. #शुभ_रात्रि
विश्व के सभी धर्म शास्त्रों व महापुरुषों ने हर प्राणी में परमेश्वर की झलक देखने को कहा है व अहिंसा को परमधर्म माना है। सभी धर्मों के प्रेणताओं ने अहिंसा , क्रूरता , असत्य , क्रोध , द्वेष व अन्य जीवों को बिना कारण कष्ट व पीड़ा पहुंचाने को पाप बताया है और अहिंसा , दया , क्षमा , सत्य , करूणा आदि को धर्म माना है। अधिकांश धर्मों ने विस्तार से मांसाहार के दोष बताए हैं और साथ ही निरीह प्राणी की हत्या का निषेध किया है। पशु , पक्षी एक ओर प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं तो दूसरी ओर मानव का तनिक सा प्रेम व दया पाकर मनुष्यों के प्रति स्वामीभक्त बने रहते हैं। हिन्दू धर्म शास्त्रों में सभी जीवों को ईश्वर का अंश माना गया है व अहिंसा , दया , प्रेम , क्षमा आदि गुणों को महत्व दिया है। महाभारत में भीष्म पितामह ने मांस खाने वाले , मांस का व्यापार करने वाले व मांस के लिए जीवन हत्या करने वाले तीनों को दोषी बताया हैं।
महर्षि दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में कहा है कि मांसाहार से मनुष्य का स्वभाव हिंसक हो जाता है। सिख पंथ में गुरुवाणी में गुरूमुखों के लिए कहा गया है ' हंसा हीरा मोती चुगण , बगु डडा मालण जावै ' अर्थात हंसों की खुराक मोती है और बुगलों की मछली , मेंढक आदि। कबीर साहब ने जो अहिंसा व दया की शिक्षा दी व मांस खाने की निंदा की है। गुरू साहबानों ने हिंसा न करने का आदेश स्पष्ट रूप से दिया है और जब हिंसा ही मना है तो मांस-मछली खाने का प्रश्न ही नहीं उठता। इसी कारण सभी सिख-गुरूद्वारों में लंगर में शाकाहार भोजन ही परोसा जाता है।
जैन मत का मुख्य सिद्धांत अहिंसा है। जैन धर्म में जहां जानवरों को शारीरिक कष्ट पहुंचाना , मारना व उन पर अधिक भार लादना तक पाप माना गया है और मांसाहार की सोच को भी पाप माना गया है। गीताके चौदहवें अध्याय में मनुष्य की वृत्तियां के तीन गुणों का वर्णन किया गया है (१) सत्वगुण-इससे ज्ञान पैदा होता है (२) रजोगण-लोभ पैदा होता है (३) तमोगुण-प्रमाद , मोह तथा अज्ञान पैदा होता है। सतरहवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने मनुष्य स्वभाव से उत्पन्न होने वाली श्रद्धा सात्विकी , राजसी और तामसी तीन प्रकार ही बताए हैं। सात्विक मनुष्य देवों को पूजते हैं। राजस पुरुष यक्ष-राक्षसों का तथा तामस मनुष्य भूत प्रेतों का पूजन करते हैं। श्रद्धालु और अश्रद्धालु मनुष्यों की पहचान भोजन की रुचि से हो जाती हैं क्योंकि आहार भी तीन प्रकार के बताए गए हैं ।
(१) सात्विक भोजन यह रसयुक्त होते हैं जैसे सब्जी , फल , अनाज , मक्खन , दूध , मेवे दाले आदि। इस प्रकार के भोजन से आयु की वृद्धि , बुद्धि , बल , अरोग्य , अंतकरण की शुद्धि , सुख शांति , अहिंसा भाव आदि प्रदान करते हैं। (२) राजसिक भोजन में अधिक कड़वे , खट्टे , नमकीन , गरम तीखे , रुखे और दाहकारक भोजन को पदार्थ मनुष्य को प्रिय होते हैं जो कि दुख , शोक और रोग को देने वाले हैं। (३) तामसिक भोजन में अधपके , रसपके , बासी , दुर्गन्धमय , अपवित्र , नशीले पदार्थ , मांस , मछली आदि के पदार्थ तामस मनुष्य को प्रिय लगते हैं जिससे मनुष्य को प्रिय लगते हैं जिससे मनुष्य को कुसंस्कारों की ओर ले जाने वाले , बुद्धिभ्रष्ट करने वाले , रोगों व आलस्य इत्यादि दुर्गुण देने वाले होते हैं।
सत्वगुण सुख में लगाता है और रजोगुण कर्म में तथा तमोगुण तो ज्ञान को ढक कर प्रासाद में लगाता है। रजोगुण के बढ़ने पर लोभ , प्रवृति , स्वार्थ बुद्धि , अशान्ति और विषय भोगों की लालसा उत्पन्न होती है। तमोगुण के बढ़ने पर अंतकरण और इन्द्रियों में अप्रकाश , अप्रवृत्ति और प्रसाद उत्पन्न होते हैं। आहार की शुद्धि से चित की शुद्धि होती है और चित की शुद्धि से बुद्धि शुद्ध होती है। अत: बुद्धि शुद्ध होने से आत्मा शुद्ध होती है और आत्मा शुद्ध होने से परमात्मा की प्राप्ति होती है। शाकाहारी सात्विकी भोजन नियमित रूप से करने से मन शुद्ध होता है। आत्मा शुद्ध पवित्र सात्विक अन्न से रहती है। सामवेद में 173 श्लोक का भावार्थ यह है कि सात्विक आहार के सेवन से मनुष्य बुद्धि को सम्पादन करें। यजुर्वेद भाष्यम के अष्ट अध्याय में बताया गया है कि सात्विक आहार के द्वारा प्रभु हमारी रुचि को ही परिवर्तित कर देते हैं और हम विद्वानों यज्ञिय देवों के सम्पर्क में रहकर अपने जीवनों को उत्तम बना पाते हैं।
. 🚩जय अम्बे गौरी 🚩