🤗🚩पुनर्जन्म की परिकल्पना से प्रेरित हमारे शास्त्रों में मानव जीवन प्राप्त करना एक अहम सौभाग्य माना गया है।*
👉🚩मनुष्य भी अन्य जीवों की तरह सजीव की श्रेणी में आता है। लेकिन मानव की ¨चतनशीलता की प्रवृति उसे अन्य जीवों से अलग करती है। जल व गंगा जल में अंतर केवल मानव ही समझ सकता है। यही ¨चतनशीलता व अच्छे-बुरे का भेद किसी व्यक्ति के जीवन में दायित्व बोध पैदा करती है। दायित्व बोध की संकल्पना में एक साथ अनेक भाव मिश्रित हैं। यह किसी व्यक्ति के निजी स्वतंत्रता का बोध कराता है। लेकिन दूसरी ओर जब मेरे दायित्व की बात आती है, तो हमें अनेक पहलुओं पर सतर्क हो जाना चाहिए। एक व्यक्ति के रुप में हम अपने मौलिक अधिकारों का उपयोग करते हैं। साथ ही हमें व्यक्ति व समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन भी करना होगा। किसी व्यक्ति को उसके जीवन व दायित्व का बोध कराना ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है। इसी प्रक्रिया को संस्कार भी कहा जाता है। जीवन व उसके दायित्व का बोध हमें जन्म लेने के बाद परिवार में ही मिलना प्रारंभ हो जाता है। भाषा सिखना, बड़ों का आदर करना, छोटों के प्रति प्यार प्रदर्शित करना आदि बातें हम माता-पिता, दादा-दादी व भाई-बहनों के सानिध्य में परिवार में ही सीखते हैं। इसके लिए हमें किताबों व विद्यालय की औपचारिक शिक्षा प्रणाली का सहारा नहीं लेना पड़ता है। जन्म के बाद बालक अवचेतन रुप में उन सभी चीजों को सीखता है, जो उसके परिवार में प्रचलित है।
हमारे दार्शनिकों, संतों ने विश्व कल्याण की बात कही है। समाज के लिये अधिकतम देना ही उत्तम मार्ग है, जिस पर चलकर ही भारत का भविष्य अच्छा होगा। उसमें हम सभी को सहभागी बनना होगा। जीवन में दायित्व बोध लाने के लिए आज इस बात की जरूरत है कि कि बच्चे केवल किताबी ज्ञान तक ही सीमित न रहें। बल्कि परियोजना कार्यों के द्वारा किसी कार्य को करके सीखने की प्रक्रिया को अपनाएं। समाज की कार्य प्रणाली को समझें व संवेदनशीलता, ईमानदारी, मानवतावादी सोच, देशभक्ति, त्याग जैसे विचारों से ओतप्रोत होकर एक उपयोगी नागरिक बनें।
प्राचीन काल की शिक्षण व्यवस्था गुरूकुल पद्धति पर आधारित थी। वहां बच्चों को वेदों व उपनिषदों को आत्मसात करने के साथ ही सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक ज्ञान भी दिया जाता था। उस समय के अनेक उदाहरण जैसे गुरूभक्त आरुणी, मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार ने अपने दायित्वों को निभाया। वर्तमान समय में चोरी, हत्या, दुष्कर्म, आतंकवाद, नशाखोरी आदि अनेकों बुराइयां आई हैं। इन सभी बुराइयों का मुख्य कारण है लोगों में दायित्व बोध की कमी। मेरा जीवन मेरा दायित्व यह बोध कराता है कि व्यक्ति, समाज व मानव सभ्यता एक सूत्र में बंधे हुए हैं। जबकि वर्तमान समय में व्यक्ति स्वयं के विकास तक ही सीमित है। यदि जीवन व दायित्व को पुनस्र्थापित करना है तो हमें केवल किताबी ज्ञान व स्कूली शिक्षा पर ही निर्भर नहीं रहना होगा। बल्कि बच्चों में नैतिक मूल्यों का बीज बोना होगा। उनके सामने नैतिक आचरण भी प्रदर्शित करना होगा।
. 🚩जय सियाराम 🚩
. 🚩जय हनुमान 🚩