क्यों समझने मुश्किल हैं सनातन ग्रंथ?
साधारण पुस्तकों में आपको एक निश्चित जानकारी मिलती है। इन्हें चाहे जितने भी लोग पढ़े, सभी को एक जैसा ही ज्ञान प्राप्त होता है।लेकिन चूंकि भारतीय ग्रंथ आसाधारण ऋषियों की रचना है, इनमें एक बेहद दिलचस्प बात है।
यह ग्रंथ जानकारी को यूं का त्यूं देने के बजाए पढ़ने वाले के मन की स्तिथि के हिसाब से अपना ज्ञान प्रकट करते हैं।यह ग्रंथ शीशे की तरह हैं, इनमें प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान का अलग अलग चित्र दिखाई पड़ता है। चित्र क्या दिखाई पड़ेगा यह भी पढ़ने वाले पर ही निर्भर करता है।एक स्वच्छ व धर्मयुक्त मन के लिए जहां यह ग्रंथ अपना विराट ज्ञान प्रकट कर देते हैं तो वहीं एक ‘कामी क्रोधी कपटी‘ मन से यह अपना ज्ञान छुपा भी लेते हैं। धर्मयुक्त व्यक्ति को जहां उन्हीं पन्नों पर शक्ति का भंडार दिख रहा होता है, तो वहीं धर्मरहित व्यक्ति को केवल जटिल नीरस कविताएँ।
कहने का मतलब है कि ज्ञान के यह अथाह कुएं सभी को सामान रूप से पानी निकालने नहीं देते। आप उतना ही पानी निकाल सकते हैं जितनी साफ आपकी बालटी है। व्यक्ति इन्हें केवल उतना ही समझ सकता है जितना कि वो मन से धर्म को धारण किए हुए है।इसलिए अगली बार अगर कोई यह कहता मिले कि उसे हमारे ग्रंथो में कुछ समझ नहीं आया, तो आप कह सकते हैं कि इसमें हमारे ग्रंथो का कोई क़सूर नहीं है। क्यूंकि हमारे ग्रंथों को समझने के लिए केवल कोरी साक्षरता नहीं, बल्कि अध्यात्मिक योग्यता की भी जरूरत होती है।ऐसे दिलचस्प ग्रंथ जो किसी जीवंत ऋषि की तरह अयोग्य लोगों से अपने ज्ञान को छुपा लेने की शक्ति रखते हों, पूरी दुनियां में केवल भारत के पास ही हैं।
स्वामी विवेकानंद से एक बार किसी विदेशी ने पूछा कि स्वामी जी आप अपने वेदों की इतनी उपमा करते थकते नहीं हैं, अगर आपके वेदों में इतनी ही शक्ति है तो फिर भारत की ऐसी दयनीय स्थिति क्यों?इस पर स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था: "कि जीतने के लिए पास में सिर्फ बंदूक होना काफी नहीं है, उसे चलाने का हुनर भी आना चाहिए।"
सुनने में थोड़ा कड़वा तो है लेकिन आज ऋषियों की संतान हम भारतवासी भी इतने धर्मविहीन हो चुके हैं कि हमारे वेदों ने हमसे भी अपनी शक्ति व ज्ञान को छुपा लिया है।और जब तक हम भारतीय सनातन परंपराओं और संस्कारों को पुनः धारण नहीं करेंगे, तब तक हीरों की खान पर बैठे एक भिखारी की तरह हमारी स्थिति दयनीय ही रहेगी। इसलिए भारत को बदलना है, तो हमें सबसे पहले अपने आपको बदलना होगा।
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ReplyDeleteजय सनातन