इस को अंत तक अवश्य पढ़े, ये आपको उस सच्चाई से अवगत कराएगा जो कभी इतिहास में पढ़ाया ही नहीं जाता!भारत की स्वतंत्रता संग्राम केवल कुछ गिने-चुने नामों तक सीमित नहीं थी। अनेकों वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी, किंतु इतिहास के पृष्ठों में उन्हें उचित स्थान नहीं दिया गया।आज हम उन गुमनाम योद्धाओं की चर्चा करेंगे, जिन्होंने अपने साहस और बलिदान से भारत की स्वतंत्रता की नींव रखी, किंतु इतिहास की पुस्तकों में उनका नाम कहीं खो गया।
1. अल्लूरी सीताराम राजू – वन प्रदेशों का शेर
आंध्र प्रदेश के घने वनों में 1922-24 तक क्रांति की ज्वाला जलाने वाले इस वीर ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष किया।
उन्होंने आदिवासियों को संगठित कर गुरिल्ला युद्ध छेड़ा, जिससे ब्रिटिश शासन हिल उठा।
अंग्रेज़ों ने उन्हें जीवित पकड़कर पेड़ से बांधकर गोलियों से छलनी कर दिया।
2. वीर कुंवर सिंह – अस्सी वर्ष की आयु में तलवार उठाई!
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जब अधिकांश राजा-रजवाड़े अंग्रेज़ों से भयभीत थे, तब बिहार के 80 वर्षीय वीर कुंवर सिंह ने तलवार उठाई।
लड़ते-लड़ते जब गोली उनके हाथ में लगी, तो उन्होंने अपनी तलवार से स्वयं अपना हाथ काटकर गंगा में प्रवाहित कर दिया, ताकि विष शरीर में न फैले।
3. बिरसा मुंडा – 25 वर्ष की आयु में अंग्रेज़ों की चूलें हिला दीं!
झारखंड के इस महान योद्धा ने अंग्रेज़ों की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध “उलगुलान” (महाविद्रोह) छेड़ा।ब्रिटिश सरकार ने उन्हें बंदी बनाकर जेल में विष देकर मार डाला।इतिहास की पुस्तकों में “असहयोग आंदोलन” का उल्लेख तो मिलता है, परंतु बिरसा मुंडा की वीरगाथा कहीं खो गई।
4. उतिरोत सिंह – पूर्वोत्तर का अद्वितीय वीर
खासी हिल्स (मेघालय) के इस नायक ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध भीषण युद्ध किया।अंग्रेज़ों ने छलपूर्वक उन्हें बंदी बनाया और जेल में धीरे-धीरे विष देकर उनकी हत्या कर दी।
5. रानी गैदिनल्यू – नागालैंड की ‘झांसी की रानी’
महज़ 13 वर्ष की आयु में उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ कर दिया।ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़कर 14 वर्षों तक कारावास में रखा।इतिहास में उनके संघर्ष को उचित सम्मान नहीं मिला।
6. बाघा जतिन – जिनसे अंग्रेज़ भयभीत थे!
“यदि मेरे पास दस और साथी होते, तो मैं भारत को स्वतंत्र करा देता!”बाघा जतिन ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति चलाई और 1915 में बलिदान दे दिया।किन्तु, आज कितने लोग उनका नाम जानते हैं?
7. बिनय, बादल, दिनेश – ब्रिटिश गवर्नर पर प्राणघातक प्रहार
ये तीन बंगाली क्रांतिकारी सीधे ब्रिटिश सचिवालय में घुसे और गवर्नर पर आक्रमण कर दिया।
एक ने स्वयं को गोली मार ली, दूसरे ने विषपान कर लिया और तीसरे को अंग्रेज़ों ने पकड़ लिया।
फिर भी, इनके अद्वितीय बलिदान पर कोई चलचित्र तक नहीं बनाई गई!
8. खुदीराम बोस – भारत का सबसे युवा बलिदानी
महज़ 18 वर्ष की आयु में ब्रिटिश मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या के प्रयास में गिरफ्तार हुए।जब उन्हें फाँसी दी गई, तो हँसते हुए फाँसी के फंदे को चूमा और “भारत माता की जय” के नारे लगाए!इतिहास में उनका नाम गौण कर दिया गया।
9. नाना साहब पेशवा – 1857 के विद्रोह के सच्चे योद्धा
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सशस्त्र संग्राम किया, किंतु अंत तक संघर्ष करते रहे।अंग्रेज़ों ने उनके व्यक्तित्व को इस प्रकार कलंकित किया कि इतिहास में उन्हें “कायर” प्रदर्शित किया गया।उनकी मृत्यु आज भी रहस्य बनी हुई है।
10. चंद्रशेखर आज़ाद – जीवन की अंतिम साँस तक संघर्ष किया
अंग्रेजों से घिर जाने पर उन्होंने स्वयं को गोली मार ली, ताकि अंग्रेज़ उन्हें जीवित न पकड़ सकें।इतिहास में उनका योगदान उतना प्रमुखता से नहीं दर्शाया गया, जितना होना चाहिए था।
11. जतिन्द्रनाथ दास – 63 दिन की भूख हड़ताल और फिर मृत्यु
भगत सिंह के साथी जिन्होंने जेल में 63 दिन तक भूख हड़ताल की और अंततः बलिदान दे दिया।
किन्तु, इतिहास में भगत सिंह का नाम तो है, परन्तु जतिन्द्रनाथ दास का क्यों नहीं?
12. राजा सुहेलदेव – विदेशी आक्रांताओं को हराने वाला वीर
राजा सुहेलदेव ने 1034 ई. में महमूद ग़ज़नवी के सेनापति सालार मसूद को पराजित किया।
किन्तु, इतिहास में उनके नाम को जानबूझकर गौण कर दिया गया।
13. झलकारी बाई – रानी लक्ष्मीबाई से भी बड़ी वीरांगना
जब रानी लक्ष्मीबाई को बचाने की आवश्यकता पड़ी, तो झलकारी बाई ने स्वयं को “रानी” बताकर अंग्रेज़ों का ध्यान भटकाया।अंग्रेज़ उन्हें वास्तविक झांसी की रानी समझकर पकड़ने में व्यस्त रहे, और लक्ष्मीबाई सुरक्षित बच निकलीं।इतिहास में उनका नाम बहुत कम मिलता है।
14. वीरनारायण सिंह – छत्तीसगढ़ का भूला हुआ शेर
1857 के विद्रोह में जब किसान भूख से मर रहे थे, तो वीरनारायण सिंह ने गोदाम लूटकर गरीबों में अन्न वितरित किया।अंग्रेजों ने उन्हें पकड़कर फाँसी दे दी, किंतु आज उनकी स्मृति भी धुंधली हो चुकी है।