🔱आज की प्रेरणादायक कहानी🔱
🐫ऊंट और खूंटा🪵
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♦️कटु मगर सत्य!♦️
एक अंधेरी रात में एक काफिला एक रेगिस्तानी सराय में जाकर ठहरा। उस काफिले में सौ ऊँट थे। उन्होंने खूँटियाँ गाड़कर ऊँट बाँधे, किंतु अंत में पाया कि एक ऊँट अनबँधा रह गया है। उनकी एक खूँटी और रस्सी कहीं खो गई थी। अब आधी रात वे कहाँ खूँटी-रस्सी लेने जाएं?
काफिले के सरदार ने सराय मालिक को उठाया, "बड़ी कृपा होगी यदि एक खूँटी और रस्सी हमें मिल जाती। ९९ ऊँट बँध गए, एक रह गया, अंधेरी रात है, वह कहीं भटक सकता है।"
वृद्ध बोले, मेरे पास न तो रस्सी है, और न खूँटी, किंतु एक युक्ति है। जाओ, और खूँटी गाड़ने का नाटक करो, और ऊँट से कह दो, सो जाए।
सरदार बोले, अरे, कैसा पागलपन है?```
```वृद्ध बोले, बड़े नासमझ हो, ऐसी खूँटियाँ भी गाड़ी जा सकती हैं जो न हों, और ऐसी रस्सियाँ भी बाँधी जा सकती हैं जिनका कोई अस्तित्व न हो? अंधेरी रात है, आदमी धोखा खा जाता है, ये तो एक ऊँट है!
विश्वास तो नहीं था किंतु विवशता थी। उन्होंने गड्ढा खोदा, खूँटी ठोकी, जो नहीं थी। केवल आवाज हुई ठोकने की, ऊँट बैठ गया। खूँटी ठोकी जा रही थी। रोज-रोज रात उसकी खूँटी ठुकती थी, वह बैठ गया।
उसके गले में उन्होंने हाथ डाला, रस्सी बाँधी। रस्सी खूँटी से बाँध दी गई, रस्सी, जो नहीं थी। ऊँट सो गया! वे बड़े हैरान हुए! एक बड़ी अदभुत बात उनके हाथ लग गई। सो गए।
सुबह उठकर उन्होंने ९९ ऊँटों की रस्सियाँ निकालीं, खूँटियाँ निकालीं, वे ऊँट खड़े हो गए। किंतु सौवां ऊँट बैठा रहा। उसको धक्के दिए, पर वह नहीं उठा! फिर वृद्ध से पूछा गया। वृद्ध बोले, "ऊँट हिंदुओं की भाँति बड़ा धार्मिक है। जाओ, पहले खूँटी निकालो। रस्सी खोलो।"
सरदार बोले, "लेकिन रस्सी हो तब ना खोलूँ।
वृद्ध बोले, जैसा बाँधने का नाटक किया था, वैसे ही खोलने का करो।"
ऐसा ही किया गया, और ऊँट खड़ा हो गया।
सरदार ने उस वृद्ध का धन्यवाद किया, "बड़े अदभुत हैं आप, ऊँटों के बाबत आपकी जानकारी बहुत गहरी है!"
वृद्ध बोले, "यह सूत्र ऊँटों की जानकारी से नहीं, हिंदुओं की जानकारी से निकला है!"
वह हिंदू, जिसको अंग्रेजों ने जाने से पहले काँग्रेसी खूँटे से बाँध दिया था, आज भी वहीं बँधा है। वो आज भी अंग्रेजी भाषा और संस्कृति की गुलामी कर रहा है। उसे बार बार बताने पर कि तू स्वतंत्र हो गया है खड़ा नहीं हो रहा। सहस्र वर्षों की गुलामी की रस्सी गले में लटका कर घूम रहा है। जो उसे धक्के देकर उठाना चाह रहा है उसे शत्रु मान रहा है। फिर से गुलाम होना चाह रहा है।