होली पर लिब्रांडू गिरोह सक्रिय हो चुका है कोई कहता है कि यह स्त्री का अपमान है तो कोई ज्ञान देता है कि एक मोहल्ले में एक ही होली जलाई जानी चाहिए।
ऐसे बेतुके बयानों पर लोगों ने लिब्रांडू को जमकर लताड़ा है।
एक प्रोपेगेंडा धारी लिब्रांडू ने कहा कि होली को जलाना स्त्री विरोधी त्यौहार है हम यदि प्रगति सील समाज का अंग है तो इसका विरोध करना चाहिए ।जब सती प्रथा बंद हो सकती है तो होलिका दहन भी बंद होना चाहिए यह समस्त स्त्री जाति का अपमान है जो किसी भी समाज के लिए घातक है
ऐसे लोगों को कोई ज्ञान नहीं होता - यह इतने धूर्त हैं कि राक्षसी जो एक बालक को मार डालना चाहती है उसे स्त्री कहकर संबोधित करते हैं यानी समस्त स्त्रियों का घोर अपमान करते हैं।
ऐसे में लोगों ने उसे ज्ञान दिया कि होली का एक राक्षसी थी जो अपने भतीजे प्रह्लाद को जलाना चाहती थी लेकिन आग में वह खुद जल गई और लोगों ने लिब्रांडू से पूछा कि क्या एक मासूम को जिंदा जलाने की साजिश रचने वाली का समर्थन किया जाना चाहिए
इसके अलावा दैनिक जागरण ने भी ज्ञान बांटते हुए एक मुहिम चलाई "एक मोहल्ला, एक होलिका" और इसने अपने हिंदी विरोधी एजेंडे के तहत होलिका दहन को प्रदूषण से जोड़ दिया।
ये कोई नई बात भी नहीं है। होली को लेकर पहले भी ज्ञान दिया जाता रहा है। जैसे, होली आते ही सब ‘वॉटर एक्टिविस्ट’ बन जाते हैं और पानी बचाने की बातें करने लगते हैं। ऐसे सेलेब्रिटी जो अपने घर में स्विमिंग पूल में नहा-नहा कर रोज हजारों लीटर पानी बर्बाद करते हैं, वो भी होली पर पानी बचाने का ज्ञान देते नजर आते हैं। कभी ‘सूखी होली’ खेलने को कहा जाता है तो कभी केवल फूलों का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।
लेकिन सोचो हिंदुओं ,जब रंग ही गायब हो जाए तो होली कैसी? और आखिर सारा ज्ञान केवल हिंदू त्योहारों पर यह हिंदू परंपराओं पर हिंदुओं को ही क्यों दिया जाता है आखिर क्यों अन्य मजहब और पंथ के लोगों को उनकी कुप्रथा ऊपर कोई ज्ञान देने वाला खड़ा ही नहीं होता।
ईद-क्रिसमस पर जम कर बधाइयाँ देने वाली मीडिया होली पर जम कर हिन्दुओं को नीचा दिखाती है। ‘दैनिक जागरण’ ने भी हिन्दुओं को ये सलाह दिया – यातायात बाधित न करें, इससे हमें और आपको ही परेशानी होगी, हाईटेंशन व अन्य तारों को बचाएँ, लकड़ी की जगह उपलों का प्रयोग करें, ताकि बचे रहें हमारे पेड़, ऐसा कोई सामान न जलाएँ जिससे पर्यावरण में प्रदूषण पैदा हो। क्या ईद-क्रिसमस पर ऐसे ज्ञान निकलते हैं?
अब जरा सोचिए। क्या ईद पर मीडिया लोगों को ये सलाह देती है कि एक मोहल्ले में एक ही बकरा काटें, क्योंकि जीव-जंतुओं की हत्या करना ठीक नहीं है? क्या ऐसे सलाह दिए जाते हैं कि जानवरों के खून को सड़क पर न बहाया जाए और बचे हुए मांस के टुकड़ों को सड़क पर न फेंका जाए? इससे तो बीमारी पैदा ही होती ही है। इस्लामी मुल्कों में सड़क पर खून की नदियाँ बहती दिखती हैं। ऐसे ही, ईद पर कभी ये ज्ञान नहीं दिया जाता कि सड़क जाम कर के नमाज न पढ़ें, इससे तो सचमुच यातायात बाधित होता है।
इसी तरह क्रिसमस और ईसाई नववर्ष के मौके पर कभी ये ज्ञान नहीं दिया जाता कि पटाखे न जलाएँ। दीवाली खत्म होते ही इस तरह का ज्ञान देने की तारीख़ एक्सपायर हो जाती है। क्रिसमस पर कभी आर्टिफिसियल पेड़ों को घर पर न लाने की सलाह नहीं दी जाती। कभी ये नहीं कहा जाता कि पार्टियों में पानी और भोजन बर्बाद न करें। उलटा और खुल कर जश्न मनाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि सारे पर्यावरण का ठेका हिन्दुओं ने ही ले रखा है जो प्रकृति की पूजा करते हैं।