एक समय लगता था कि भारत निर्धनता, बीमारी के बोझ, ख़राब सड़के, गंधाती ट्रेन एवं रेलवे स्टेशन, विकास दर से अधिक मंहगाई दर, आतंकी हमलो इत्यादि के साथ "सह अस्तित्व" के लिए अभिशप्त था।
पूर्व की सरकारों ने केवल नारे दिए, कुछ लॉलीपॉप (आधुनिक सुविधाओं से लैस ट्रांसपोर्ट व्यवस्था की जगह फ्री बस एवं सस्ती रेल यात्रा; गरीबी हटाओ के नाम पर स्वयं को समृद्ध बनाना; आतंकी हमलो से बचाने की जगह गंगा-जमना तहजीब का नारा; भ्रष्टाचार हटाने की जगह सेकुलरिज्म एवं सामाजिक न्याय का नारा इत्यादि) पकड़ा दिया जाता था। करोड़ो लोग बिना बैंक अकाउंट, नल से जल, घर, खस्ताहाल ट्रेन में चलने के लिए अभिशप्त थे। समस्या जस की तस बनी रहती थी - चाहे वह केंद्र की सरकार हो या राज्य की।
स्थिति यह हो गयी थी - और अभी भी है - कि जिन लोगो ने व्यवस्था में कोई सुधार नहीं किया, उन्ही लोगो की तीसरी से लेकर पांचवी पीढ़ी सत्ता में है या फिर सांसद एवं विधायक है।
प्रधानमंत्री बनने के पूर्व मोदी जी ने एक घुम्मकड़ की तरह भारत के 450 से अधिक जिलों में रात्रि विश्राम किया था और लगभग 45 साल का जीवन एक रमते योगी की तरह व्यतीत किया था, उन्हें मूलभूत समस्याओ और उसके कारको के बारे में गहन जानकारी थी।
तभी सरकार बनाने के बाद, प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय व्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव शुरू कर दिया था। इस बदलाव की सूची में सभी को बैंक अकाउंट, शौचालय, घर, नल से जल, निर्धनों को आयुष्मान स्वास्थ्य बीमा, मुद्रा लोन, आधार पहचान, डिजिटल भुगतान सुविधा, GST, बैंकिंग सुधार, इत्यादि सम्मिलित है।
आज स्थिति यह है कि जब ब्रिटेन में मंहगाई दर 10 प्रतिशत एवं अमेरिका में 5 प्रतिशत चल रहा है, तो भारत में मंहगाई दर केवल 4.25 प्रतिशत है। सोनिया सरकार के समय में अमेरिका एवं ब्रिटेन में मंहगाई दर 2 प्रतिशत थी, जबकि भारत में 10 प्रतिशत के ऊपर चल रही थी। इससे भी बड़ी त्रासदी यह थी कि भारत की विकास दर, मंहगाई दर से कम थी; अर्थात एक भारतीय समृद्ध होने की जगह निर्धन हो रहा था। इस समय भारत की विकास दर 7 प्रतिशत से अधिक है; जबकि मंहगाई दर केवल 4.25 प्रतिशत है।
वर्ष 2014 में मलेरिया के 11 लाख केस थे; वर्ष 2021 में केवल 1.6 लाख। वर्ष 2007 में भारत में काला अजर के 44000 से अधिक केस थे; पिछले वर्ष केवल 834। यूपी में मस्तिष्क ज्वर के केस लगभग नगण्य हो गए है।
दाल के मामले में अब हम लगभग आत्मनिर्भर हो गए है (अरहर का उत्पादन अभी भी कम है)। इसका प्रमुख कारण है चना एवं मटर के उत्पादन में भारी वृद्धि जिसके लिए MSP के दाम में भारी बढ़ोत्तरी जिम्मेवार है।
भ्रष्टाचार से निपटने के सन्दर्भ में अब कैश में केवल 500 रुपये तक का नोट उपलब्ध है। भारी घूस के लिए कैश जुटाना, ले जाना, देना एवं खपाना अत्यधिक दुरूह हो जाएगा। पिछले वित्तीय वर्ष में अकेले सेल फ़ोन द्वारा 139 लाख करोड़ का भुगतान किया गया था। दूसरे शब्दों में, हमारी जीडीपी का 50% से अधिक भुगतान सेल फ़ोन के माध्यम से हो रहा है। इस लेन-देन में डेबिट-क्रेडिट कार्ड, बैंक ट्रांसफर, बैंक ड्राफ्ट, चेक इत्यादि द्वारा किये जाने वाले भुगतान को नहीं जोड़ा गया है। साथ ही, पंचतारा होटल, कैश ऑन डिलीवरी, बड़े शोरूम इत्यादि में किये जाने वाले कैश भुगतान की पक्की रसीद मिलती है जो रिकॉर्ड में आ जाता है।
मेरा अनुमान है कि मार्च 2024 (अर्थात अगले वित्तीय वर्ष के अंत तक) भारत की अर्थव्यवस्था का 80% सरकारी रेकॉर्डों में कैप्चर हो जाएगा। दूसरे शब्दों में जीडीपी का 80% फॉर्मल इकोनॉमी से आएगा।
अब आप महिलाओ को फ्री बस यात्रा करवाकर चुनाव तो जीत सकते है। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना, भ्रष्टाचार समाप्त करना, राजनीति को परिवारवादी पार्टियों से मुक्ति दिलाना, आतंकी हमलो से छुटकारा इत्यादि के लिए आपका क्या विज़न है?
क्या हम भारतीय परिवारवादी पार्टियों, या फिर आप पार्टी जैसी लॉलीपॉप थमाने; संविधानिक पद पर बैठे मंत्रियों द्वारा प्रधानमंत्री मोदी एवं लेफ्टिनेंट गवर्नर के लिए भद्दी भाषा का प्रयोग करने वाली पार्टी के भ्रष्ट शासन को झेलने के लिए अभिशप्त है?