बाबा सिद्दीकी की हत्या, दिव्या खोसला का आलिया भट्ट पर आरोप और इस नवरात्री पर बॉलीवुड का भव्य सेलिब्रेशन ये सब बाते आपस मे जुडी हुई है।
पहली बात तो फ़िल्म कैसे बनती है? एक लेखक के मन मे फ़िल्म की कहानी होती है जिसे वो डायरेक्टर को बताता है फिर डायरेक्टर उस फ़िल्म को बनाने के लिये फंडिंग और प्रोडयुसर की व्यवस्था करता है।
फाइनेंसर ढूंढना बहुत टेड़ा खेल है। इस पूरे खेल मे जो आप फाइनेंस वाली चीजें देख रहे है उसमे बाबा सिद्दीकी जैसे नेताओं का बड़ा योगदान होता है। ये ही नेता ब्लैक का पैसा अलग अलग फिल्मो मे खुद लगाकर या दुसरो का लगवाकर उसे व्हाइट करते है।
फाइनेंस मे इनका डायरेक्ट रोल होता है इस वजह से हर फ़िल्म सितारा इनसे डरता है। इसलिए कलाक़ारो को इनकी इफ्तार पार्टी मे जाना ही पड़ता है। ऑल आईज ऑन रफाह जैसे ट्रेंड्स मे फसना पड़ता है क्योंकि यदि आपने ऐसा नहीं किया तो आपको फिल्मे मिलनी बंद हो सकती है।
इसके विपरीत कुछ कलाकार ऐसे भी है जो अपने टैलेंट के दम पर ही इन्हे ठेंगा दिखा देते है, जैसे पंकज त्रिपाठी, मनोज वाजपेयी या फिर नवाजुद्दीन सिद्दीकी। दिव्या खोसला का केस भी कुछ ऐसा ही है।
दिव्या खोसला टी सीरीज की मालकिन है, जब कोई फ़िल्म पीट जाती है तो निर्माता सबसे पहले टी सीरीज के दरवाजे खटखटाता है ताकि टी सीरीज फ़िल्म के गाने खरीद कर कुछ पैसा तो दें दें। ये स्थिति दिव्या खोसला को बहुत ऊपर बनाती है और वो किसी के दबाव मे नहीं आती।
दिव्या खोसला ने आलिया भट्ट पर आरोप लगाया की उसने खुद अपनी फिल्मो के टिकट खरीद कर उसे ओवर रेट किया। ये तो हमें भी पहले से पता है, आलिया भट्ट तो क्या खुद शाहरुख़ खान का यही हाल है।
कपूरो और खानो की फिल्मे कमाई के आंकड़ों से हॉलीवुड को सीधी टक्कर देती है लेकिन जब ऑस्कर की बात आती है तो दूर दूर तक नाम नहीं होता। वास्तविकता दिव्या खोसला पहले ही बता चुकी है की ये लोग PR स्टंट करते है। एक बात जो उन्होंने नहीं कही वो यही की इसमें भी बाबा सिद्दीकी जैसे लोगो का समर्थन मिलता है।
पिछले 30 सालो से आप देखो तो पीके तक तो लगभग हर तीसरी फ़िल्म ने लव जेहाद, हिन्दू नफरत और जातिवाद को बढ़ावा देने के मुद्दे पर ही बल दिया है। जबकि इन्ही दिग्गज कलाकारो का एक चेहरा इस बार नवरात्री पर भी देखने को मिला।
काजोल और रानी मुखर्जी ने माता रानी की चौकी रखी और लगभग सारे सेलिब्रिटी जिस संख्या मे पहुँचे और जो भक्ति दिखाई वो आश्चर्यजनक थी। ये कैमरे के सामने एक्टिंग नहीं थी, ये सच मे धर्म के प्रति समर्पण था।
बड़ी बड़ी अभिनेत्रियों का दुर्गा नृत्य करना, विधिवत एक दूसरे को कुमकुम लगाना प्रमाण था की ये लोग भले ही कितने ही अंग्रेजो के गुलाम बनते थे मगर पिछले कुछ सालो मे इनके अंदर का हिन्दू जगा है।
अब बाबा सिद्दीकी मर गया है आप देखिये बॉलीवुड के नाम पर जो हिंदू विरोधी इंडस्ट्री खड़ी हो रही थी इसकी कमर टूटेगी और हर बार हर विवादित ढांचा के नीचे से एक मंदिर ही निकलेगा।
इसलिए अब बॉलीवुड का बहिष्कार मत कीजिये बल्कि उसके अच्छे कंटेंट को बढ़ावा देना शुरू कीजिये क्योंकि इस हत्या के बाद जिस नवीन बॉलीवुड का निर्माण होगा उसमे समय जरूर लगेगा मगर हमारे हित मे होगा।
✍️परख सक्सेना✍️