ऋषभ जैन बड़े शान से अपनी दवा दुकान का नाम महावीर मेडिकल रखता है और प्रोप्राइटर में अपना नाम दर्ज करता है।
सरदार बलवंत सिंह अपनी दुकान का नाम दशमेश फर्नीचर रखता है और अपना नाम प्रोप्राइटर में लिखता है,।
रतन टाटा टाटा मोटर्स के नाम से धंधा करते हैं।
ये सभी हमारे देश के अल्पसंख्यक हैं।
मगर मुहम्मद मुस्तफा अपने फल की दुकान का नाम न मुहम्मद फ्रूट्स रखता है ना मुस्तफा फल भंडार रखता है और ना बोर्ड पर अपना नाम लिखता है।
क्यों भाई? अपने नाम से इतनी नफ़रत?
और ये रोग पुराना है। फिल्म लाइन में भी युसूफ खान दिलीप कुमार बन गए, जकारिया खां जयंत और महजबीं मीना कुमारी। अब जब योगी जी ने कानून बना दिया है तो कहते हो हिंदू मुस्लिम हो रहा है?
हिंदू मुस्लिम तो तुम कर रहे हो । शकील, जहीर, अब्दुल, करीम की जगह मुन्ना, टिंकू, बबलू बने
फिरते हो और दुकान का नाम रखते हो शिव ढाबा, दुर्गा भंडार
अपना नाम दर्ज करो
अगर मारुति अपने कार पर बीएमडब्ल्यू का लोगो लगाकर बेचे तो यह गैरकानूनी है
अगर कोई लोकल मसाले वाला अपने मसाले पर दूसरा नाम लगाकर मसाला बेचे तो यह गैर कानूनी है
अगर आप किसी और के गाए हुए गाने को गाते हैं तो आपके ऊपर कॉपीराइट एक्ट में केस दर्ज होगा
यदि कोई चाइनीज मोबाइल कंपनी अपने मोबाइल पर सैमसंग लगाकर बेचे तो यह गैर कानूनी है
लेकिन भारत में अब्दुल अगर अपने दुकान पर रमेश का लेवल लगाकर बेचे तो दोगले लोग कह रहे हैं यह तो कानूनी है