भगवान श्री राम जी अंगद सुग्रीव विभीषण आदि सखाओं को विमान से ही अयोध्या पुरी के दर्शन करा रहे हैं।
*सुनु कपीस अंगद लंकेसा।*
*पावन पुरी रुचिर यह देशा।।*
भगवान कहते हैं।
मित्रों यद्यपि बैकुंठ की सब बढ़ाई करते हैं।
यह बात पुराणों में प्रसिद्ध है सारा संसार जानता है।
परंतु मुझे अवधपुरी के समान वह बैकुंठ भी प्रिय नहीं है।
*जद्दपि सब बैकुंठ बखाना।*
*वेद पुराण विदित जग जाना।।*
भगवान कहते हैं।
अवधपुरी की महिमा को कोई बिरला ही जानता है।
*यह प्रसंग जाने कोउ कोऊ।।*
कोई बिरला ही इसकी महिमा जानता है ।
भगवान ने यहां इसलिए कहा कि अवधपुरी भक्ति की नगरी है ।
जब यहां राम जी का जन्म हुआ था ।तब 68 करोड़ तीर्थ यहां उपस्थित हुए थे ।
भगवान शिव ने माता पार्वती को अयोध्या पुरी की महिमा का विस्तृत वर्णन किया है ।
जो पुराणों में वर्णित है।
इसलिए भगवान श्री राम जी कहते हैं।
कि अवधपुरी की महिमा को कोई बिरला ही जानता है।
भगवान शंकर ने माता पार्वती को कथा सुनाते हुए कहा था।
कि अवधपुरी में बास करने वाले जगन्नाथ जी के समान है ।
राम जी ने इसीलिए अपने सखाओं से कहा कि मुझे यहां के नर नारी अत्यंत प्रिय है।
*अति प्रिय मोहि इहां के बासी।।*
*अवधपुरी में साक्षात परब्रह्म*
परमात्मा का अवतरण हुआ है। इसलिए यह नगरी कोई साधारण नगरी नहीं है।
।भगवान शंकर ने एक बार नहीं पार्वती जी को यह बात बार-बार कहीं ।और सत्य है सत्य है ऐसा दो बार कहा है।
भगवान श्री राम जी ने सब लोगों को आते देखा ।
तो नगर के समीप ही विमान को उतरने की प्रेरणा की।
*आवत देखि लोग सब कृपा सिंधु भगवान नगर निकट प्रभु प्रेरेउउतरेउ भूमि बिमान।।*
भगवान श्री राम जी देखते हैं। भरत जी के साथ आए हुए सब लोग भगवान के वियोग के कारण बहुत दुबले पतले हो रहे हैं।
श्री राम जी ने गुरुदेव को आते देखा।
तो अपने धनुष बाण नीचे धर दिए ।
और जाकर दौड़कर भाई लक्ष्मण जी सहित गुरुदेव के चरण पकड़ लिए ।
गुरु वशिष्ट जी ने उठकर राम जी को गले लगाया।
गुरुदेव से मिलने के पश्चात श्री राम जी ब्राह्मणों से मिल रहे थे। उस समय देखते हैं कि किसी ने श्री राम जी के चरण पकड़ रखे हैं श्री राम जी देखते हैं।
तो भरत जी राम जी के चरणों में पड़े हैं।
श्री राम जी भरत जी को उठा रहे हैं ।भरत जी उठाये से उठ नहीं रहें हैं।
श्री राम जी ने जबरदस्ती उठाकर भरत जी को हृदय से लगा लिया
*परे भूमि नहीं उठत उठाये।*
*बर करि कृपा सिंधु उर लाए।।*
भगवान श्री राम जी भाइयों से मिले ।शत्रुघ्न जी को हृदय से लगाया ।
श्री सीता जी के चरणों में भरत जी ने प्रणाम किया।
श्री राम जी ने देखा ।
कि नगर के वासी रामजी के मिलने से दुख रहित हो गए हैं । अपने प्रभु से मिलने के लिए व्याकुल हो रहे हैं।
श्री राम जी ने श्री सीता जी की ओर देखा।
मानो श्री सीता जी ने राम जी से कहा।
प्रभु आप तो अपने असंख्य रूप धारण कर लीजिए ।
ताकि सभी से एक साथ मिलना हो जाए।
भगवान इस समय अमित रूप में प्रकट हो गए ।
*अमित रुप प्रगटे तेहि काला।।*
*सब लोगों से एक साथ ही मिल लिए ।*
सब लोगों को दुःख से रहित कर दिया
छन महि सबहि मिले भगवाना।।
सब माताएं श्री सीताराम जी की आरती उतार रहीं हैं।
श्री जानकी जी सासुओं के चरणों में लगकर हर्षित हो रही है।
लंकापति विभीषण वानर सुग्रीव नल नील जामवान अंगद हनुमान जी।
सभी ने उत्तम स्वभाव वाले मनुष्य के मनोहर शरीर धारण कर लिए।
*लंका पति कपीश नल नीला।*
*जामवंत अंगद शुभ शीला*
*हनुमदादि सब वानर वीरा*
*धरे मनोहर मनुज शरीरा।।*
श्री राम जी गुरु वशिष्ट जी को अपने सभी सखाओं का परिचय कराते हैं।
श्री राम जी अपने मित्र सखाओं से कहते हैं ।
कि, यह हमारे गुरुदेव हैं ।
इन्हीं की कृपा से मैंने रण में राक्षसों को मारा है।
राम जी के स्वागत के लिए अयोध्यापुरी के नर नारी हार फूल लेकर स्वागत के लिए आए थे।
जब राम जी और भरत जी का मिलन हुआ ।
नगर वासी पहचान नहीं पा रहें हैं कि भरत जी कौनसे हैं और रामजी कोनसे है।
दोनों भाइयों के रूप में समानता थी ।
दोनों की जटाएं उलझी हुई थी। नेत्रों से प्रेम आश्रु बह रहे थे। अयोध्यापुरी के नर नारी हार फूल लेकर खड़े हैं।
वह समझ ही नहीं रहे हैं ।
कि इनमें राम जी कौन है।
और भरत जी कौन है।
हार पहनाएं किसे।
कवि कहते हैं कि, लोग तो किसी को खोकर रोते हैं।
किन्तु रामजी और भरत जी का प्रेम निराला है ।
यह एक दूसरे को पाकर रो रहें हैं।
शिवजी कहते हैं।
हैं पार्वती माता कैकई श्री राम जी से मिलने में बहुत लजा रही है।
भगवान सब पुरवासियो से मिले
सबसे मिलने के पश्चात श्री राम जी सबसे पहले माता कैकेई के भवन में गये।
*यह प्रशंग अगली पोस्ट में। जय श्री राम।।*