भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं, है भवानी ।
जब रामजी ने यह जान लिया कि कैकई माता लजा रही है तो,।
श्री राम जी सभी अयोध्या वासियों से मिलने के पश्चात सबसे पहले कैकई माता के भवन में गए।
*प्रभु जानी कैकई लजानी।*
*प्रथम तासु गृह गए भवानी।।*
जब राम जी माता कैकई के भवन में गए तो अयोध्या वासी सब कैकई माता के भवन के आसपास ही खड़े रहे ।
सबके मन में यह संसय था।
कि माता कैकई का कोई भरोसा नहीं है ।
ऐसा न हो कि,
राम जी जैसे ही कैकई माता से मिलें और कैकई माता राम जी से कहदें।
कि राम अभी दो चार वर्ष के लिए और वन में चले जाओ
तो क्या भरोसा।
इसलिए सबके मन में यह संसय था।
सब महल के आसपास ही खड़े रहे ।
और जब श्री राम जी कैकई माता से मिलने के पश्चात अपने भवन में गए।
*कृपा सिंधु जब मंदिर गए।*
*पुर नर नारि सुखी सब भए।।*
तब सब लोग आनंदित हुए की हां अब ठीक है ।
अब कोई गड़बड़ नहीं है ।
सब लोग अपने मन में बड़े हर्षित हुए।
उसी दिन सब लोग गुरुदेव वशिष्ठ जी के पास गए।
और जाकर कहा गुरुदेव राम जी के राज्याभिषेक में अब विलंब नहीं होना चाहिए।
आज ही राज्याभिषेक हो जाना चाहिए ।
गुरुदेव वशिष्ठ जी ने कहा अभी राम जी 14 वर्ष की वन यात्रा से आए हैं ।
अभी एक-दो दिन विश्राम कर लेने दो ।
राज्याभिषेक फिर कर दिया जाएगा ।अब क्या जल्दी है?
लोगों ने कहा नहीं गुरुदेव।
बस यही गड़बड़ पिछली बार हुई थी।
एक दिन के लिए राज्याभिषेक टला तो 14 वर्ष के लिए टल गया।
अब और विलंब नहीं होना चाहिए यह कार्य आज ही होना चाहिए।
अब मुनिवर बिलंब नहि कीजे।
महाराज कहं तिलक करीजै।।
गुरुदेव वशिष्ठ जी ने सभी को आश्वासन दिया।
ठीक है तैयारियां करो।
राम जी के राज्याभिषेक की तैयारियां प्रारंभ होने लगी।
श्री राम जी को सिंहासन पर विराजमान होने के लिए तैयार भी होना था।
तब तीनों भाई लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न राम जी के पास गए।
और जाकर कहा भैया आप स्नान कर लीजिए ।
वस्त्र धारण कर लीजिए।
हम तीनों भाई आपको स्नान करा देते हैं।
आपको सिंहासन आसीन होना है ।
श्री राम जी ने कहा हां ठीक है ।
किंतु,पहले स्नान मेरे सखाओं का होना चाहिए ।
*प्रथम सखन्ह अन्हवावहु जाई।।*
तीनों भाइयों ने कहा प्रभु।
आपके सखाओं का स्नान भी हो जाएगा ।
किंतु हमारी परंपरा रही है की सबसे पहले यह सुविधा राजा को मिलना चाहिए ।
श्री राम जी ने कहा नहीं।
राम राज्य की परंपरा यह नहीं होना चाहिए ।
कि सबसे पहले सुविधा ऊपर से प्रारंभ हो।
रामराज की परंपरा ऐसी होना चाहिए ।
कि सुख सुविधा सबसे पहले निम्न स्तर से प्रारंभ हो ।
और ऊपर की ओर जाए ।
सुख सुविधा ऐसा ना हो कि सबसे ऊपर से प्रारंभ की जाए और नीचे पहुंचते पहुंचते समाप्त ही हो जाए ।
नीचे तक पहुंच ही नहीं पाए। इसलिए सुख सुविधा नीचे से ही प्रारंभ हो।
मेरे सखाओं को स्नान पहले कराओ।
अब भगवान के सखा कोल भील निषाद केवट और तो और राक्षस भी इसमें शामिल थे।
भगवान के आदेश से सबसे पहले राम जी के सखाओं का स्नान कराया गया।
इसके पश्चात तीनों भाइयों ने कहा प्रभु आपके सखाओं का स्नान हो गया है ।
अब आप स्नान कर लीजिए।
चार आसान बिछाए गए। भगवान श्री राम जी ने भरत जी से कहा।
पहले आप तीनों भाई स्नान कर लीजिए।
मैं तुम्हें स्नान करा देता हूं ।
राम जी का आदेश सुनकर भरत जी सहित तीनों भाई आसन पर बैठे गये।
श्री राम जी भरत जी के सिर की जटाओं को सुलझाने लगे।
*पुनि करुणानिधि भरतु हंकारे।*
*निज कर राम जटा निरुआरे।।*
भगवान श्री राम जी ने देखा कि भरत के नेत्रों में जल बह रहा है राम जी ने पूछा?
भरत तुम्हारी आंखों में आंसू किसलिए ?
भरत जी ने तुरंत अपनी आंखों से आंसु पोंछे।
और कहा भैया देखो अब तो नहीं है ।
श्री राम जी ने कहा हां अब तो नहीं है ।
किंतु पहले क्यों थे ?
भरत जी ने बड़े गंभीर होते हैं कहा।
प्रभु जिसके सिर पर इतनी उलझने हो ।
फिर भी यदि उसकी आंखों में आंसू नहीं होंगे तो फिर क्या होगा किंतु आप देखो अब मेरी आंखों में आंसू नहीं है।
श्री राम जी ने पूछा अब क्यों नहीं है?
भरत जी ने हंसते हुए कहा ।
प्रभु जिसके सिर की उलझने सिर की जटाओं को आप सुलझाने वाले हो।
फिर उसकी आंखों में आंसू क्यों होंगे ।उसकी उलझने क्यों नहीं सुलझेगी ।
गोस्वामी जी के कहने का भाव यही है उलझनें तो सभी के सिर पर होती है।
यदि उन उलझनों को सुलझाने वाले स्वयं भगवान हो तो फिर तो उलझनों को समाप्त होना ही पड़ेगा।
श्री राम जी ने तीनों भाइयों को स्नान कराया।
*अन्हवाए प्रभु तीनिउ भाई।।*
स्नान करने के पश्चात तीनों भाइयों ने कहा भैया अब तो हमारा भी स्नान हो चुका है ।
अब हम तीनों भाई तुम्हें स्नान करा देते हैं।
भगवान ने कहा नहीं ।
छोटों के सिर पर बड़ों का हाथ शोभा देता है।
बड़ों के सिर पर छोटे के हाथ शोभा नहीं देते हैं ।
मैं अपने सिर की जटा स्वयं ही सुलझा लूंगा ।
और स्नान भी कर लूंगा।
भरतजी सहित तीनों भाइयों ने कहा।
प्रभु आप राजा हो। आप हमें सेवा का अवसर दीजिए।
श्री राम जी ने कहा नहीं नहीं। राजा को सत्ता का लालची नहीं होना चाहिए।
राजा का भाव सेवा और समर्पण का होना चाहिए
और आप लोग मेरा राज्याभिषेक करना चाहते हो मुझे राजा बनाना चाहते हो।
तो राजा को तो स्वावलंबी होना चाहिए ।
अपना कार्य स्वयं करना चाहिए वह राजा क्या?
जो अपने तन की सेवा न कर सके।
जो राजा अपने तन की सेवा न कर सके वह अपने वतन की क्या सेवा करेगा।
ऐसा कहते हुए भगवान श्री राम जी ने गुरुदेव से आज्ञा लेकर अपनी जटाओं को सुलझाया। और स्नान किया।
*पुनि निज जटा राम बिबराए।*
*गुरु अनुसासन मागि नहाए।।*
इसके पश्चात भगवान श्री राम जी ने वस्त्र और आभूषण धारण किए।
*जय श्री राम ।।*🙏🙏