2 मिनट समय निकालकर #Thread अंत तक अवश्य पढ़े।🧵👇
भारत जो सदियों से हिंदू संस्कृति का गढ़ माना जाता रहा है, आज अपने ही मूल निवासियों के लिए एक पहेली बन चुका है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, हिंदू अब 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अल्पसंख्यक हो चुके हैं। यह आंकड़ा न केवल एक सांख्यिकीय तथ्य है, बल्कि एक गहन चिंता का विषय है, जो हमारी सांस्कृतिक पहचान, सामाजिक संतुलन और राष्ट्रीय एकता को चुनौती दे रहा है। क्या यह जनसांख्यिकीय परिवर्तन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, या इसमें कुछ सुनियोजित तत्व कार्यरत हैं…? यह सवाल आज हर जागरूक नागरिक के मन में कौंध रहा है।
दुनिया की आबादी लगभग 7 अरब से ज्यादा है जिसमें से 2.2 अरब ईसाई और सवा अरब मुसलमान हैं और लगभग इतने ही बौद्ध। पूरी दुनिया में ईसाई, मुस्लिम, यहूदी और बौद्ध राष्ट्र अस्तित्व में हैं। एक जानकारी के मुताबिक पूरी दुनिया में अब मात्र 13.95 प्रतिशत हिन्दू ही बचे हैं। यदि हम भारत की बात करें तो भारत की कुल आबादी का अनुमानित 82 प्रतिशत हिंदू है।
वर्तमान भारत में करीब 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं। सुप्रीम कोर्ट में लंबित एक जनहित याचिका (PIL) के अनुसार, हिंदू आबादी अब जम्मू-कश्मीर, पंजाब, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, लक्षद्वीप और लद्दाख जैसे 10 क्षेत्रों में 50% से कम रह गई है।
प्यू रिसर्च सेंटर (2021) की रिपोर्ट के अनुसार, 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल 28 में हिंदू बहुमत में हैं, जबकि 10 क्षेत्रों में उनकी स्थिति चिंताजनक रूप से कमजोर हो चुकी है। कुछ भयावह उदाहरण :
- जम्मू-कश्मीर में हिंदू केवल 28% बचे हैं, जहां कश्मीरी पंडितों का नरसंहार और पलायन एक खुली किताब है।
- नागालैंड (हिंदू 8%), मिजोरम (हिंदू 2.75%), और मेघालय (हिंदू 11%) में ईसाई मिशनरियों ने हिंदू संस्कृति को लगभग मिटा दिया है।
- लक्षद्वीप में हिंदू 2.77% हैं, जहां मुस्लिम आबादी (96%) ने हर हिंदू निशान को कुचल दिया।
- असम में बांग्लादेशी घुसपैठ ने हिंदुओं को 61% तक सीमित कर दिया, और यह आंकड़ा तेजी से गिर रहा है।
- 102 जिलों में हिंदू पहले ही अल्पसंख्यक बन चुके हैं, और नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के अनुसार, हिंदू प्रजनन दर (TFR 1.9) अन्य समुदायों से पीछे है।
ये आंकड़े 2011 के हैं। 2025 तक, अनुमानित जनसंख्या वृद्धि और कम प्रजनन दर के कारण स्थिति और भयावह हो चुकी है। क्या यह संयोग है, या एक सुनियोजित षड्यंत्र…?
💱 सांस्कृतिक नरसंहार का खतरा —
यह सिर्फ संख्याओं का खेल नहीं; यह हिंदू सभ्यता पर एक सुनियोजित हमला है। पूर्वोत्तर भारत, जो कभी वैदिक संस्कृति का केंद्र था, आज मिशनरी गतिविधियों और अवैध घुसपैठ का शिकार है। नागालैंड और मिजोरम में मंदिरों की जगह चर्च खड़े हो रहे हैं, और हिंदू त्योहारों को प्रतिबंधित किया जा रहा है। असम में बांग्लादेशी घुसपैठ ने स्थानीय हिंदू और जनजातीय संस्कृति को हाशिए पर धकेल दिया। लक्षद्वीप, जो कभी हिंदू-बौद्ध संस्कृति का केंद्र था, आज इस्लामीकरण की चपेट में है, जहां हिंदू रीति-रिवाजों का कोई निशान नहीं बचा।
सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी कुमार उपाध्याय की PIL (2022) चेतावनी देती है कि हिंदुओं को इन राज्यों में अल्पसंख्यक दर्जा देना जरूरी है, ताकि वे अपने सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (धारा 29-30) बचा सकें। लेकिन केंद्र सरकार की चुप्पी और निष्क्रियता डरावनी है। क्या यह एक 'साइलेंट जेनोसाइड' है? जहां हिंदू न केवल संख्याओं में घट रहे हैं, बल्कि उनकी भाषा, परंपराएं, और पहचान को भी व्यवस्थित रूप से मिटाया जा रहा है।
💱 राजनीतिक साजिश या प्राकृतिक प्रवाह…?
कुछ इसे प्राकृतिक कहेंगे – प्रवास, रूपांतरण और वैश्वीकरण का परिणाम। लेकिन आंकड़े झूठ नहीं बोलते। बांग्लादेश से 2.3 लाख हिंदू प्रतिवर्ष भारत आ रहे हैं, शरणार्थी बनकर, क्योंकि वहां वे अल्पसंख्यक हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) ने इन्हें राहत दी, लेकिन यह पर्याप्त नहीं। वहीं, अवैध घुसपैठ और जबरन धर्मांतरण पूर्वोत्तर में हिंदू बाहुल्य इलाकों को खोखला कर रहे हैं। दक्षिणपंथी संगठन जैसे RSS और VHP चेतावनी दे रहे हैं कि यदि यही सिलसिला चला, तो 2047 तक भारत में हिंदू 70% से नीचे चले जाएंगे। क्या यह भारत की सांस्कृतिक आत्मा को कुचलने की साजिश है…?
यह चिंताजनक है क्योंकि अल्पसंख्यक दर्जे का लाभ केवल छ: समुदायों (मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी) तक सीमित है। हिंदू, जो राष्ट्रीय स्तर पर बहुमत हैं, स्थानीय रूप से पीड़ित हैं लेकिन लाभ से वंचित। पंजाब में सिख बहुमत के बावजूद हिंदू स्कूलों पर दबाव है; कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का पलायन एक जीता-जागता उदाहरण है।
💱 अंतिम चेतावनी : समय समाप्त हो रहा है —
हिंदू संस्कृति वेद, उपनिषद, रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता भारत की आत्मा है। यदि हिंदू अल्पसंख्यक बनते गए, तो यह सभ्यता जो हजारों वर्षों से जीवित है, राख में बदल जाएगी। सरकार की निष्क्रियता और समाज की उदासीनता इस संकट को और गहरा रही है। हमें चाहिए :
- तत्काल राज्य-स्तरीय अल्पसंख्यक दर्जा।
- अवैध घुसपैठ पर सख्त कार्रवाई।
- हिंदू संस्कृति के संरक्षण के लिए ठोस नीतियां।
- हिंदू समाज में एकता और जागरूकता।
यह आर्टिकल एक चेतावनी है, न कि घृणा का प्रचार। भारत सबका है, लेकिन यदि बहुसंख्यक अल्पसंख्यक बन जाएं, तो 'सर्वधर्म समभाव' का सपना चूर-चूर हो जाएगा। क्या हम अपनी सभ्यता को यूं ही मरने देंगे…? अतः समय है सोचने का, समय है कार्रवाई का। अन्यथा इतिहास हमें क्षमा नहीं करेगा।
✍️ साभार
🔏 लेखक : पंकज सनातनी
शेयर… शेयर… शेयर… शेयर…
🚩 हमारी समिति के सभी संदेश नियमित पढ़ने हेतु हमारे निम्न व्हाट्सएप चैनल को अवश्य फॉलो किजिए॥ 🙏⛳🚩
https://whatsapp.com/channel/0029Va9dBNq6WaKetQIhG52z
▬▬▬▬▬๑⁂❋⁂๑▬▬▬