जय श्री राम।।
राम जी और रावण का युद्ध चल रहा है। वानर भालू ,राक्षसों को मार रहे हैं पटक रहे हैं।
वानरों को , जो राक्षस अपने काबू से बाहर दिखाई देते है।
उसे वानर चरण पकड़ कर राम जी के चरणों में फेंक देते हैं।
*महां महां मुखिया जे पावहिं।*
*ते पद गहि प्रभु पास चलावहिं।।*
कितने ही अनगिनत राक्षस मारे गए।
तुलसीदास जी ने इनकी संख्या नहीं लिखी।
किसी ने तुलसीदास जी महाराज से पूछा स्वामी जी।
आपने संख्या नहीं लिखी कि कितने राक्षस मारे गए?
गोस्वामी तुलसीदास जी ने उत्तर दिया कि मरने दो राक्षस ही तो है।
कौन से यह महापुरुष है।
जो इनकी जयंती मनाई जाएगी।
वानर, राक्षसों को राम जी के पास फेंकते थे।
राम जी उन्हें सीधे अपने धाम पहुंचा देते हैं।
*देहिं राम तिन्हहू निज धामा।।*
किसी ने वानर सेना के सैनिकों से पूछा?
तुम इन राक्षसों के चरण पकड़ कर क्यों फेंक रहे हो?
यह तो राक्षस है।
चरण तो महापुरुषों के पकड़े जाते हैं।
वानर बींरो ने उत्तर दिया।
हम इनके चरण इसलिए पकड़ रहे हैं।
क्योंकि हम इन्हें राम जी के पास भेज रहे हैं।
और जो राम जी के पास जा रहा हो उसके तो चरण पकड़ने में ही भलाई है।
इस प्रसंग के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी कहना चाहते हैं। कि कोई प्रेम भाव से या शत्रु भाव से जो भी उद्देश्य लेकर राम जी के पास जा रहा हो ।
तो हमें भी उनके चरणों का ही आश्रय लेना चाहिए।
राम जी सब राक्षसों को मार कर सीधे अपने धाम भेज रहे हैं। माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा?
राम जी राक्षसों को अपने धाम में क्यों भेज रहे हैं?
यह नरभक्षी राक्षसों को ब्राह्मणों का मांस खाने वालों को भी भगवान परम गति क्यों प्रदान कर रहे हैं?
*खल मनुजाद द्विजामिष भोगी।*
*पावहिं गति जो जाचत जोगी।।*
और जब यह प्रभु के धाम में जाएंगे।
तो वहां भी सज्जनों को
ऋषि-मुनियों को परेशान करेंगे। भगवान शिव ने कहा पार्वती।
मैंने भगवान से पूछा था।
उन्होंने कहा। यह राक्षस भी मेरे ही हैं।
कोई मुझे मित्र भाव से याद करता है। कोई मुझे शत्रु भाव से याद करता है ।
यह राक्षस मुझे शत्रु भाव से याद करते हैं।
किंतु याद तो करते हैं।
इसलिए यह मेरे धाम में जाने के हकदार हैं ।
यह सब मेरे है।
*उमा राम मृदुचित करुनाकर।*
*बयर भाव सुमिरत मोहि निसिचर*
भगवान शिव पार्वती जी से कहते हैं ।हैं भवानी ऐसा श्री राम जी के समान और कौन दयालु होगा।
*अस कृपाल को कहहु भवानी।।*
इस तरह रामजी सब राक्षसों का उद्धार करते हैं।
संध्या समय युद्ध विराम होता है ।उधर रावण अपनी आधी सेना नष्ट हुई जानकर बड़ा चिंतित होता है।
*आधा कटकु कपिन्ह संघारा।*
*कहहु बेगि का करिअ बिचारा।।*
दूसरे दिन युद्ध भूमि में मेघनाथ आता है।
*आते ही गरजता है।*
भाई से विद्रोह करने वाला विभीषण कहां हैं?
आज मैं सबको मारुंगा।
*कहां विभीषण भ्राता द्रोही।*
*आजु सबहि हठि मारउं ओही।*
इधर रामजी की और से युद्ध करने के लिए लक्ष्मण जी अंगद आदि वीर वानरों के साथ भगवान से आज्ञा लेकर चले।
*आयसु मागि राम पहिं,अंगदादि कपि साथ,*
*लछिमन चले क्रुद्ध होइ,बान सरासन हाथ।।*
मेघनाथ काम का रूप है ।
और लक्ष्मण जी शेषावतार हैं। काम पर विजय पाना है तो काम पर तो होस रहते हुए विजय पाई जाती है।
काम पर जोश में रहकर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती।
लक्ष्मण जी से यहां भूल हुई। मेघनाथ पर विजय पाने के लिए जोश में चले।
होश खो चुके थे।
यहां तक की प्रभु को प्रणाम करना भी भूल गए।
केवल आज्ञा लेकर क्रोधित होकर चले।
*लछिमन चले क्रुद्ध होइ बान सरासन हाथ।।*
मेघनाथ और लक्ष्मण जी का घमासान युद्ध हुआ ।
मेघनाथ ने सब तरह से अपने अस्त्र-शस्त्र चलाकर लक्ष्मण जी पर विजय प्राप्त करना चाही। किंतु लक्ष्मण जी को जीत नहीं पाया।
और जब मेघनाथ को लगा कि लक्ष्मण जी अब मेरे प्राण ले लेंगे।
*रावन सुत निज मन अनुमाना।*
*संकठ भयउ हरिहि मम प्राना।।*
तब उसने वीर घातनि शक्ति का प्रयोग किया।
*लक्ष्मण जी के हृदय में वह वीर घातिनि शक्ति लगी।*
*बीरघातिनि छाडिसि सांगी।*
*तेजपुंज लछिमन उर लागी।।*
शक्ति के लगते ही लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए।
*मुरछा भई सक्ति के लागे।।*
भूमि पर अचेत होकर गिर गए।
मेघनाथ ने अपने वीर सैनिकों के साथ मिलकर लक्ष्मण जी को उठाकर लंका ले जाने का प्रयास किया।
*मेघनाथ सम कोटि सत,जोधा रहे उठाइ।।*
किंतु शेष अवतार लक्ष्मण जी को मेघनाथ उठा नहीं पाया।
हनुमान जी ने जब यह देखा तो लक्ष्मण जी को अपनी बाहों में उठा लिया।
संध्या समय जब सब लोटे तब श्री राम जी ने पूंछा?
लक्ष्मण कहां है?
*लछिमन कहां बूझ करुनाकर।।*
तब तक हनुमान जी लक्ष्मण जी को अपनी बाहों में उठा कर राम जी के पास ले आए।
हनुमान जी संत हैं।
और संत का काम तो रामजी के भक्तों को उठाना ही होता है।
और इतना ही नहीं।
संत भगवान के भक्तों को उठाकर भगवान की गोद में समर्पित कर देते हैं।
यही काम हनुमानजी ने किया।
राम जी की गोद में लक्ष्मण जी को डाल दिया।
लक्ष्मण जी की यह दशा देखकर भगवान श्री राम बहुत विलाप करने लगे ।
अनुज देखि प्रभु अति दुख माना।
*इसके आगे का प्रश्गं अगली पोस्ट में जय श्री राम।।🚩🏹🙏*

