सती सुलोचना अपने पति मेघनाथ का शव लेने रामा दल में पहुंची ।
मेघनाथ के शव को देखकर बहुत रुदन करने लगी।
श्री राम जी ने मेघनाथ का शीश सुलोचना के सुपुर्द कर दिया।
कथा आती है सुलोचना भी एक सती नारी थी।
रामजी ने लक्ष्मण जी से कहा था कि मेघनाथ के शीश को भूमि पर गिरने मत देना ।
नहीं तो अनर्थ हो जायेगा।
एक सती स्त्री के सत में बहुत बड़ी शक्ति होती है।
और मेघनाथ की पत्नी एक पतिव्रता नारी है।
इसलिए लक्ष्मण जी ने मेघनाथ के शीश को भूमि पर गिरने नहीं दिया।
मेघनाथ का शीश काटकर रामजी को गोद में डाल दिया।
भगवान श्री राम जी ने सुलोचना से प्रश्न किया।
तुम्हें यह कैसे ज्ञात हुआ कि मेघनाथ का वध लक्ष्मण ने किया है ?
सुलोचना ने कहा कि मैं एक सती नारी हूं ।
और मैंने अपने सतीत्व के बल पर यह पता लगाया है।
कि मेरे पति की भुजा पर उन्हें मारने वाले लक्ष्मण जी का नाम अंकित हो गया है।
लक्ष्मण जी ने मेरे पति की भुजा काटी है।
वानरों ने कहा यदि यह सत्य है कि तुम्हारे कहने से कटी हुई भुजा पर नाम अंकित हो गया। तो फिर यह भी हो सकता है ।
कि मेघनाथ का कटा हुआ शीश हंस भी सकता है।
यह सुनकर मेघनाथ का कटा हुआ शीश ठहाके मारकर हंसा।
कथाओं में यह वर्णन आता है कि मेघनाथ के शीश का हंसने के प्रति भाव यह था।
कि जब सुलोचना विलाप कर रही थी।
कि स्वामी आप मुझे बताए बिना युद्ध भूमि में आए थे।
यदि मुझे यह ज्ञात होता कि आपका संग्राम लक्ष्मण जी से होने वाला है।
तो पाताल लोक से मैं अपने पिता को आपकी सहायता के लिए बुला लेती।
मेघनाथ के शीश का हंसने के प्रति भाव यही था।
कि तुम्हारे पिता ने ही मेरा वध किया है।
लक्ष्मण जी ने सती सुलोचना को प्रणाम किया ।
और कहा देवी, तुम्हारे तप सतीत्व को देखकर मैं बहुत अभिभूत हुआ हूं।
मैंने ही तुम्हारे पति का वध किया है ।
सुलोचना ने कहा नहीं।
आपका और मेरे पति का युद्ध तो हुआ ही नहीं।
यह युद्ध तो मेरा, और उर्मिला जी के बीच हुआ है।
किंतु आज मैं हार गई।
और उर्मिला जी जीत गई ।उसका कारण यह रहा कि। उर्मिला का पति अपने धर्मात्मा भाई के साथ था ।
और मेरा पति उनके पापात्मा पिता के साथ-।
बस इसी कारण से उर्मिला जी की विजय हुई।
और मेरी हार हुई है।
श्री राम जी ने सुलोचना को मेघनाथ का शव सुपुर्द किया। सुलोचना अपने पति का शव लेकर गई और सती हो गई।
आगे प्रसंग आता है।
कि एक-एक करके रावण के सभी पुत्र मारे गए।
रावण के एक लाख पूत सवा लाख नाती थे।
नारांतक जैसे महान योद्धा थे। जिसकी सेना में करोड़ों सैनिक थे।
जिसका पुराणों में वर्णन है।
सभी युद्ध में मारे गए।
अब रावण बहुत निराश था। दूसरे दिन रावण ने युद्ध भूमि में अपनी सेना भेजी।
यह प्रसंग अगली पोस्ट में। जय श्री राम।।