उत्तर प्रदेश विधानसभा में एक रिपोर्ट पेश हुईं... मेरठ मुरादाबाद दंगे की... ।रिपोर्ट पुलिस जाँच की नहीं हैं... हाईकोर्ट के जज के नेतृत्व में बने न्यायिक आयोग की जाँच रिपोर्ट है... 1980 की ये घटना है और 1983 में जाँच आयोग ने ये रिपोर्ट जस्टिस एम पी सक्सेना के नेतृत्व में सरकार को दे दी...
जब दंगा हुआ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री परम सेक्युलर वीपी सिंह थे और रिपोर्ट आयी तब श्रीपति मिश्र... 1980 के बाद 9 साल यानी 1989 तक उत्तरप्रदेश पर कांग्रेस का राज था... फिर मुसलमानो के प्रिय मुलायम मुख्यमंत्री बने... कुल 15 मुख्यमंत्री आये और गए इस बीच... कल्याण सिंह और महाराज जी को छोड़ दें तो सभी परम सेक्युलर... ज्यादातर तो टोपी लगा इफ्तार चाटने वाले... फिर 43 साल सच क्यों छिपाया गया...? किससे छिपाया गया...?
रिपोर्ट बताती हैं मुस्लिम लीग के एक नेता डॉ शमीम खान ने सिर्फ अपनी चुनावी हार का बदला लेने को ये दंगा करवाया...
लोगों को भड़काया...
मस्जिद में सूअर की अफवाह फैलाई...
और साथ दिया मौलानाओं ने...
84 जानें गयी...
अब इस घटना के 43 साल बाद और रिपोर्ट पेश होने के 40 साल बाद योगी सरकार ने मुरादाबाद दंगों की जांच रिपोर्ट को विधान मंडल में पेश कर दिया है।
13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद में ईदगाह में ईद की नमाज के बाद हिंसा भड़की थी। उस वक्त नमाजियों के बीच सुअर घुस जाने की अफवाह के बाद ईदगाह में भगदड़ मच गई थी। उत्तेजित नमाजियों ने पहले पुलिस को निशाना बनाया था, फिर हिंदू उनके टारगेट पर आ गए थे। देखते-देखते ही इस हिंसा ने हिंदू-मुस्लिम दंगे का रूप ले लिया था।
ईद का दिन था... कई हिन्दू बधाई देने को ईदगाह के बाहर खड़े थे... डॉ शमीम के इशारे पर बेवजह इनपर हमला बोल दिया... मौत के घाट उतार दिया... और ईदगाह में मौजूद नमाजियों ने ये किया...
इस दंगे में मारे गए अधिकारियों और पुलिस के जवानों के परिवारों को न तो अतिरिक्त मुआवजा मिल पाया और न ही कोई सरकारी मदद ही मिल पाई। मुद्दे को लेकर संघर्ष करने के लिए तमाम संगठन बनें और सीएम तथा पीएम को चिट्ठियां लिखी गईं और मांग की गई कि दंगे के दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो और पीड़ित लोगों को न्याय मिले।
दुनियाँ में कोई एक उदाहरण मुझे बता दिया जाये जहाँ किसी हिन्दू, ईसाई या यहूदी ने उनके त्यौहार पर बधाई देने... गले मिलने पहुंचे दूसरे धर्म के लोगों को ही क़त्ल कर डाला हो... ये है तुम्हारा जिहाद... ?
गलत!! उस रोज वो डॉ शमीम खान नहीं था... गलत तुम्हारा जिहाद ही था... वर्ना नेक नियत से तुम्हें मुबारक़बाद देने पहुंचे लोगों को तुम घेर कर क़त्ल न करते...
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