. #शुभ_रात्रि
अमुक व्यक्ति ने आत्म हत्या कर ली, भाई द्वारा भाई की हत्या कर दी गयी, कपड़ों में मिट्टी का तेल छिड़क कर पत्नी ने खुदखुशी कर ली, महिला बच्चों समेत कुएँ में कूदी, बहू की हत्या के जुर्म में पति, सास व देवर को आजीवन कारावास - ऐसी घटनाएँ आये दिन समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं। शायद ही कोई ऐसा दिन होगा जिस दिन परिवारों में कलह, हिंसा, मारपीट आदि के समाचार न मिलते हों। यह समाचार एक ओर उस पतन के द्योतक हैं जिससे आज का समाज बुरी तरह ग्रस्त होता चला जा रहा है। दूसरी ओर वे इस तथ्य के प्रमाण भी हैं कि हमारा पारिवारिक स्नेह, आत्मीयता और सौमनस्य किस तरह पीड़ा और पतन का प्रतीक बन गया है।
इस युग में ऐसे परिवारों की संख्या बहुत कम ही होगी जिसमें स्नेह- सौजन्य एवं सहयोग रूपी अमृत की धारा बहती हो । घर- घर में प्रत्येक सदस्य के बीच कलह-क्लेश, ईर्ष्या- द्वेष, वैमनस्य तथा मनोमालिन्य की भावनाएँ दृष्टिगोचर होती हैं। परिवार में पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई- भाई, सास-बहू के मध्य जो प्यार और कर्त्तव्य - भावना होनी चाहिए, उसकी सभी उपेक्षा करते दिखाई देते हैं।
परिवार की इन असह्य विकृतियों के कारण लोग पारिवारिक जीवन से ऊबे, शोक - सन्ताप में डूबे अपने भाग्य को कोसते नजर आते हैं। ऐसे कलुषित एवं कलह पूर्ण पारिवारिक जीवन में सुधार लाने के लिए आवश्यक है कि उसमें स्नेह, ममता, सौहार्द्र, उदारता इत्यादि दैवी गुणों के बीज बोये जायें और उसे सुव्यवस्थित बनाया जाये, क्योंकि व्यवस्थाक्रम में गड़बड़ी होने पर ही मनोमालिन्य, असन्तोष तथा लड़ाई झगड़ों की शाखाएँ फूटने लगती हैं। परिणाम स्वरूप उस वातावरण में सुख-समृद्धि, उन्न्ति का मार्ग अवरूद्ध होता जाता है। इन्हीं परिस्थितियों के उत्पन्न होने के कारण ही गृहस्थ जीवन की दिशा निर्धारित नहीं होती । चलने से पूर्व यदि अपने गन्तव्य स्थान का निर्धारण कर लिया जाय तो मंजिल तक पहुँचने में किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। इसी प्रकार पारिवारिक जीवन प्रारम्भ करने से पहले उसका आयोजन समझ लिया जाय और उसके अनुरूप ही चला जाय तो ही उत्पन्न होने वाली विकृतियों का उभार सम्भव है। अतः गृहस्थ बसाने से पूर्व उसका अर्थ एवं उद्देश्य भली प्रकार समझ लेना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। मूलतः गृहस्थ का अर्थ परिवार में दूसरे के प्रति आत्मीयता और संवेदना के भावों से होता है। भारतीय संस्कृति में पारिवारिक जीवन का एक निश्चित एवं श्रेष्ठ उद्देश्य रहा है। सुखी और समृद्ध जीवन के साथ- साथ सेवा, संवेदना, त्याग, उदारता आदि दैवी गुणों का विकास ही उसका मूल आधार है।
. 🚩जय आदिशक्ति 🚩