जय श्री राम।।
एक बार श्री राम जी भाइयों सहित हनुमान जी को साथ में लेकर सुंदर बगीचा देखने गए।
सभी भाई वहां राम जी से कुछ पूछना चाहते हैं।
किंतु पूछने में सकुचा रहे हैं।सभी हनुमान जी की ओर देखने लगे।
हनुमान जी तीनों भाइयों के मन की दशा जान गए।
हनुमान जी ने प्रभु श्री राम जी से कहा।
प्रभु, भरत जी आपसे कुछ पूछना चाह रहे हैं।
किंतु मन में कुछ संकोच है।
श्री राम जी ने कहा हनुमान तुम तो मेरा स्वभाव जानते ही हो। भरत में और मेरे में कोई अंतर है ही नहीं।
हम दोनों एक समान ही हैं ।
और फिर प्रश्न उत्तर तो दो में होता है।
जब हमारे में समानता है तो फिर प्रश्न किस बात का?
अब पूछो भरत क्या पूछना चाहते हो?।
भरत जी ने तुरंत अपने बयान बदल लिए।
कहा प्रभु मुझे कुछ नहीं पूछना है।
आपकी कृपा से मेरे सब संसय समाप्त हो गए हैं।
सोक और मोह तो बिल्कुल है ही नहीं ।
सपने में भी नहीं है।
क्या कारण रहा कि,?
भरत जी ने अपने बयान बदल लिए?
अभी तक तो भरत जी अपने आप को पापी और कुटिल मानते आए थे।
भगवान तक ने उन्हें समझाया था।
कि भरत तुम अपने आप को पापी क्यों मानते हो? कुटिल क्यों मानते हो।?
भगवान ने भरत जी से पूछा भी था कि,भरत तुम्हारे
पाप का फल क्या है?
भरत जी ने कहा था ।
प्रभु मेरे पापों का फल आपका वनवास है।
मेरे पाप के कारण ही आपको वनवास हुआ।
यही मेरे पाप का फल है।
श्री राम जी ने कहा मुझे वनवास हुआ ।
वहां मुझे संतों का सत्संग प्राप्त हुआ ।
मैंने संतो के दर्शन किए।
और संतो के दर्शन तो पुण्य से मिलते हैं।
*पुणयपुंज बिनु मिलहि न संता।*
और जब मैंने वहां संतो से पूछा कि आपके दर्शन का सौभाग्य मुझे किस कारण से मिला।?
तब संतों ने मेरे पुण्यों का प्रभाव बताया।
भरत यह बताओ?
तुम ऐसा मानते हो कि तुम्हारे पाप के कारण में बन गया।
और मैं ऐसा मानता हूं कि मेरे पुण्य के कारण मैं बन गया।
अब कारण जो भी रहा हो।
दोनों का फल तो एक ही मिला।
संतों के दर्शन का सौभाग्य तो मुझे मिला।
अब वह चाहे तुम्हारे पाप से मिला य मेरे पुण्य से।
जो काम मेरे पुण्य ने किया।
वही काम तुम्हारे पाप ने किया ।
तुम्हारे पाप और मेरे पुण्य दोनों ने समान कार्य किया।
।जब तुम्हारे पाप इतने प्रबल है। कि जो मेरे पुण्य की बराबरी करते हैं।
तो भरत यह बताओ।
तुम्हारे पुण्य कितने प्रबल होंगे। इसीलिए मैं कहता हूं कि तुम्हारे समान तीनों लोकों में कोई पुण्यात्मा नहीं है ।
यह सुनकर भरत जी की आंखों से प्रेम आश्रु बहने लगे।
जब भगवान ने भरत जी से कहा कि, भरत पूछो क्या पूछना चाहते हो?
तब भरत जी जान चुके थे।
कि भगवान ने मुझे अपने समान माना है।
अब यदि मैं कहूंगा कि मैं पापी हूं कुटिल हूं।
तो यह आरोप तो अब भगवान पर भी लगेगा।
अब यदि मैं अपने दोष बताऊंगा तो एक तरह से यह सब दोष भगवान पर भी लागू हो जायेंगे।
क्योंकि दोनों समान है।
इसलिए भरत जी ने तुरंत कह दिया ।
नहीं प्रभु अब मुझे कोई संसय नहीं है।
आपकी कृपा से सब संसय समाप्त हो गए हैं।
मेरे मन में सोक और मोह तो बिल्कुल है ही नही।
सपने में भी नहीं है।
भरत जी श्री राम जी के गुणों का वर्णन करने लगे।
जय श्री राम।।
*इसके आगे अगले प्रशंग में।*