किसी को याद है कि 2013 में एक अल्पसंख्यक सुरक्षा कानून आ रहा था, जिसके तहत दंगा जो भी करे दंगाई बहुसंख्यक होगा?
कैसे याद होगा? उसके लिए हिन्दू याददाश्त चाहिए... यहां तो सवर्ण दलित की चरस का नशा नहीं उतर रहा...
अच्छा किसी को याद है कि मुम्बई के आज़ाद मैदान में क्या हुआ था? और बैंगलोर में नये साल पर लड़कियों के साथ? अच्छा बम ब्लास्ट याद हैं? कितने हुए थे 10 साल के शासन में? मतांतरण तो याद होंगे?
वो आज़म ख़ाँ की अकड़ तो याद होगी जब सांसद होते हुए भी रामपुर में जया प्रदा को होटल में रूम नहीं मिला और वो रोते रोते दिल्ली गयी थीं... 10 साल के दंगे याद हैं और उनमें फँंसने और पिटने वाले?
देश पे पहला हक़ किसका है ये याद है? घोटाले याद हैं? उन घोटालों से जो देश का पहिया जाम हुआ उससे किसका नुकसान हुआ होगा? माओवाद याद है? उसमें कौन मरते हैं? सब कुछ छोड़ो, अभी का केरल और बंगाल तो याद है?
अगर नहीं, तो तुम्हारी बात सही है कि कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता भाजपा के होने से? हम कोई बेवकूफ़ थोड़े ही हैं जो अपनी रक्षा नहीं कर सकते?
आज तक भी तो करते रहे हैं, वो तो 2014 में बहक कर वोट दे दिया था भाजपा को, वरना उपरोक्त चीज़ों से न हम कभी घबराए और न कभी आगे घबरायेंगे।
इसलिए भाड़ में गया मोदी और भाड़ में गया हिंदुत्व... हमें मलाई नहीं मिल रही इसलिए हम नकारात्मकता फैलाएंगे और आड़ उसे सच्चाई और नैतिकता की देंगे... क्योंकि हम अंधभक्त नहीं है, हम सच्चे "स्वार्थी" हैं जो रंगे सियार की तरह राष्ट्र और धर्म हितैेषी होने का ढोंग करते हैं।
और जी हाँ! हमारे पास हज़ारों में फ़ॉलोवर हैं जो हमने कमाए तो मोदी के नाम पर थे लेकिन अब हम उसी मोदी को उनसे गाली दिलवाते हैं... बैक डोर से इसका सौदा हुआ है... क्योंकि यही उम्मीद तो मोदी से थी तो उन्होंने तो कुछ मलाई दी नहीं...
बाक़ी वाक़ई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि सरकार किसकी हो...?
अभी भी चेत जाने का समय है। 2024 में एक बार फिर से, जातीय अहंकार त्यागकर, सवर्ण दलित मुद्दे को फ़िलहाल ठंडे बस्ते में डाल कर भाजपा को सत्ता सौंपनी है ताकि भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वसमावेशी सनातन हिंदू एकता परवान चढ़ सके और भारत का बहुमुखी विकास हो सके।
मै, मेरा, अपना से कुछ ज्यादा सोचे।