं रहेंगे।
दूसरे दिन ही , अकेले रावण सारथी के साथ ताड़का पुत्र मारीच से मिला और सीता के अपहरण में उसका सहयोग मांगा। मारीच ने कहा - निशाचर शिरोमणि ! मित्र के रुप में तुम्हारा वह कौन सा ऐसा शत्रु है, जिसने तुम्हें सीता को हर लेने की सलाह दी है ? कौन ऐसा पुरुष है , जो तुमसे सुख और आदर पाकर भी प्रसन्न नहीं है। अतः तुम्हारी बुराई करना चाहता है। राजन् ! किसने तुम्हें ऐसी खोटी सलाह देकर कुमार्ग पर पहुंचाया है ?
तुम सदा लंकापुरी में अपनी स्त्रियों के साथ रमण करो और राम अपनी पत्नी के साथ वन में विहार करें।
मारीच के इस प्रकार कहने -समझाने पर दशमुख रावण लंका को लौट गया था।
(उपर्युक्त प्रसंग का वर्णन तुलसीदास जी ने रामचरित - मानस में नहीं किया है , लेकिन उन्होंने बालकांड के १८० वें दोहे में " अकंपन " के नाम का उल्लेख किया है। )
दूसरी बार जब सूर्पनखा ने रावण से सीता को हरने की बात कही , तब रावण सीता को हरने के लिए पुनः मारीच के पास गया था। इस प्रसंग का वर्णन रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने किया है।
मिथिलेश ओझा की ओर से आपको नमन एवं वंदन।
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।