गीता वीडियो एवम पंचांग
गीता अध्याय 01 (अर्जुनविषादयोग) श्लोक 41
आज का पंचांग
गुरुवार, ०९/०३/२०२३,
चैत्र, कृष्ण २, युगाब्ध - ५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅ 🚩तिथि - द्वितीया रात्रि 08:54 तक तत्पश्चात तृतीया*
⛅दिनांक - 09 मार्च 2023
⛅दिन - गुरुवार
⛅शक संवत् - 1944
⛅अयन - उत्तरायण
⛅ऋतु - वसंत
⛅मास - चैत्र
⛅पक्ष - कृष्ण
⛅नक्षत्र - हस्त 10 मार्च सुबह 05:57 तक तत्पश्चात चित्रा
⛅योग - गण्ड रात्रि 09:08 तक तत्पश्चात वृद्धि
⛅राहु काल - दोपहर 02:19 से 03:48 तक
⛅सूर्योदय - 06:55
⛅सूर्यास्त - 06:46
⛅दिशा शूल - दक्षिण दिशा में
⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:17 से 06:06 तक
⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:26 से 01:14 तक
⛅व्रत पर्व विवरण - संत तुकारामजी द्वितीया
⛅विशेष - द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
🔹स्वस्तिक का महत्त्व क्यों ?🔹
🔸स्वस्तिक अत्यंत प्राचीनकाल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है । इसीलिए प्रत्येक शुभ और कल्याणकारी कार्य में सर्वप्रथम स्वस्तिक का चिह्न अंकित करने का आदिकाल से ही नियम है ।
🔸स्वस्तिक शब्द मूलभूत 'सु' और 'अस्' धातु से बना है । 'सु' का अर्थ है - अच्छा, कल्याणकारी, मंगलमय । 'अस्' का अर्थ है - अस्तित्व, सत्ता। तो स्वस्तिक माने कल्याण की सत्ता, मांगल्य का अस्तित्व ।
🔸स्वस्तिक शांति, समृद्धि एवं सौभाग्य का प्रतीक है । सनातन संस्कृति की परम्परा के अनुसार पूजन के अवसरों पर, दीपावली पर्व पर, बहीखाता पूजन में तथा विवाह, नवजात शिशु की छठी तथा अन्य शुभ प्रसंगों में व घर तथा मंदिरों के प्रवेशद्वार पर स्वस्तिक का चिह्न कुमकुम से बनाया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि 'हे प्रभु ! हमारा कार्य निर्विघ्न सफल हो और हमारे घर में जो अन्न, वस्त्र, वैभव आदि आयें वे पवित्र हों ।'
🔸किसी भी मंगल कार्य के प्रारम्भ में यह स्वस्ति मंत्र बोला जाता है :
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।
🔸'महान कीर्तिवाले इन्द्रदेव ! हमारा कल्याण कीजिये, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव (सूर्यदेव) ! हमारा कल्याण कीजिये, जिनका हथियार अटूट है ऐसे गरुड़देव ! हमारा मंगल कीजिये, बृहस्पतिजी ! हमारे घर में कल्याण की प्रतिष्ठा कीजिये ।' (यजुर्वेद : २५.१९)
🔹स्वस्तिक का आकृति विज्ञान स्वस्तिक हिन्दुओं का प्राचीन धर्म-प्रतीक है । यह आकृति ऋषि-मुनियों ने अति प्राचीनकाल में निर्मित की थी। एकमेव अद्वितीय ब्रह्म ही विश्वरूप में फैला है यह बात स्वस्तिक की खड़ी और आड़ी रेखाएँ समझाती हैं । स्वस्तिक की खड़ी रेखा ज्योतिर्लिंग का सूचन करती है और आड़ी रेखा विश्व का विस्तार बताती है । स्वस्तिक की चार भुजाएँ यानी भगवान श्रीविष्णु के चार हाथ । भगवान विष्णु अपने चार हाथों से दिशाओं का पालन करते हैं । देवताओं की शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएँ. - इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक यानी 'स्वस्तिक' !
🔸 सामुद्रिक शास्त्रों के अनुसार भी स्वस्तिक एक मांगलिक चिह्न है। भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के चरणों में भी स्वस्तिक चिह्न अंकित था ।
🔸 ब्रह्मवेत्ता संत पूज्य बापूजी अपने सत्संगों में बताते हैं कि "स्वस्तिक समृद्धि व अच्छे भावी का सूचक है । इसके दर्शन से जीवनशक्ति बढ़ती है । स्वस्तिक के चित्र को पलकें गिराये बिना एकटक निहारते हुए त्राटक का अभ्यास करके जीवनशक्ति का विकास किया जा सकता है । आपके घर की दीवारों पर स्वस्तिक का चिह्न अथवा ॐ का चित्र लगा दीजिये । उसको देखने से भी आपकी आध्यात्मिक आभा (aura) बढ़ेगी और घर में सात्त्विकता बनी रहेगी ।"
🌹 पारिवारिक कलहनाशक प्रयोग 🌹
👉🏻 पति-पत्नी में झगड़ा हो गया हो और उसका शमन करना हो तो पति-पत्नी दोनों पार्वतीजी को तिलक करके उनकी ओर एकटक देखें तथा प्रार्थना करें । अगर पति पत्नी को निकाल देना चाहता है तो पत्नी यह प्रयोग करें । इससे झगड़ा शांत हो जायेगा ।
🔹दही कैसी खाना ?🔹
👉🏻 दही खट्टा दुश्मन को भी नहीं खिलाना और दही खाने से तो नाड़ियों में blockage होता है बड़ी उम्र में; दही को मथ के लस्सी बनाओ फिर मक्खन सब खा लो; लस्सी पी सकते हैं, दही नहीं, और दही खट्टा तो बहुत नुकसान करता है ।
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