श्रावण मास का चौथा सोमवार
दुनिया भर में सभी मंदिरों के गुंबद त्रिशूल लगे हैं पर केवल बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग धाम देवघर में पंचशूल है, जिसे सुरक्षा कवच माना गया है।
धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान शंकर ने अपने प्रिय शिष्य शुक्राचार्य को पंचवक्त्रमनिर्माण की विधि बताई थी, जिनसे फिर लंकापति रावण ने इस विद्या को सीखा था। कहा जाता है कि रावण ने लंका के चारों कोनों पर पंचशूल का निर्माण करवाया था, जिसे प्रभु श्रीराम को तोड़ना आसान नहीं हो रहा था। बाद में विभिषण द्वारा इस रहस्य की जानकारी भगवान राम को दी गई और तब जाकर अगस्त मुनि ने पंचशूल ध्वस्त करने का विधान बताया था।
उसी पंचशूल को इस मंदिर पर लगाया था, जिससे इस मंदिर को कोई क्षति नही पहुंचा सके। सभी 12 ज्योतिर्लिंग के मंदिरों के शीर्ष पर ‘त्रिशूल’ है, परंतु बाबा बैद्यनाथ के मंदिर में ही पंचशूल स्थापित है। सुरक्षा कवच के कारण ही इस मंदिर पर आज तक किसी भी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं हुआ है।
पांच आवरणों, पांच मंडलों और पांच ब्रह्म कलाओं से युक्त ज्ञानमय कैलास का संकेत है। पंचशूल पांच अक्षरों से युक्त प्रणव ओंकार है। अ'उ,म, बिन्दु और नाद है। भगवान शिव के पांच मुंह ईशान, उत्सुक, अघोरी, वामदेव और सद्धोजात से पंचानन कहलाते हैं। पंचानन निवृत्ति, प्रतिष्ठा, विधा, शान्ति तथा शान्त्यातीत के नाम से जाने जाते हैं।
जगत संबंधी कार्य सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह कहे गये हैं। पंचकोष, पांचों देवता (सदा भवानी दाहिनी सम्मुख रहे गणेश, पंच देव मिली रक्षा करें ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं। पंचशूल शिव तत्व है। शक्ति पीठ में वैद्यनाथ के शिवा के पांच मुख है। पंचशूल के दर्शन मुक्ति मोक्ष तक प्रदान करता है।
कालांतर में ये प्रदेश गिद्धौर महाराज के अधिकार में था, और गिदौर महाराज द्वारा ही चंद्रमौलेश्वर बैद्यनाथ के पंचशूल में स्वर्ण कलश लगवाए थे, कलश में उस दिन की तिथि लिखी गई है।
जय बाबा बैद्यनाथ जी
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