जय श्री राम।।
राम जी के राज्य में चारों ओर खुशहाली है।
सब लोग सुखी है।
केवल कैकई माता बड़ी उदास रहती हैं।
एक दिन कैकई माता उदास मन से श्री राम जी के पास गई। भगवान श्री राम जी भगवान भोलेनाथ का पूजन कर रहे थे। भगवान शिव की पूजा में श्री राम जी मगन है।
शिव जी के प्रति भक्ति भाव में मगन राम जी के नेत्रों में प्रेमाश्रु भरें हैं।
जब श्री राम जी को यह समाचार मिला कि
माता कैकई आई है।
राम जी ने पूजन करते हुए भगवान शिव को प्रणाम किया।
शिवजी को प्रणाम करके अपने आसन से उठे।
हाथों में जो पुष्प थे।
उन पुष्पों को कैकई माता के चरणों में रखते हुए माता को प्रणाम करके बोले।
आगमन का कारण पूछा।
कैकई माता ने कहा राम।
मैं तुमसे आज कुछ वरदान मांगने आई हूं ।
वरदान का नाम सुनते ही सब लोग आश्चर्यचकित होकर कैकई माता की ओर देखने लगे।
सबके मन में बड़ा भय उत्पन्न हो गया।
कैकई माता आज फिर वरदान मांगने आई है ।
पता नहीं वरदान क्या मांगेगी ?।हनुमान जी महाराज ने श्री राम जी से धीरे से कहा।
प्रभु अबकी बार माता कैकेई को वरदान सोच समझ कर दीजिएगा राम जी ने हनुमान जी को एक तरह से डांटते हुए से कहा।
चुप रहो ,क्या कह रहे हो। हनुमान जी मौन हो गए।
श्री राम जी ने कहा माता कहो क्या आदेश है।
मैं आपके वरदान को पूरा करने का अवश्य प्रयास करूंगा।
आदेश करें।
माता कैकई ने कहा राम ।
अवध में सब और खुशहाली है। सब लोग बड़े प्रसन्न है।
मुझे इस बात की बड़ी प्रसन्नता है ।
किंतु केवल दुख इस बात का है कि मेरा पुत्र भरत मुझसे बात नहीं करता है।
ना मुझे कभी मां कहता है।
मुझे केवल इस बात का दुःख है।
मैं केवल इतना चाहती हूं।
कि भरत मुझे एक बार मां कह दें ।
मैं केवल इतना चाहती हूं।
श्री राम जी ने कैकई माता को आश्वासन दिया।
माता मैं भरत से बात करूंगा। आप निश्चिंत रहो ।
और भरत आपसे अवश्य अवश्य मां कहेंगे।
श्री राम जी,भगवान शिव का पूजन करने के पश्चात भरत जी के भवन में गए ।
जब यह समाचार भरत जी को मिला।
कि प्रभु श्री राम जी पधारे हैं ।
तो भरत जी दोड़कर आए।
प्रभु के चरणों में बैठ गए।
नेत्रों के जल से राम जी के चरणों को धोया ।
और पूछा।
भैया क्या बात है?
मुझे आदेश कर दिया होता।
मैं आपकी सेवा में उपस्थित हो जाता।
आप मेरे पास आए।
क्या कारण है?
श्री राम जी ने कहा भरत
मांगने वाला देने वाले के पास चलकर जाता है ।
उसे अपने पास बुलाता नहीं है।
मैं तुम्हारे पास कुछ मांगने आया हूं ।
भरत जी ने कहा भैया।
सब कुछ आप ही का है।
आदेश कीजिए।
मैं आपके आदेश पर अपने
प्राण तक दे सकता हूं।
किन्तु एक बात और है।
मैं सब कुछ दे सकता हूं।
किंतु आप मुझे कैकई माता को मां कहने का मत कहना।
बस जो राम का नहीं वह किसी काम का नहीं ।
माता के कारण आपने जो वन के दुःख सहे हैं।
मैं आपके उन दुखों को भुला नहीं सकता हूं।
जब भरत जी ने यह कहा ।
तो राम जी अपने मन में बड़े उदास हो गए।
कि अब मैं कैकई माता को क्या उत्तर दूंगा।
तभी कैकई माता अचानक पीछे से आकर खड़े होकर कहने लगी राम चिंता मत करो।संकोच मत करो।
आज मैं बहुत प्रसन्न हूं।
भरत ने मुझे मां कह दिया है।
राम जी ने पूछा माता भरत ने तुम्हें मां कब कहा?
कैकई माता कहने लगी।
अभी-अभी तो भरत ने कहा है। कि मैं कैकई माता को मां नहीं कहूंगा।
भरत ने अभी मुझे मां कहा तो है। बस यही तो मैं चाहती थी।
मैं बहुत प्रसन्न हूं।
अब मुझे कोई शिकायत नहीं है।
गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज कहते हैं।
यदि जिनको राम जी प्रिय नहीं हो।
तो वह त्यागने योग्य है ।
चाहे वह आपका कितना ही परम सनेही हो।
भक्त प्रह्लाद ने पिता का त्याग किया।
भक्त विभीषण ने भ्राता का त्याग किया।
भक्त भरत जी ने माता को कभी माता नहीं कहा।
प्रिय कथा प्रेमी सज्जनों अभी तक हमने रामकथा में राम जी की नर लीला के प्रशंग बड़ी श्रद्धा से पढ़े हैं।
अब उत्तर काण्ड की कथा कागभुशुण्डि जी और गरुड़ जी की वार्तालाप कथा है।
एक तरह से यह कथा हमारे जीवन से सम्बंधित है।
हमारे जीवन के विकार कैसे समाप्त हो सकतें हैं।
हमारी इस मानव देहि का सही उपयोग क्या है।
हमारा कल्याण किस तरह हो सकता है।
यह कथा कागभुशुण्डि जी गरुड़ जी को समझाते हैं।
जिसमें राम कथा का सारा रहस्य सारा सार है।
आप इसे पढ़ना न भूलें।
राम कथा के अभी बहुत से प्रशंग शेष है।
*निरंतर पढ़ते रहिए।अब इसके आगे अगले प्रशंग में।*
*जय श्री राम।।*🙏🙏🙏