हिंदू धर्म में शिखा जिसे चूटी, चूड़ामणि या चोटी भी कहते हैं रखने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।यह धार्मिक, आध्यात्मिक,वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखती है।
यह सनातन धर्म की शुद्धता, ज्ञान और साधना का प्रतीक है।
शिखा सिर के ऊपरी हिस्से (सहस्रार चक्र) पर छोड़े गए बालों का एक गुच्छा होता है, जिसे हिंदू धर्म में विशेष रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैष्णव संप्रदाय के लोग धारण करते हैं।भगवद्गीता में भी कहा गया है कि योग और तपस्या करने वाले व्यक्ति के लिए शिखा धारण करना लाभकारी होता है।
सुश्रुत संहिता में यह उल्लेख किया गया है "ब्राह्मरंध्र" का संरक्षण, अर्थात ब्राह्मरंध्र सिर का वह स्थान जहां से प्राण ऊर्जा (Vital Energy) प्रवाहित होती है और मृत्यु के समय आत्मा इसी मार्ग से निकलती है।
इसे ढकने और सुरक्षित रखने के लिए शिखा रखने की परंपरा विकसित हुई।
अधिपति मर्म,मस्तिष्क (Brain) और स्नायु तंत्र (Nervous System) से जुड़ा हुआ होता है
यह स्मरण शक्ति (Memory)एकाग्रता (Concentration) और मानसिक स्पष्टता (Mental Clarity) को बढ़ाने में सहायक होता है शरीर की समस्त ऊर्जा का नियंत्रण यहीं से होता है इसे अधिपति(सर्वोच्च शासक) कहा गया है.अधिपतिमर्म शरीर के उन विशिष्ट बिंदुओं में से एक है, जो शारीरिक,मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालते हैं।शिखा इस संवेदनशील बिंदु को गर्मी, ठंडक और बाहरी नकारात्मक ऊर्जा से बचाती है।
ब्राह्मण, योगी और साधु इसे विशेष रूप से रखते हैं ताकि इस मर्म की ऊर्जा संरक्षित रहे।
आयुर्वेदिक चिकित्सकों का मानना है कि शिखा के स्थान पर हल्का दबाव देने से सिरदर्द, माइग्रेन और मानसिक तनाव से राहत मिलती है। योग और ध्यान करने वालों के लिए शिखा कुंडलिनी शक्ति के जागरण में सहायक होती है।शरीर की ऊर्जा को संतुलित रखती है