वानर सेना श्री जानकी जी के समाचार लेकर राम जी के समक्ष आती हैं। प्रभु के चरणों में प्रणाम करते हैं ।
आइ सबन्हि नावा पद शीशा।।
जामवंत जी सब समाचार प्रभू को सुनाते हैं।
नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना।
राखे सकल कपिन्ह के प्राना।।
हनुमानजी किस तरह समुद्र लांघकर लंका में जाते हैं। यह सब समाचार जामवंत जी रामजी को सुनाते हैं।
जामवंत जी हनुमान जी की प्रशंसा करते हुए, श्री राम जी से कहते हैं। प्रभु हनुमान जी की करनी को हजार मुख से भी नहीं कहा जा सकता है।
नाथ पवनसुत कीन्ह जो करनी।
सहसहुं मुख न जाइ सो बरनी।।
राम जी हनुमान जी को हृदय से लगाते हैं। और कहते हैं। हनुमान मैं सदा तुम्हारा ऋणी रहूंगा तुमसे कभी उरिण नहीं हो पाऊंगा।
सुन सुत तोहि उरिन मैं नाही।।
भगवान बार बार हनुमान जी के मुख की और देख रहे हैं।
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता।
हनुमान जी रामजी के प्रेम भरे वचन सुनकर गदगद हो जाते हैं।
और रामजी की और टकटकी लगा कर देखने लगते हैं।
किसी ने हनुमान जी से कहा हनुमान जी,।व्यवहारिक दृष्टि से देखने में यह आता है कि, अपनी प्रशंसा सुनकर हर कोई प्रशन्नचित होकर शर्माते हुए कहना लग जाता है कि नहीं, नहीं ,मेरी क्या योग्यता है ।यह तो सब प्रभु की कृपा है । आपका आशीर्वाद है।
किन्तु तुम तो अपनी प्रशंसा सुनकर बड़े मग्न हो रहे हो।
शर्माना तो बात दूर की है। तुम तो भगवान के मुख की और टकटकी लगा कर देख रहे हो। यह तो कोई शिष्टाचार वाली बात नहीं हुई।
ऐसा कहने वाले को हनुमान जी ने बड़ा सुंदर उत्तर दिया।
भाई टकटकी लगा कर देखने का मेरा उद्देश्य यह है कि, भगवान बड़े कोतुकी हैं चमत्कारी है।मैं एक टक इनकी और इसलिए देख रहा हूं की कहीं इनकी बातों में व्यंग्य तो नहीं हैं।? प्रशंशा का करने का अभिप्राय कुछ और तो नहीं है।?
क्योंकि प्रशंसा तो एक बार इन्होंने नारद जी की भी की थी ।जब नारद जी को कामदेव पर विजय प्राप्त करने का अभिमान हुआ
था। और उस प्रशंसा का अभिप्राय नारद जी का अभिमान दूर करना था इसलिए भगवान ने नारद जी की प्रशंसा की थी । परिणाम क्या हुआ था यह सब जानते हो।मैं भी यही देख रहा हूं कि, भगवान की यह प्रशंसा कहीं वह नारद जी वाली प्रशंसा तो नहीं है। कहीं प्रभु को ऐसा तो नहीं लग रहा है कि मुझे भी समुद्र लांघने का अभिमान हो गया है।मैं इनके मुख के भाव को देखकर यह पहचान करने का प्रयास कर रहा हूं कि प्रभु की प्रशंसा में कहीं व्यंग्य तो नहीं है।
हनुमान जी के मुख से यह बातें सुनते ही भगवान के नेत्रों में जल भर आया।और हनुमान जी को प्रभु ने हृदय से लगा लिया।
लोचन नीर पुलक अति गाता।
श्री राम जी हनुमान जी से लंका के सब समाचार पूछते हैं।
हनुमान जी महाराज बहुत महान है ।उधर जब श्री माता सीता जी ने पूछा था कि प्रभु ने मुझे भुला दिया है।तब हनुमान जी ने वहां राम जी का पक्ष लिया। और कहा माता ,प्रभु ने तुम्हें नहीं भुलाया है।
उनके स्थान पर यदि कोई और होता तो शायद यही कहता कि, हां माता आपकी बात सही है। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। किंतु हनुमान जी ने ऐसा नहीं कहा। हनुमान जी ने राम जी का पक्ष लिया और कहा। कि माता राम जी तो दिन रात तुम्हें याद करते हैं । उन्होंने तुम्हें नहीं भुलाया है।और जब इधर माता जानकी के समाचार लेकर यहां आए। तो यहां पर हनुमान जी ने माता सीता जी का पक्ष लिया। राम जी से कहा प्रभु आपने माता श्री सीता जी को भुला दिया है ।
सीता केअति बिपति बिसाला।
उन पर अति विपत्ति है। वह दिन रात तुम्हारा भजन सुमिरन करती रहती है। तुम्हारे चरणों में ही उनका ध्यान रहता है।
सीता के अति विपत्ति विशाल।
इस चौपाई की संत बड़ी सुंदर व्याख्या करते हैं। हनुमान जी महाराज परम ज्ञानी है।और सनातन धर्म की परंपराओं के अनुसार एक पुत्र अपनी माता का नाम नहीं लेता है जबकि इस चौपाई में हनुमान जी महाराज ने श्री राम जी के समक्ष सीता जी का नाम लेकर संबोधित किया। हनुमान जी महाराज सीता के स्थान पर माता भी कह सकते थे।
माता के अति विपत्ति विशाला ऐसा भी तो कह सकते थे। फिर उन्होंने सीता क्यों कहा? संत इसकी व्याख्या करते हैं ।कि हनुमान जी के हृदय में श्री राम जी लक्ष्मण जी और श्री सीता जी विराजमान है। जब राम जी का संदेश लेकर सीता जी के समक्ष गए थे ।तब हनुमान जी तो केवल अभिनय कर रहे थे। श्री राम जी ने हनुमान जी के हृदय से श्री सीता जी से वार्तालाप की थी।
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा।
जानत प्रिया एकु मन मोरा।।
यह चौपाई बताती है कि यह संवाद राम जी ने किया है ।और सीता के अति विपत्ति विशाला। यह शब्द भी श्री राम जी के ही हैं हनुमान जी के नहीं हैं।
हनुमान जी के होते तो सीता के स्थान पर हनुमान जी माता कहते। इतने बड़े ज्ञानी हनुमानजी यह भूल नहीं करते।
रामजी ने कहा हनुमान। एक बात मेरी समझ में नहीं आई ।तुम तो कहते हो कि जीव जब मेरा भजन सुमिरन नहीं करता है। तब उस पर विपत्ति आती है। और तुम कह रहे हो कि श्री जानकी जी दिन-रात मेरा भजन सुमिरन ध्यान करती है। उन पर अति विपत्ति है ।यदि दिन-रात मेरा भजन सिमरन करने वाले पर अति विपत्ति आती है। तो कोई मेरा भजन सुमिरन क्यों करेगा।? तुम्हारा यह तर्क तो मुझे समझ में नहीं आ रहा है ।हनुमान जी ने कहा प्रभु मैं ठीक कह रहा हूं। जब जीव आप का भजन सिमरन नहीं करता है ।आपको भूल जाता है। तो उस पर विपत्ति आती है ।किंतु जब आप किसी को भूल जाते हो। तो फिर उस पर अति विपत्ति आती है। मेरे कहने का तात्पर्य भी यही है कि आपने श्री सीता जी को भुला दिया है ।इसी कारण उन पर अति विपत्ति है। हनुमान जी के यह वचन सुनकर रामजी ने हनुमान जी को हदय से लगा लिया।
इससे आगे अगले प्रशंग में जय श्री राम।।🌹🌹