🚩 यूरोप, अमेरिका आदि ईसाई देशों में इस समय क्रिसमस डे की धूम है, लेकिन अधिकांश लोगों को तो ये पता ही नहीं है कि यह क्यों मनाया जाता है !
🚩 भारत में भी कुछ भोले-भाले हिन्दू आदि लोग क्रिसमस की बधाई देते हैं और उनके साथ क्रिसमस मनाते हैं पर उनको भी नहीं पता है कि क्रिसमस क्यों मनाई जाती है ?
🚩 कुछ लोगों का भ्रम है कि इस दिन यीशु मसीह का जन्मदिन होता है। पर सच्चाई यह है कि 25 दिसम्बर का ईसा मसीह के जन्मदिन से कोई सम्बन्ध ही नहीं है । एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म 7 ई.पू. से 2 ई.पू. के बीच 4 ई.पू. में हुआ था । जीसस के जन्म का वार, तिथि, मास, वर्ष, समय तथा स्थान, सभी बातें अज्ञात है। इसका बाईबल में भी कोई उल्लेख नहीं है। यदि वह इतने प्रसिद्द संत, महात्मा या अवतारी व्यक्ति होते तो सारा ब्यौरा तत्कालीन जनता जानने का यत्न करती ।
🚩 विलियम ड्यूरेंट ने यीशु मसीह का जन्म वर्ष ईसापूर्व चौथा वर्ष लिखा है । यह कितनी असंगत बात है? भला ईसा का ही जन्म ईसा पूर्व में कैसे हो सकता है? कालगणना अगर यीशु मसीह के जन्म से शुरू होती है, जन्म से पूर्व ई.पू. और बाद में ई. में की जाती है तो यीशु मसीह का जन्म 4 ई.पू. में कैसे हुआ?
🚩 और एक असंगति देखें । ईसा का जन्म 25 दिसम्बर को मनाया जाता है और नववर्ष का दिन होता है एक जनवरी । तो क्या ईसा का जन्म ईसवीं सन से एक सप्ताह पहले हुआ ? और यदि हुआ तो उसी दिन से वर्ष गणना शुरू क्यों नहीं की गई ?
🚩 हाल ही में बीबीसी पर एक रिपोर्ट छपी थी उसके अनुसार यीशु का जन्म कब हुआ, इसे लेकर एकराय नहीं है। कुछ धर्मशास्त्री मानते हैं कि उनका जन्म वसंत में हुआ था, क्योंकि इस बात का जिक्र है कि जब ईसा का जन्म हुआ था, उस समय गड़रिये मैदानों में अपने झुंडों की देखरेख कर रहे थे। अगर उस समय दिसंबर की सर्दियां होतीं, तो वे कहीं शरण लेकर बैठे होते। और अगर गड़रिये मैथुनकाल के दौरान भेड़ों की देखभाल कर रहे होते तो वे उन भेड़ों को झुंड से अलग करने में मशगूल होते, जो समागम कर चुकी होतीं। ऐसा होता तो ये पतझड़ का समय होता। मगर बाईबल में यीशु मसीह के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है।
🚩 वास्तव में पूर्व में 25 दिसम्बर को ‘मकर संक्रांति’ (शीतकालीन संक्रांति) पर्व मनाया जाता था और यूरोप-अमेरिका आदि देश धूमधाम से इस दिन सूर्य उपासना करते थे । सूर्य और पृथ्वी की गति के कारण मकर संक्रांति लगभग 80 वर्षों में एक दिन आगे खिसक जाती है।
🚩 सायनगणना के अनुसार 22 दिसंबर को सूर्य उत्तरायण की ओर व 22 जून को दक्षिणायन की ओर गति करता है । सायनगणना ही प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है । जिसके अनुसार 22 दिसंबर को सूर्य क्षितिज वृत्त में अपने दक्षिण जाने की सीमा समाप्त करके उत्तर की ओर बढ़ना आरंभ करता है । यूरोप शीतोष्ण कटिबंध में आता है इसलिए यहां सर्दी बहुत पड़ती है। जब सूर्य उत्तर की ओर चलता है, यूरोप उत्तरी गोलार्द्ध में पड़ता है तो यहां से सर्दी कम होने की शुरुआत होती है, इसलिए 25 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाते थे।
🚩 विश्व-कोष में दी गई जानकारी के अनुसार सूर्य-पूजा को समाप्त करने के उद्देश्य से क्रिसमस डे का प्रारम्भ किया गया ।
🚩 आपको बता दे कि सबसे पहले 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस का त्यौहार ईसाई रोमन सम्राट (First Christian Roman Emperor) के समय में 336 ईसवी में मनाया गया था। इसके कुछ साल बाद पोप जुलियस (Pop Julius) ने 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म दिवस के रूप में मनाने का ऐलान कर दिया, तब से दुनियाभर में 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्यौहार मनाया जाता है।
हो जाने वाले चमत्कारी मसले। किताब का भी यही मानना है कि 13 से 29 वर्ष की उम्र तक ईसा भारत भ्रमण करते रहे।
🚩 बीबीसी ने “Jesus Was A Buddhist Monk” नाम से एक डॉक्युमेंट्री बनाई थी जिसमें बताया गया था कि यीशु मसीह को सूली पर नहीं चढ़ाया गया था। जब वह 30 वर्ष के थे तो वह अपनी पसंदीदा जगह वापस चले गए थे। डॉक्युमेंट्री के मुताबिक यीशु मसीह की मौत नहीं हुई थी और वह यहूदियों के साथ अफगानिस्तान चले गए थे। रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोगों ने इस बात की पुष्टि की कि यीशु मसीह ने कश्मीर घाटी में कई वर्ष व्यतीत किए थे और 80 की उम्र तक वहीं रहे। अगर यीशु मसीह ने 16 वर्ष किशोरावस्था में और जिंदगी के आखिरी 45 साल व्यतीत किए तो इस हिसाब से वह भारत, तिब्बत और आस-पास के इलाकों में करीब 61 साल रहे। कई स्थानीय लोगों का मानना है कि कश्मीर के श्रीनगर में रोजा बल श्राइन में जीसस की समाधि बनी हुई है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मध्यकालीन मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है। अगर इस बात को सत्य माना जाए तो इसका मतलब है कि यीशु मसीह को कील ठोककर क्रॉस पर लटकाना आदि बातें झूठ है। ईसाई मिशनरियों इसी बात को बोलकर यीशु मसीह को भगवान का बेटा बताती है। इसका मतलब ईसाई मिशनरियां केवल धर्मांतरण के लिए ये सफेद झूठ बोलती है।
🚩 यदि यीशु मसीह ने धार्मिक प्रवचन करते अपना जीवन बिताया होता तो उसके प्रवचनों की कोई बड़ी पुस्तक जरूर होती या कम से कम बाइबिल में ही उसके प्रवचन होते । पर बाईबल में तो उनके किसी प्रवचन का जिक्र ही नहीं है? अब प्रश्न ये है कि वे सारे भाषण कहाँ हैं? इसका उत्तर आज तक किसी के पास नहीं है।
🚩 25 दिसंबर न यीशु का क्रिसमस से कोई लेना देना है और न ही संता क्लॉज से । फिर भी भारत में पढ़े लिखे मूर्ख लोग बिना कारण का पर्व मनाते हैं। ये सब भारतीय संस्कृति को खत्म करने और ईसाईकरण के लिए भारत में फैलाने के लिए क्रिसमस डे मनाते है, इसलिये आप सावधान रहें ।
ध्यान रहे हिन्दुओं का नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरु होता है । हिन्दू महान भारतीय संस्कृति के महान ऋषि -मुनियों की संतानें हैं इसलिये दारू पीने वाला, मांस खाने वाला अंग्रेजो का नववर्ष मनाये ये भारतीयों को शोभा नहीं देता है ।
🍃 25 दिसम्बर “तुलसी पूजन दिवस” के रूप में मनाना शुरू करें और समस्त भारतवासी भी 25 दिसम्बर तुलसी पूजन करके ही मनाये ।
🍃 तुलसी के पूजन से मनोबल, चारित्र्यबल व् आरोग्य बल बढ़ता है, मानसिक अवसाद व आत्महत्या आदि से रक्षा होती है। तुलसी पर्यावरण शुद्ध करती है, हवा को साफ करती है और तुलसी के घर में होने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है।
🍃 उत्तर प्रदेश मे सरकार ने आगरा में ताजमहल के चारों ओर हजारों तुलसी के पौधा लगाये ताकि ताजमहल को पर्यावरण प्रदूषण से होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।
🚩 सभी भारतीय 25 दिसम्बर को प्लास्टिक के पेड़ पर बल्ब जलाने की बजाय 24 घण्टे ऑक्सीजन देने वाली माता तुलसी का पूजन करें ।
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अतः देशहित में क्रिसमस का बहिष्कार करें।
ये देश संतों का है सांता क्लॉज का नहीं!!!
-जय सनातन✍️