🏹जय श्री राम।।
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जय श्री राम।।
एक बार श्री राम जी ने सिंहासन आसीन होने के पश्चात एक सभा बुलाई।
और सभी एकत्रित नगर वासियों के समक्ष यह कहा कि आज मैंने एक विशेष कारण से सभा का आयोजन किया है।
आप लोग ऐसा मत समझना कि मैं राजा हूं तो केवल मेरी ही आज्ञा मान्य होगी।
मैं जो निर्णय लूंगा वह सर्वमान्य होगा।
मैं आज आप सभी लोगों से यह चाहता हूं।
हमारा राम राज्य ऐसा हो कि यहां हर किसी को अपनी बात कहने का अवसर मिले।
यदि मैं कोई अनीति पूर्ण निर्णय लेता हूं।
तो मुझे रोक देने का अधिकार हर किसी को रहेगा।
कोई भी मुझे निर्भय होकर अनीतिपूर्ण लिए गए निर्णय के लिए रोक सकता है।
हमारा राम राज्य भय मुक्त राज्य होना चाहिए।
अयोध्या वासियों ने कहा प्रभु धन्य भाग हमारे ।
हम अवश्य अनुशासन का पालन करेंगे।
राम राज के अनुशासन समझा कर श्री राम जी कहने लगे।
*बड़े भाग मानुष तन पावा।*
*सुर दुर्लभ सब ग्रंथन गावा।।*
बड़े भाग्य से हमें यह मनुष्य का शरीर मिला है।
यह बात सारे ग्रंथ कहते हैं।
जब भगवान श्री राम जी इस मनुष्य देहि की उपलब्धि का वर्णन कर रहे थे।
तब एक पशु ब्रह्मा जी के पास पहुंच गया।
इस प्रसंग को पढ़कर आप लोग ऐसा मत समझना कि,
कहां से कहां पहुंच गए।
यह तो केवल एक कहानी है।
यह कहानी अवश्य है।
किंतु संत महात्मा अपनी रहस्य भरी बातों को किसी को भी माध्यम बनाकर कहना चाहते हैं। यहां भी पशुओं के माध्यम से संत जी ने एक रहस्य को समझाया है। इसलिए इसे आनंदपूर्वक पढ़कर समझना चाहिए।
वह पशु ब्रह्मा जी से कहने लगा।
भगवन सब लोग इस मनुष्य शरीर की महिमा का वर्णन करते हैं।
रामजी भी लोगों को समझा रहे हैं कि बड़े भागय से यह मनुष्य शरीर मिला है।
तो मैं आज आपसे यह पूंछने आया हूं कि,
आखिर क्या खास बात है इस मनुष्य शरीर में ?
क्यों बढ़ाई करते हैं सब इसकी?
ब्रह्मा जी आपने मनुष्य को मनुष्य बनाया अच्छी बात है।
हमें कोई परेशानी नहीं है।
किंतु इस बेईमान मनुष्य की प्रशंसा सब कोई करता है।
और हम पशुओं की कभी कोई बढ़ाई नहीं करता है।
यहां तक की भगवान भी मानुष तन की ही प्रशंशा करते हैं।
मेरी शिकायत यह है कि, इस मनुष्य के दुर्गुणों पर कोई विचार नहीं करता है।
कि यह मनुष्य कितना बेईमान है।
कितना स्वार्थी है ।
कितना लालची है।
इन मनुष्यों से ज्यादा अनुशासित तो हम पशु पक्षी हैं।
किंतु हमारी देह की कोई प्रशंसा नहीं करता है।
आपने मांसाहारी और शाकाहारी पशु बनाए।
हम इतने अनुशासित हैं कि हम मांस खाने वाले पशु कभी शाकाहार ग्रहण नहीं करते हैं। केवल मांस ही खाते हैं।
और शाकाहारी पशु कभी मांस नहीं खाता है ।
चाहे कितना ही भूखा हो।
और यह मनुष्य इतना अनुशासान हीन है कि, सब कुछ खा लेता है।
इसका कोई अनुशासन नहीं है।
इसे जो मिल जाए वो खा लेता है।
इसका कोई नियम सिद्धांत ही नहीं है।
यहां तक की यह जीव जंतुओं को खा जाता है।
फिर भी सब ग्रंथ इसकी महिमा का वर्णन करते हैं।
आपने घोड़ा बनाया।
उस पर एक व्यक्ति बैठ कर आराम से यात्रा कर सके।
यह व्यवस्था आपने दी थी।
किंतु यह आदमी इतना बेईमान है कि उसने तांगा बना लिया।
और उस तांगे में 12 लोगों को बैठाता है।
कुछ लोगों को तो पहले ही बैठा लेता है।
और कुछ लोगों से कह देता है कि पुलिस चौकी निकल जाने दो बाकी लोगों को उसके बाद बैठा लूंगा।
भेड़ों के बदन पर आपने बाल उगाए।
ताकि सर्दी से उसकी बचत हो जाए।
किंतु यह आदमी इतना बेईमान है कि, भेड़ों के सिर के बाल काटकर इसने अपने लिए स्वेटर मफलर बना लिए।
और बेचारी भेड़ सर्दी के दिनों में पूरे दिन ढिढुरती रहती हैं।
इस मनुष्य के अंदर अनेक बुराइयां है।
इसके पश्चात भी सब ग्रंथ इसकी बढाई करते हैं।
*कि बड़े भाग मानुष तन पावा।*
ब्रह्मा जी ने उस पशु से कहा देखो तुम्हारी बात सही है।
तुम्हारी बात पर अवश्य विचार किया जाएगा।
इस मनुष्य शरीर की इतनी महिमा क्यों है ।
उसके संबंध में मैं तुम्हें विस्तार से समझाऊंगा।
और तुम्हारी समस्या का निराकरण उस मनुष्य को बुलाकर उसकी उपस्थिति में ही किया जाएगा।
एक काम करो तुम भी सब पशु पक्षी जानवर एकत्रित होकर मेरे पास आना।
और मैं उस मनुष्य को भी यहां बुलाऊंगा । तब मैं तुम्हारी समस्या का निराकरण करुंगा । वह पशु वापस लौट कर आ गया अगले दिन फिर सभा लगी। मनुष्य को भी बुलाया गया।
और सब पशु पक्षी और जानवर भी आए ।
*यह प्रसंग अब अगली पोस्ट में जय श्री राम।।*