आयुर्वेदिक औषधियों में विराजती हैं नव दुर्गे
आयुर्वेद में कुछ औषधियों को माँ दुर्गा का प्रतिरूप बताया गया है।ये नौ औषधियाँ माँ दुर्गा और शक्ति का स्वरूप होने के कारण दुर्गाकवच के नाम से भी जानी जाती हैं।एक कवच की भांति इन औषधियों में व्यक्ति को विभिन्न रोगों से बचाकर रखने की शक्ति होती है। आइये देखें नौदुर्गा औषधि कवच क्या हैं।
माँ शैलपुत्री : हरड़
नवदुर्गा का प्रथम रूप माँ शैलपुत्री का है जो पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण दिया गया है। औषधि रूप में माँ दुर्गा हरड़ या हरीतकी के रूप में विराजमान हैं। अनेक रोगों में काम आने वाली हरड़,आयुर्वेद की प्रमुख औषध मूल रूप से यह सात प्रकार की होती है। एक अच्छे रोगनाशक के रूप में इसे,कंजंक्टिवाइटिस गैस संबंधी परेशानी और पुराने बुखार, साइनस, एनीमिया और हिस्टीरिया आदि में प्रयोग किया जाता है ।
माँ ब्रह्मचारिणी: ब्राह्मी
नवदुर्गा का दूसरा रूप माँ ब्रह्मचारिणी का है। देवी का यह रूप महादेव को पाने के लिए की गयी गहन तपस्या के कारण दिया गया था। औषध विज्ञान में ब्राह्मी को देवी के इसी रूप का प्रतिरूप माना जाता है, मानसिक बल देने वाली इस औषधि को मस्तिष्क संबंधी परेशानियों जैसे याददाश्त बढ़ाने और मजबूत करने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त शरीर के रक्त से संबन्धित रोग, गैस और मूत्र से जुड़ी परेशानियाँ आदि के लिए भी ब्राह्मी का उपयोग किया जाता है।
माँ चंद्रघंटा: चंदूसुर
दुर्गा शक्ति का तीसरा रूप चंद्रघंटा है जो माँ के माथे पर अर्धचंद्र के विराजमान होने के कारण दिया गया है।औषधि रूप में माँ का यह रूप चंदूसुर में विद्यमान है।दरअसल यह एक प्रकार का पौधा है जो देखने में धनिया जैसा लगता है और इसी कारण इसकी सब्जी भी बनाई जाती है,इस जड़ी-बूटी का प्रयोग मोटापा दूर करने, शारीरिक बल में वृद्धि करने और दिल संबंधी बीमारियों को दूर करने में सफलता पूर्वक किया जाता है ।
माँ कुष्मांडा : कुम्हड़ा ( पेठा )
आदि शक्ति का चौथा स्वरूप अपनी स्मित से ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने के कारण कुष्मांडा कहलाता है। औषध रूप में माँ का यह रूप कुम्हड़ा या पेठा में दिखाई देता है। व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक बल बढ़ाने के लिए इसका उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है।
हृदय संबंधी परेशानियाँ, बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल को कम करना, शरीर में ठंडक देना और मूत्र वर्धी औषधि के रूप में इसका उपयोग किया जाता रहा है । पेट संबंधी परेशानियाँ और शुगर को कंट्रोल करते हुए पित्त को भी नियंत्रित करता है। मानसिक शक्ति को बढ़ाने में तो यह रामबाण है।
माँ स्कन्दमाता : अलसी
देवी दुर्गा का पाँचवाँ रूप स्कन्दमाता का है। भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को स्कन्द के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए यहाँ माँ को स्कन्दमाता भी कहा जाता है। देवी दुर्गा का यह रूप अलसी नाम की औषधि में पाया जाता है।पेट की गर्मी से उत्पन्न होने वाले रोग जैसे वात, पित्त और कफ जैसे रोगों में अलसी के उपयोग से तुरंत आराम आता है। नवीनतम खोज के अनुसार अलसी में ओमेगा 3 और फाइबर की अधिकता होने के कारण इसमें विभिन्न जटिल रोगों से भी लड़ने की शक्ति इसमें है।
माँ कात्यायनी: मचिका ( मोइया )
कात्यायन ऋषि के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण माँ का छटा रूप देवी कात्यायनी का है। आयुर्वेद में माँ का यह रूप मचिका के नाम से जाना जाता है। इसका उपयोग कफ, पित्त और गले के रोग को ठीक करने के लिए किया जाता है।
माँ कालरात्रि : नागदौन
शत्रुओं का नाश करने वाला देवी का सातवाँ रूप कालरात्रि या शुभंकरी का भी है।आयुर्वेद में नागदौन के नाम से देवी दुर्गा का यह औषध रूप मन और मस्तिष्क के रोगों के उपचार में काम आता है।अगर इसका रोज सेवन किया जाए तो मौसमी बीमारियाँ तो शरीर के पास ही नहीं आतीं है।
माँ महागौरी : तुलसी
देवी दुर्गा का आठवाँ स्वरूप गौरी का माना जाता है। औषध रूप में देवी दुर्गा का यह रूप तुलसी के पत्ते में होता है। प्राचीन काल से तुलसी का पौधा हर घर में जीवन दायी औषध के रूप में लगाया जा रहा है।छोटे-मोटे बुखार से लेकर अनेक गंभीर रोगों में भी तुलसी का उपयोग बेहिचक किया जाता है। तुलसी के पत्ते के रोज सेवन से शरीर का रक्त शुद्ध होता है और हृदय रोग की संभावना को भी समूल नष्ट होता है ।
माँ सिद्धिदात्री: शतावरी
माँ शक्ति का नवमं रूप सिद्धिदात्री का है।आयुर्वेद में दुर्गा का यह रूप शतावरी में पाया जाता है।इसके नियमित सेवन से बुद्धि को बल मिलता है और शरीर में शक्ति आती है। इसके अलावा रक्त को शुद्ध करके रोग मुक्त करता है और पित्त का भी नाश करता है।
जय माता दी 🙏🏻
जय हिंदू राष्ट्र भारत