एक ओर तो अंग्रेजों द्वारा बताया गया कि भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज था तो फिर जादू टोने का अधिकार महिलाओं को कैसे मिल गया? एक ओर तो कहा जाता है कि महिलाओं को पूजा पाठ का अधिकार नहीं था वहीं दूसरी ओर महिलाएं जादू टोना कर रहीं हैं। महिलाएं भगवान की पूजा नहीं कर सकतीं लेकिन शैतान की पूजा कर सकतीं हैं। क्या तर्क दिए जाते थे इन अंग्रेजों के द्वारा!
जिन अंग्रेजों के यहाँ महिलाओं को सिर्फ भोग की वस्तु समझा जाता था, जहाँ प्रतिदिन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार होता था, वही अंग्रेज भारत में आकर कहते हैं कि भारत में महिलाओं का सम्मान नहीं होता। उन अंग्रेजों को भारतीय महिलाओं की चिंता सताने लगी जिन्होंने अपने शासन के दौरान लाखों महिलाओं का शोषण किया। मगर भारतीय इतिहास में लिख दिया कि महिलाओं का शोषण भारतीय संस्कृति का हिस्सा है,
भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है जहाँ महिलाओं को कोई अधिकार नहीं दिए जाते थे। यह तो सिर्फ भारतीय समाज को तोड़ने के लिए रचा गया एक षड्यंत्र मात्र था, जिसे कुछ बुद्धिजीवी लोगों ने हकीकत मानकर स्त्रियों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
अंग्रेजों द्वारा कहा गया कि अगर किसी व्यक्ति के पड़ोस में कोई निचली जाती का परिवार रहता था तो उसकी सम्पत्ति हड़पने ले लिए उस पर डायन होने का आरोप लगा दिया जाता था। परंतु प्रश्न यह उठता है कि जिस भारत में कहा गया कि "वसुधैव कुटुंबकम" अर्थात संपूर्ण विश्व ही परिवार है वहाँ अपने ही पड़ोसी के साथ ऐसा दुर्व्यवहार कौन करेगा?
जिस भारत में सम्पत्ति दान कर दी जाती थीं, उस भारत में सम्पत्ति हड़पने जैसा लालच कहाँ से आ गया?
ये लालच भी उन लुटेरों के साथ ही भारत आया जिनके देश में लूटे हुए धन के सौदे को लेकर ही युद्ध हो जाया करते थे। उदाहरणार्थ कोलंबस और वास्को डी गामा दोनों स्पेन और पुर्तगाल के लुटेरे थे। एक दिन जब दोनों के बीच लूटे हुए समान के पीछे लड़ाई हुई तो दोनों चर्च पहुंचे। तब वहाँ के पादरी ने कहा कि लड़ो मत, एक व्यक्ति पश्चिम की ओर चले जाओ और एक व्यक्ति पश्चिम की ओर चले जाओ। तो कोलंबस अमेरिका की ओर चल दिया और वास्को डी गामा भारत आ गया। और अपना लालच भी अपने साथ लेकर आया। भारत आते ही उसनें लोगों को भी लालच देना शुरू किया। अंग्रेजों ने भारत में लोगों को सामंत बनाना शुरू किया जो कर की वसूली किया करते थे। इन्हीं सामंतों को ऊंची जात का कहा गया और बाकियों को निचली जात का कहा गया। कर ना मिलने की स्थिति में उनपर तरह-तरह के आरोप लगा दिए जाते थे। ऐसा ही आरोप था डायन होने का। अगर कर नहीं दिया गया तो उस परिवार की सम्पत्ति,
यह कहकर हड़प ली जाती थी कि यह डायन जैसी शैतानी गतिविधियों में लिप्त हैं। और ऐसे ही लोगों ने धीरे-धीरे मन ही मन में डायन को सच मानना शुरू कर दिया।
अंग्रेजों द्वारा यह बताया गया कि जिस महिला को डायन समझा जाता था उससे अपराध स्वीकार करवाने के लिए उसे तरह-तरह की यातनाएं दी जाती थीं। अब प्रश्न यह उठता है कि भारतीय नागरिक इतने वीभत्स कहाँ से हो गए कि निर्दोष महिलाओं को सजा देने लगे?
जहाँ प्रत्येक महिलाओं को देवी की प्रतिमा समझा जाता था वहाँ महिलाओं का शोषण करना भारतीय संस्कृति के कारण नहीं था। जहाँ हर नारी का सम्मान किया जाता था, जहाँ नारियों के सम्मान के लिए अनेक युद्ध हुए,
जहाँ नारियों को अपराध करने पर भी कठोर सजा नहीं दी जाती थीं, वहाँ नारियों को बिना गलती के इतनी वीभत्स यातनाएं कैसे दी जा सकतीं हैं? यह भारत की संस्कृति को कलंकित करने का एक षड्यंत्र था जिसे अंग्रेजों और वामपंथियों द्वारा रचा गया।
अंग्रेजों द्वारा यह कहा गया कि भारत के नागरिकों में शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं थी। इसीलिए वह ऐसे अंधविश्वास में फंस जाते थे। अब प्रश्न यह उठता है कि अगर भारत में शिक्षा नहीं थी तो विश्व गुरु किसे कहा जाता था?
सब जानते हैं कि भारत में नालंदा विश्वविद्यालय, तक्षशिला विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय जैसे महान विश्वविद्यालय रहे हैं, जहाँ सम्पूर्ण विश्व से लोग पढ़ने आते थे। जहाँ अनेकों प्रकार की विधाएँ सिखाई जाती थीं वह भी बिना किसी भेद भाव के। अंग्रेजों के अनुसार जब वह भारत आए तब भारत में 90 प्रतिशत से अधिक साक्षरता दर थी। यहाँ का प्रत्येक नागरिक विश्व कल्याण के लिए कार्यरत था। अपार धन सम्पदा का देश भारत आर्थिक स्थिति से कमजोर कैसे हो गया ये सब जानते हैं। 90 प्रतिशत से अधिक साक्षरता दर वाला देश भारत अशिक्षित कैसे हुआ ये भी सब जानते हैं। इसके प्रमाण की क्या आवश्यकता!
भारत को आर्थिक रूप से कमजोर बताकर, भारत से ही लूटा हुआ धन, भारत को ही कर्जे पर देकर, महान बनना कोई अंग्रेजों से सीखे! भारत में ही शिक्षा ग्रहण कर,
भारत को अशिक्षित बताना,
और समस्त इतिहास में फेरबदल करके भारतीय लोगों को ही यह बात बताना कोई अंग्रेजों से सीखे!
ऐसे और भी बहुत सारे प्रश्न हैं जिन्हें आज हमें पूछने की आवश्यकता है। नहीं तो आने वाली पीढ़ी को भी हमारी ही तरह इसी संदेह में जीना होगा कि भारतीय संस्कृति अच्छी नहीं है, जिसके परिणाम स्वरूप वह कभी भी भारत को अपना नहीं समझेंगे और विदेश में रहने की बातें करते रहेंगे। सभी पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर अपनी सभ्य भारतीय संस्कृति को भूल जाएंगे उनके मन में कभी बहु भारत के प्रति सम्मान की भावना नहीं जागेगी।
अगर डायन प्रथा के बारे में बात करें तो यह गतिविधियाँ आज भी भारत के विभिन्न हिस्सों में देखने को मिल जाती है, हालांकि सरकार ने इसे खत्म करने के लिए अनेकों प्रतिबंध लगाएं हैं। परंतु जब अंग्रेजों और वामपंथियों ने ग्रामीण लोगों को धर्म का सहारा लेकर इस प्रथा को बताया था तो यह इतनी आसानी से नष्ट नहीं हो सकती। क्योंकि भारतीय लोग अपने धर्म के प्रति आती संवेदनशील हैं। और फिर इतने सालों की गुलामी के कारण जब उन्हें अपने ही धर्म ग्रंथ विक्षिप्त करके पढ़ाए गए तो पीढ़ी दर पीढ़ी वो सभी विकार लोगों के मन में आ ही जायेंगे जिन्हें अंग्रेजों ने उत्पन्न किया था।