जय श्री राम।।
अयोध्या में जब भरत जी के बाण से हनुमान जी मूर्छित हुए थे।
तब रामजी का सारा परिवार एकत्रित हो गया था।
अपने परिवार को दुखी देखकर लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला जी बोली ।
माता आप चिंता ना करें।
मेरे पति को कुछ नहीं हुआ है। वह तो प्रभु की गोद में विश्राम कर रहे हैं ।
उन्हें 14 वर्ष होने को है।
अभी तक उन्होंने ना अन्न ग्रहण किया है ,और न ही, सोएं है।
इसलिए प्रभु ने उन्हें कुछ समय के लिए विश्राम दिया है।
मैं जानती हूं जब मेरे स्वामी वनवास जा रहे थे।
उस समय मैं आरती का थाल सजाकर लाई थी।
तब तक स्वामी जा चुके थे। उन्हें ऐसा लगा होगा ।
कहीं प्रभु मुझे छोड़कर नहीं चलें जाएं। मेरी पूजन की थाली सजी की सजी रह गई थी।
तब मेरी एक सखी ने मुझसे पूछा था।
कि अब इन फूलों का और आरती के थाल का क्या करोगी?
तब मैंने कहा था कि कोई बात नहीं।
स्वामी जब 14 वर्ष की अवधि पूर्ण होने पर लौट कर आएंगे ।तब मैं उनकी आरती उतारूंगी। और इन पुष्पों से स्वागत करूंगी। मेरी सखी ने कहा था।
क्या 14 वर्ष तक यह तुम्हारा दीपक जलता ही रहेगा?
क्या यह फूल कुम्हलायेंगे नहीं?। तब मैंने उस दिन सखी से कहा था।
कि आज मैं यह संकल्प लेती हूं। आज मैं अपने सतीत्व का प्रभाव दिखाना चाहती हूं।
रघुकुल के इतिहास में एक पन्ना अपने नाम लिखना चाहती हूं। जब परमात्मा के संकल्प से सृष्टि ठहर सकती है ।
तो क्या एक सती के संकल्प से 14 वर्ष तक यह दीपक जल नहीं पाएगा।
क्या फूल बिना कुम्हलाये नहीं रह पाएंगे ।
आज मैंने देखा है ,मेरा वह दीपक यथावत जल रहा है ।
और एक भी फूल नहीं कुम्हलाया है।
माता यह लड़ाई मेरे स्वामी और मेघनाथ की नहीं।
बल्कि मेघनाथ की पत्नी सुलोचना की और मेरी है ।सुलोचना भी सती नारी है।
आज मैं देखती हूं किसकी विजय होती है ।
उर्मिला जी की बातें सुनकर सब रणिवास प्रसन्न हुआ ।
हनुमान जी ने भरत जी से कहा ।अब विलंब ना कीजिए मुझे जाने की आज्ञा दीजिए ।
सबेरा होते ही काम बिगड़ सकता है।
*तात गहरु होइहि मोहि जाता।*
*काजु नसाइहि होत प्रभाता।।*
भरत जी ने कहा राम जी के प्रताप से मेरे वाण में इतना सामर्थ है कि मैं तुम्हें, अतिशीघ्र वहां पहुंचा दूंगा, जहां कृपा निधान श्री राम जी हैं।
*चढ मम सायक सैल समेता।*
*पठवौं तोहि जंह कृपानिकेता।।*
हनुमान जी को एक बार तो मन में यह अभिमान हुआ कि,
मुझ जैसे बीर बजरंगी को भरत जी अपने वाण पर बैठा कर रामजी के पास कैसे पहुंचा सकते हैं।? मेरे भार से वाण चलेगा कैसे?
*सुनि कपि मन उपजा अभिमाना।*
*मोरे भार चलिहि किमि बाना।।*
फिर हनुमान जी को तुरंत यह बोध हो गया कि,रामजी के प्रताप से सब सम्भव है।
*राम प्रभाव बिचारि बहोरी।*
*बंदि चरन कह कपि कर जोरी।।*
हनुमान जी ने मन में विचार किया कि,भरत जी तो रामजी के मुझसे भी बड़े भक्त हैं।
लक्ष्मण जी मूर्छित हुए हैं तो उनके लिए तो मैं संजीवनी बूटी लेकर जा रहा हूं।
और मैं मूर्छित हुआ तो भरत जी ने तो केवल रामजी का सुमिरन किया।
केवल रामजी का नाम लेने मात्र से मेरी मूर्छा दूर कर दी।
भरत जी कोई साधारण नहीं हैं।
चरणों में प्रणाम करते हुए
हनुमान जी ने कहा।
भरत भैया मैं जानता हूं आज मैंने आपके बल की थाह पा ली हैं।
आपके प्रताप को हृदय में धारण करके में रामजी के पास चला जाऊंगा।
*तव प्रताप उर राखि प्रभु,जैहऊं नाथ तुरंत।।*
अब मुझे जाने की आज्ञा दीजिए। इस तरह भरत जी को प्रणाम करके हनुमान जी पर्वत सहित संजीवनी बूटी लेकर चले ।
*अस कहि आयसु पाइ पद,बंदि चलेऊ हनुमंत।।*
उधर रामजी
लक्ष्मण जी को मूर्छित अवस्था में उठाकर हृदय से लगा कर साधारण मानवों की भांति प्रलाप कर रहें हैं।
हैं लक्ष्मण तुमने मेरे लिए माता पिता को छोड़ दिया।
और गर्मी बरसात शीत सब दुख सहे।
*मम हित लागि तजहिं पितु माता।*
*सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।।*
है भाई अब वह तुम्हारा प्रेम कहां हैं?
*सो अनुराग कहां अब भाई।।*
यदि मैं जानता कि वन में भाई से विछोह होगा तो मैं पिता जी के वचन को नहीं मानता।
*जौं जनतेऊं बन बंधु बिछोहू।*
*पिता बचन मनतेऊं नहिं ओहू।।*
गोस्वामी जी श्री तुलसीदास जी महाराज ने मानस में शब्दों का प्रयोग इस तरह किया है कि,कोई किसी तरह की शंका न करें।
यहां रामजी लक्ष्मण जी को गोद में रखकर प्रलाप कर रहे हैं।
विलाप और प्रलाप में अन्तर है।
प्रलाप से आशय यह है कि प्रलाप करने वाले को यह बोध ही नहीं रहे कि वह क्या बोल रहा है।
इसे गोस्वामीजी ने प्रलाप कहा है।
रामजी भी यहां विलाप नहीं प्रलाप कर रहें हैं।
कह रहे हैं ऐसा मालूम होता तो पिताजी के वचनों को भी नहीं मानता।
साधारण मानवों की भांति लीला कर रहे हैं।
आधी रात बीत चुकी है अबतक
हनुमानजी नहीं आये हैं।
*अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ।।*
भगवान का प्रलाप देखकर सब वानर दुखी हो रहें हैं।
इतने में हनुमान जी महाराज आ जाते हैं।
*प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर ,*
*आइ गयऊ हनुमान जिमि,करुना मंह बीर रस।।*
हनुमान जी को देखकर वानर सेना प्रसन्न हुई।
श्री राम जी हनुमान जी से प्रशन्न होते हुए मिले।
*हरषि राम भेटेउ हनुमाना।।*
वैद्यराज द्वारा लक्ष्मण जी का उपचार किया गया। लक्ष्मण जी पूर्ण रूप से स्वस्थ हुए ।
*तुरत वैद्य तव कीन्ह उपाई।*
*उठि बैठे लछिमन हरषाई।।*
राम जी ने भाई लक्ष्मण जी को गले लगाया। रामजी ने हनुमान जी को भी गले लगाया ।
*हरषे सकल भालु कपि ब्राता।।*
*वानर भालू सब हर्षित हुए।*
*इसके आगे का प्रशंग अगली पोस्ट में। जय श्री राम।।*
जय श्री राम
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