श्री गणेशाय नमः
प्रथा और कुप्रथा
जब कोई व्यक्ति किसी विचार से प्रभावित होकर धर्म की आड़ में कोई गलत कार्य करता है और जब समाज उसी कार्य को बिना सोचे समझे अपना लेता है तब वह एक कुप्रथा बन जाती है।
वहीं,
जब सही विचारों के साथ किसी कार्य को समाज द्वारा अपनाया जाए और उस पर आचरण किया जाए तब वह प्रथा बन जाती है।
मन की बात
यह मेरी प्रथम पुस्तक है, तो शायद मुझे उतना प्रेम ना मिले जितना वामपंथी इतिहासकारों को और लेखकों को मिलता है। शायद मेरी बातें भी आपको तर्क हीन लगे, शायद मेरी बातों के, मेरे द्वारा लिखी गई इस किताब में दिए गए तर्कों के,
आप सबूत भी मांगे!
परंतु मैं यही
कहूँगा कि जब बिना तर्कों के,
बिना सबूतों के आधार पर आप अपनी इतिहास की किताबों पर विश्वास कर सकते हैं,
आप उन विषयों को पढ़कर अपनी परीक्षाओं में लिख सकते हैं,
सिर्फ इस आधार पर कि वह आपकी किताब में लिखा है, तो मुझ पर भी विश्वास करना होगा!
जब उन पर विश्वास किया जा सकता है, तो मेरे साथ अन्याय क्यों? मेरी बातों का भी विश्वास करना पड़ेगा।
सनातन धर्म पर हमेशा से ही यह कुठाराघात होता आया है कि सनातन धर्म में स्त्रियों को दबाया जाता है,
उनकी बातों को कोई अहमियत नहीं दी जाती,
भारत में सदैव ही स्त्रियों का शोषण होता आया है,
परंतु इस बात का क्या सबूत है?
लेकिन फिर भी हमने इस बात को बिना सोचे समझे मान लिया।
क्या हमने यह प्रश्न पूछा कि, जिस भारत को "भारत माता" के नाम से जाना जाता था,
जो एक स्त्रीलिंग उपाधि है। जिस भारत को "सोने की चिड़िया" कहा जाता था,
वह भी स्त्रीलिंग उपाधि है। जिस सनातन धर्म के ग्रंथों में स्त्रियों के सम्मान की बात की गई हैं,
उस सनातन धर्म में,
उस भारत में स्त्रियां शोषित कैसे हो सकती हैं?
जब आपने यह प्रश्न नहीं पूछे तो फिर मेरी पुस्तक पर कोई भी प्रश्न करना आपको शोभा नहीं देता।
इतने वर्षों की पराधीनता के दौरान अंग्रेजों ने, मुगलों ने हमारे ग्रंथों के साथ,
हमारी परंपराओं के साथ इतने विक्षेप किए हैं कि हम सोच भी नहीं सकते, लेकिन फिर भी वह इतिहास जो हमें पढ़ाया जाता था, उसकी सच्चाई का सबूत मांगना हमने उचित नहीं समझा। इसीलिए आज के समय में बताए जाने वाले सच पर प्रश्न करना भी उचित नहीं होगा,
क्योंकि हमने झूठ पर भी प्रश्न नहीं किया!
यही तो न्याय है!
-
कृष्णांश अग्रवाल
प्रस्तावना
अपनी इस पुस्तक में मैंने उन प्रथाओं का विश्लेषण किया है, उन प्रथाओं का जिक्र किया है जिनकी वास्तविकता कुछ और है परंतु उनमें बदलाव कर उनकी असली वास्तविकता के साथ छेड़छाड़ कर सनातन धर्म पर लगातार प्रहार किया जाता है।
इस पुस्तक को पढ़ने से पहले आपको मुझसे एक बात सुनिश्चित करनी पड़ेगी कि आपने अब तक सनातन धर्म की प्रथाओं के बारे में जो कुछ पढ़ा है, वह सब एक किनारे रख कर एक नए सिरे से आप इस पुस्तक को पढ़ेंगे।
जैसा की पुस्तक के नाम से ही पता चलता है कि सनातन में जितनी भी प्रथाओं को कुप्रथा बताया गया, वह सिर्फ एक सफेद झूठ था। या फिर कहा जाए कि सफेदों द्वारा बोला गया झूठ था,
अर्थात अंग्रेजों द्वारा बोला गया झूठ।
अंग्रेजों ने बहुत ही सोच-विचार करके सनातन धर्म की परंपराओं के साथ बदलाव किया, और उनके निशाने पर सिर्फ स्त्रियाँ ही थी।
इसीलिए भारत में जितनी भी प्रथाएं स्त्रियों के लिए थीं, उन सभी में विक्षेप कर भारत वासियों के दिमाग में डाल दिया गया, और बहुत ही सुनियोजित ढंग से उसे सनातन धर्म की कुप्रथा कहकर सनातन धर्म को बदनाम करने की कोशिश की गयी।
जिस भारत में महिलाओं के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती थी उस भारत में यह कहा गया कि महिला कुछ भी नहीं है, और हमने ये बिना सोचे समझे मान भी लिया!
आगे आने वाले पाठों में मैं आपको उन प्रथाओं के वास्तविक रूप के बारे में बताने की कोशिश करूंगा और आप उन्हें समझने की कोशिश कीजिएगा!
कुछ प्रश्न
सामान्यतः किसी भी पाठ के अंत में प्रश्न होते हैं। परंतु मैं इस पुस्तक की शुरुआत से पहले ही आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ, जिनके उत्तर आपको किसी परीक्षा में नहीं लिखने। वह प्रश्न आपको सिर्फ अपने मन से पूछने हैं,
अपनी आत्मा से पूछने हैं!
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क्या आपने कभी अपना असली इतिहास जाने की कोशिश की है?
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क्या आपको कभी ऐसा नहीं लगता कि सनातन धर्म को ही सदैव निशाना बना कर प्रहार किया जाता है?
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क्या आपके पास इतना सामर्थ्य है कि आप सच को स्वीकार सकें?