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चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिल्ली सरकार को अधिकार ही नहीं दिए, मोदी के खिलाफ अपनी “भड़ांस” निकालने के लिए केजरीवाल को अपना “प्रवक्ता” बना दिया। चंद्रचूड़ को आभास भी नहीं उनके फैसले का क्या मतलब है।
आज CJI डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीवी नरसिम्हा की संविधान पीठ ने ऐसी सरकार के हाथों में दिल्ली की प्रशासनिक सेवाओं का अधिकार दे दिया जिसके 2 मंत्री घोटाले में जेल में हैं और स्वयं मुख्यमंत्री केजरीवाल भ्रष्टाचार के आरोपों में आकंठ डूबा हुआ है।
पीठ के जजों को खासकर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ को पता है कि किस तरह केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराज्यपाल के खिलाफ विषवमन करता फिरता है। यहां तक विधानसभा के मंच उपयोग करता है ऐसी गालियां देने के लिए जिससे उसके खिलाफ कोई कार्रवाई न हो सके।
जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसले में बयान साबित कर रहे हैं कि यह फैसला उनकी मोदी के लिए सनक पूरी करने के लिए दिया गया है और जैसे केजरीवाल को अपना “प्रवक्ता” नियुक्त कर दिया क्योंकि स्वयं को वह बातें नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोल नहीं सकते जो केजरीवाल और उसके बोल सकते हैं।
चंद्रचूड़ की पीठ की पीठ ने फैसला देते हुए यह नहीं सोचा कि इसमें सही मायने में “विवेक का प्रयोग” नहीं उपयोग किया गया। आपने कहा कि प्रशासनिक कार्यों की शक्ति चुनी हुई सरकार के हाथ में होनी चाहिए और केंद्र सरकार राज्य सरकार के शासन के अधिकार को अपने हाथ में न ले ले।
इसके अलावा चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने तो दिल्ली की वकालत करते हुए कहा कि दिल्ली अन्य केंद्र शाषित प्रदेशों से अलग है और पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और लैंड के सिवाय सारा प्रशासन दिल्ली सरकार के पास है। उन्होंने यहां तक कहा कि यदि अधिकारी अपने मंत्रियों को रिपोर्ट नहीं करेंगे और उनके आदेशों का पालन नहीं करेंगे तो मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी पर नकारात्मक असर होगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ और उनकी टीम के जजों को आभास नहीं है कि उन्होंने क्या फैसला कर दिया क्योंकि चंद्रचूड़ समेत सुप्रीम कोर्ट के सभी जज “नरेंद्र मोदी की चुनी हुई केंद्र सरकार” के हर प्रशासनिक मामले में दखल देने के लिए आतुर रहते हैं। केंद्र सरकार ही नहीं, संसद के कानून बनाने के अधिकार में भी अतिक्रमण करने में पीछे नहीं रहते।
चाहे CBI डायरेक्टर की नियुक्ति हो या ED के डायरेक्टर की, CVO की हो या चुनाव आयुक्तों की सब मामलों में पंचायत बिठा कर टांग अड़ाने का काम करते हैं सुप्रीम कोर्ट के जज।
ऐसे सभी मामलों में चल रही सुनवाई तुरंत बंद कर दीजिए चंद्रचूड़ जी और यह भी याद रखिये कॉलेजियम के फैसले मानना या न मानना केंद्र सरकार का “प्रशासनिक अधिकार” है वो कल से आपकी अनुशंसा को कूड़ेदान में डालना शुरू कर दें, तो चिलाइएगा मत।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि केजरीवाल के पूजन के लिए चंद्रचूड़ और उनकी बेंच ने अपने ही साथी जजों के 2019 के फैसले को ठोकर मार दी जिसमें जस्टिस एके सींकरी ने कहा था कि जॉइंट सेक्रेटरी और उसके ऊपर के अधिकारियों पर केंद्र का नियंत्रण होगा, उनसे नीचे के अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग दिल्ली सरकार कर सकती है। दूसरी तरफ जस्टिस अशोक भूषण ने कहा था कि दिल्ली एक केंद्र शासित क्षेत्र है और उसे केंद्र से भेजे गए अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं मिल सकता।
लेकिन आज के फैसले में केजरीवाल को चंद्रचूड़ की टीम ने केंद्र के अधिकारियों का भी बॉस बना दिया। और यह दिल्ली और अन्य राज्यों को अराजकता की आग में झोंकने वाला काम होगा क्योंकि अनेक राज्य हैं जो केंद्र के कानून मानने और लागू करने से मना कर रहे हैं। उन्हें अब और शक्ति मिलेगी आज के फैसले से।
#साभार: सुभाष चन्द्