दिल्ली में साक्षी नाम की लड़की की बर्बर हत्या हुई। प्रसङ्ग बस इतना था कि साहिल नाम के लड़के ने नाम और परिचय बदल कर छल से उसे फंसाना चाहा, और जब लड़की दूर होने लगी तो उसकी बर्बरता से हत्या कर दी।
ऐसी बर्बरता पर हल्ला-बवाल होना ही था, सो खूब हुआ। सोशल मीडिया में भी हल्ला हुआ, अपराधियों को कठोर सजा दिलाने की मांग उठी।
इसी बीच अपराधियों के तरफदारों ने एक खेल खेला। इंस्टाग्राम पर एक पुरानी आईडी को एडिट कर के साक्षी दीक्षित नाम दिया गया और उनमें "साहिल की जान" लिख दिया गया। चुकी तबतक साक्षी की जाति किसी को पता नहीं थी, इसलिए बनाने वाले ने साक्षी दीक्षित लिख दिया।
सोचिये तो, ऐसा क्यों किया गया? ऐसा इसलिए किया गया ताकि कहा जा सके कि देखो तुम्हारी लड़की ही प्रेम में मरी जा रही थी।
उसके बाद चुपके से आईडी का स्क्रीन शॉट उछाल दिया गया। बस क्या था, फेसबुकिया लड़ाके कूद पड़े। "अच्छा हुआ साली मर गयी" से लेकर "साली लड़कियां इसी के लायक हैं" जैसी गालियां घूमने लगीं और अपराधी पर से ध्यान हट गया। किसी भी मुद्दे पर त्वरित प्रतिक्रिया देने की फेसबुकिया जिद्द में लोगों ने उस फर्जी स्क्रीनशॉट को देश भर में वायरल किया। वायरल करने वाले सभी कट्टर हिन्नू टाइप लड़के हैं। एक दो तो अच्छी समझ रखने वाले प्रभावशाली लोगों को भी यह फर्जी तस्वीर लगाते देखा मैंने। यह हैं हम...
सोच कर देखिये, नैरेटिव के खेल में कितनी आसानी से हार जाते हैं आप। एक कोई लड़का दस मिनट का समय निकाल कर एक आईडी एडिट कर देता है और पूरा नैरेटिव बदल देता है, और आप सेल्फ गोल मारने लगते हैं।
एक बात और! यदि वह स्क्रीन शॉट सही भी होता क्या इतने से ही वह क्रूरतम हत्या जायज हो जाती? एक व्यक्ति आपके घर में घुस कर आपकी सम्पत्ति लूट ले जाय तो क्या अपराधी केवल इसी तर्क पर बरी हो जाएगा कि आपके घर का कोई बच्चा दरवाजा खुला छोड़ दिया था?
अति उत्साह में कुछ भी बोल देना स्वयं को ही नुकसान पहुँचाता है। ऐसे गम्भीर विषयों पर कुछ भी बोलने के पहले सौ बार सोचा जाना चाहिये। याद रखिये, किसी भी बात पर तुरंत विश्वास कर लेने के दिन लद गए। आप एक अघोषित युद्धक्षेत्र में जी रहे हैं...
#साभार: सर्वेश तिवारी श्रीमुख