विभाजन के समय वहां 22-23 प्रतिशत हिंदू थे। बांग्लादेश बनने के बाद वे 11-12 प्रतिशत के करीब बचे। आज वे दो प्रतिशत भी नहीं हैं। आखिर ये दो प्रतिशत कब तक बच पाएंगे? यह प्रश्न इसलिए क्योंकि उनके विनाश पर आम तौर पर भारत के साथ-साथ दुनिया भी मौन साधे रहती है। साभार : राजीव सचान
जो लोग कहते हैं कि क्या फर्क पड़ता है यदि भारत इस्लामिक राष्ट्र भी बन जाए तो... वह इस आर्टिकल को बारीकी से पढ़ें तो उन्हें अपने इस बेकार से सवाल का जवाब ढंग से मिल जाएगा...
पाकिस्तानी हिंदू ‘भेड़ियों’ के समक्ष हैं। उनका हरसंभव तरीके से लगातार ‘शिकार’ हो रहा है। इसे समझने के लिए पाकिस्तान से इसी रविवार को आई तीन खबरों से अवगत होइए।
पहली खबर में बताया गया कि पाकिस्तान के सिंध में कुछ डकैतों ने एक हिंदू मंदिर में फायरिंग के साथ राकेट से भी हमला किया। चूंकि राकेट फटा नहीं इसलिए मंदिर को कोई विशेष क्षति नहीं हुई। इन डकैतों ने सिंध के सभी हिंदू मंदिरों को नष्ट करने की धमकी दी है। इसलिए दी है, क्योंकि पाकिस्तानी महिला सीमा हैदर चार बच्चों के साथ नेपाल के रास्ते अपने हिंदू प्रेमी के पास भारत आ गई है।
हिंदुओं की दयनीय दशा का अनुमान इससे लगाएं कि सिंध प्रांत के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ज्ञानचंद्र इसरानी ने डकैतों से अपील की कि वे हिंदू समुदाय को निशाना न बनाएं। उन्होंने यह विनती सिंध विधानसभा में की। एक मंत्री अपने समुदाय की रक्षा के लिए डकैतों से निवेदन करे, ऐसा पाकिस्तान में ही हो सकता है। इससे समझा जा सकता है कि हिंदू समुदाय के नेताओं तक को शासन-प्रशासन पर भरोसा नहीं कि वह उनके समाज की रक्षा के लिए कुछ करेगा।
भरोसा करें भी तो कैसे, क्योंकि वे हर दिन यह देख रहे हैं कि सिंध में हर दूसरे-तीसरे दिन किसी नाबालिग हिंदू लड़की को अगवा कर जबरन इस्लाम स्वीकार करा दिया जाता है और फिर किसी मुसलमान, अधिकतर मामलों में लड़की का अपहरण करने वाले मुसलमान से ही उसका निकाह करा दिया जाता है। पुलिस, अदालत और सरकार के लोग या तो अपहरण करने वालों की मदद करते हैं या फिर बेशर्मी के साथ यह कहते हैं कि लड़की बालिग है और उसने स्वेच्छा से इस्लाम स्वीकार किया है। लड़की के मां-बाप रोते-कलपते रह जाते हैं, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। हां, कुछ नेक दिल पाकिस्तानी ट्विटर, फेसबुक या यूट्यूब चैनल पर इस अत्याचार और अन्याय की निंदा करते हैं। कभी-कभी कुछ टीवी चैनल और अखबार भी खबर छाप देते हैं, लेकिन सौ में से नब्बे मामलों में हिंदू लड़की अपने मां-बाप के पास नहीं लौट पाती।
एक आंकड़े के अनुसार अकेले सिंध में प्रति वर्ष लगभग एक हजार हिंदू लड़कियों को जबरन इस्लाम में दाखिल कराकर उनका जबरिया निकाह कराया जाता है। इसके लिए मियां मिट्ठू नामक एक बदमाश मौलवी बाकायदा एक गिरोह चलाता है। उसकी इन्हीं हरकतों के कारण ब्रिटेन ने उस पर प्रतिबंध लगा रखा है, लेकिन कोई राजनीतिक दल उसके खिलाफ बोलने को तैयार नहीं, उसकी गिरफ्तारी के बारे में तो सोचा भी नहीं जा सकता।
रविवार को ही पाकिस्तान के सिंध प्रांत से दूसरी खबर यह आई कि 30 हिंदू महिलाओं और बच्चों को बंधक बना लिया गया है। तत्काल पता नहीं चला कि इसका कारण क्या है, लेकिन आशंका यही है कि उन्हें या तो जबरन मुसलमान बनाया जाएगा या फिर बंधुआ मजदूर। पाकिस्तान में यह खूब होता है। हिंदुओं की गरीबी का लाभ उठाकर उनकी मदद करने के नाम पर उन्हें इस्लाम स्वीकारने को कहा जाता है। मरता क्या न करता की हालत से गुजर रहे गरीब हिंदू ऐसा करने को बाध्य होते हैं।
तीसरी खबर भी सिंध से आई। कराची में डेढ़ सौ साल पुराने मारी माता हिंदू मंदिर को रात में पुलिस की उपस्थिति में बुलडोजर से मटियामेट कर दिया गया। यह काम अच्छे से हो सके, इसलिए इलाके की बिजली गुल कर दी गई। कहा गया कि यह मंदिर जर्जर हो गया था। क्या पाकिस्तान में सैकड़ों साल पुराने भवनों को ढहाने का रिवाज है? नहीं, लेकिन वहां किसी मंदिर को गिराना हो या उसकी जमीन हड़पनी हो तो फिर पाकिस्तानियों के पास बहानों की कमी नहीं रहती। इस मंदिर को फर्जी तरीके से बेचने की भी बात सामने आ रही है। हालांकि सिंध सरकार ने कहा है कि इस मंदिर की जगह और कुछ नहीं बनने दिया जाएगा, लेकिन इस पर भरोसा करना कठिन है, क्योंकि पाकिस्तान में जो मंदिर एक बार गिरा दिया जाता है, वह फिर कभी बन नहीं पाता। इसी कारण वहां सैकड़ों मंदिरों का अस्तित्व मिट चुका है।
पाकिस्तान में वह दिन दूर नहीं, जब वहां एक भी हिंदू नहीं बचेगा। आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। विभाजन के समय वहां 22-23 प्रतिशत हिंदू थे। बांग्लादेश बनने के बाद वे 11-12 प्रतिशत के करीब बचे। आज वे दो प्रतिशत भी नहीं हैं। आखिर ये दो प्रतिशत कब तक बच पाएंगे? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि उनके विनाश पर आम तौर पर भारत के साथ-साथ दुनिया भी मौन साधे रहती है। यह भी ध्यान रखें कि नागरिकता संशोधन कानून अभी भी ठंडे बस्ते में है। वास्तव में पाकिस्तानी हिंदू अंतिम सांसें गिन रहे हैं। मुट्ठी भर लोगों को छोड़कर औसत पाकिस्तानी जनता हिंदुओं के प्रति घृणा से भरी हुई है, क्योंकि वहां के स्कूलों में आज भी यही पढ़ाया जाता है कि हिंदू काफिर और जहन्नुमी ही नहीं, धोखेबाज और इंसानियत के दुश्मन भी होते हैं।