क्या हैआरती का महत्व?
आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना। आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है, विशेष रूप से प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है।
स्कंद पुराण में भगवान की आरती के संबंध में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता हो पूजा की विधि भी नहीं जानता हो। लेकिन भगवान की आरती की जा रही हो और उस पूूजन कार्य में श्रद्धा के साथ शामिल होकर आरती करें, तो भगवान उसकी पूजा को पूरी तरह से स्वीकार कर लेते हैं।
1 आरती दीपक से क्यों रुई के साथ घी की बाती जलाई जाती है। घी समृद्धि प्रदाता है। घी रुखापन दूर कर स्निग्धता प्रदान करता है। भगवान को अर्पित किए गए घी के दीपक का मतलब है कि जितनी स्निग्धता इस घी में है। उतनी ही स्निग्धता से हमारे जीवन के सभी अच्छे कार्य बनते चले जाएं।
2 आरती में शंख ध्वनि और घंटा ध्वनि क्यों आरती में बजने वाले शंख और घंटी के स्वर के साथ जिस किसी देवता को ध्यान करके गायन किया जाता है।उससे मन एक जगह केन्द्रित होता है,जिससे मन में चल रहे विचारों की उथल-पुथल कम होती जाती है।शरीर का रोम-रोम पुलकित हो उठता है,जिससे शरीर ऊर्जावान बनता है।
3 आरती कर्पूर से क्यों कर्पूर की महक तेजी से वायुमंडल में फैलती है। ब्रह्मांड में मौजूद सकारात्मक शक्तियों ( दैवीय शक्तियां ) को यह आकर्षित करती है।
4 आरती करते हुए भक्त के मन में ऐसी भावना होनी चाहिए कि मानो वह पंच-प्राणों ( पूरे मन के साथ ) की सहायता से ईश्वर की आरती उतार रहा हो।घी की ज्योति को आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानना चाहिए। यदि भक्त अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं तो यह पंचारती कहलाती है।
5 आरती दिन में एक से पांच बार की जा सकती है।घरों में आरती दो बार की जाती है। प्रातःकालीन और संध्याकालीन।
6 दीपभक्ति विज्ञान के अनुसार आरती से पहले भगवान को नमस्कार करते हुए तीनबार फूल अर्पित करना चाहिए।
7 उसके बाद एक दीपक में शुद्ध घी लेकर उसमें विषमसंख्या में यानी कि 1,3,5 या 7 बत्तियां जलाकर आरती करनी चाहिए। सामान्य तौर पर पांच बत्तियों से आरती की जाती है,जिसे पंच प्रदीप भी कहते हैं। इसके बाद कर्पूर से आरती की जाती है।
8 किसी विशेष पूजन में आरती पांच चीजों से की जा सकती है। पहली धूप से,दूसरी दीप से,तीसरी धुले हुए वस्त्र से,कर्पूर से ,पांचवी जल से।
कैसे सजाना चाहिए आरती का थाल?
आरती के थाल में एक जल से भरा लोटा,अर्पित किए जाने वाले फूल,कुमकुम,चावल,दीपक,धूप,कर्पूर,धुला हुआ वस्त्र,घंटी, आरती संग्रह की किताब रखी जाना चाहिए।थाल में कुमकुम से स्वस्तिक की आकृति बना लें।थाल पीतल या तांबे का लिया जाना चाहिए।
आरती करने की विधि
1 भगवान के सामने आरती इस प्रकार से घुमाते हुए करना चाहिए कि ऊँ जैसी आकृति बने।
2 अलग-अलग देवी-देवताओं के सामने दीपक को घुमाने की संख्या भी अलग है, जो इस प्रकार है।
👉भगवान शिव के सामने तीन या पांच बार घुमाएं।
👉भगवान गणेश के सामने चार बार घुमाएं।
👉भगवान विष्णु के सामने बारह बार घुमाएं।
👉भगवान रूद्र के सामने चौदह बार घुमाएं।
👉भगवान सूर्य के सामने सात बार घुमाएं।
👉भगवती दुर्गा जी के सामने नौ बार घुमाएं।
👉अन्य देवताओं के सामने सात बार घुमाएं।
3 आरती अपनी बांई ओर से शुरू करके दाईं ओर ले जाना चाहिए। इस क्रम को सात बार किया जाना चाहिए। सबसे पहले भगवान की मूर्ति के चरणों में चार बार,नाभि देश में दो बार और मुखमंडल में एक बार घुमाना चाहिए। इसके बाद देवमूर्ति के सामने आरती को गोलाकार सात बार घुमाना चाहिए।
4 पद्मपुराण में आरती के लिए कहा गया है कि कुंकुम,अगर, कपूर, घी और चन्दन की सात या पांच बत्तियां बनाकर अथवा रुई और घी की बत्तियां बनाकर शंख,घंटा आदि बजाते हुए आरती करनी चाहिए।
5 भगवान की आरती हो जाने के बाद थाल के चारों ओर जल घुमाया जाना चाहिए, जिससे आरती शांत की जाती है।
6 भगवान की आरती सम्पन्न हो जाने के बाद भक्तों को आरती दी जाती है।आरती अपने दाईं ओर से दी जानी चाहिए।
7 सभी भक्त आरती लेते हैं। आरती लेते समय भक्त अपने दोनों हाथों को नीचे को उलटा कर जोड़ते हैं।आरती पर से घुमा कर अपने माथे पर लगाते हैं।जिसके पीछे मान्यता है कि ईश्वरीय शक्ति उस ज्योत में समाई रहती हैं।जिस शक्ति का भाग भक्त माथे पर लेते हैं।एक और मान्यता के अनुसार इससे ईश्वर की नजर उतारी जाती है।जिसका असली कारण भगवान के प्रति अपने प्रेम व भक्ति को जताना होता है।
पूजा के बाद क्यों जरूरी है आरती ?
घर हो या मंदिर भगवान की पूजा के बाद घड़ी,घंटा और शंख ध्वनि के साथ आरती की जाती है।बिनाआरती के कोई भी पूजा अपूर्ण मानी जाती है।इसलिए पूजा शुरू करने से पहले लोगआरती की थाल सजाकर बैठते हैं।पूजा में आरती का इतना महत्व क्यों है?
इसका उत्तर स्कंद पुराण में मिलता है।इस पुराण में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता,पूजा की विधि नहीं जानता लेकिन आरती कर लेता है तो भगवान उसकी पूजा को पूर्णरूप से स्वीकार कर लेते हैं।