#शुभ_रात्रि
आज प्रतिस्पर्धा के इस युग में हमारी जीवन शैली ऐसी बन गई है कि हम सभी एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे हैं। आगे बढ़ने की आपाधापी में हम अपनों को ही भूलते जा रहे हैं। भौतिकवाद के कारण ही संयुक्त परिवारों का हृास होता जा रहा है। प्रत्येक व्यक्ति पर भौतिकवादी सोच इतनी हावी होती जा रही है कि हम एक तरफा चलते जा रहे हैं। हमारा ध्येय किसी भी तरह से पैसा कमाने और जितना भी सामान इकट्ठा कर सकते हैं उतना ही करने का बन गया है। आजकल तो बैंक व अन्य संस्थाएं ऋण भी उपलब्ध करा देती है। हम आज अपने आसपास विभिन्न प्रकार के साज और सामान को एकत्रित करने की होड़ में लगे हुए हैं और हमारे गुरुओं व समाज द्वारा सिखाए हुए सामाजिक मानव मूल्यों को भूलते जा रहे हैं। हम व्यक्ति का सामाजिक मूल्यांकन करते हैं कि उसके पास कितना बड़ा बंगला है, कितनी गाड़ियां हैं और अन्य सामान को देखकर करते हैं। यह नहीं देखते कि वह हमारा सम्मान करता है या नहीं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और मुसीबत के समय ही एक मनुष्य ही दूसरे के काम आता है न कि वे मशीनें जो मनुष्य द्वारा ही बनाई जाती हैं। आज भौतिकवादी सोच के कारण प्रत्येक आदमी अवसाद का शिकार होता जा रहा है। हम सब भारतीय अपनी सभ्यता व संस्कृति को त्यागकर पाश्चात्य संस्कृति में रमते जा रहे हैं। आज वर्तमान समय में हम अपने सीता, राम, मीराबाई, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को भूलाकर माया नगरी के कलाकारों को अपना आदर्श मानने लगे हैं। आधुनिक युग में शैक्षिक विकास के साथ भौतिकतावाद की दौड़ भी तेज हुई है। येन केन प्रकारेण अधिक से अधिक सुख सुविधाएं जुटाने के प्रयास में नैतिकता का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। बिना नैतिक उत्थान के सिद्धांतों की रक्षा किए मानव विकास संभव नहीं है।
हमें नई पीढ़ी को भौतिकवादी दृष्टिकोण से बचाने के लिए उन्हें संस्कारित करना होगा। पूर्ण भौतिकवादी होने का सबसे बड़ा दंड यह है कि ईश्वर के प्रति मनुष्य की आस्था शिथिल हो जाती है। कुछ व्यक्ति तो समाज में अपना रुतबा बढ़ाने के चक्कर में बैंक से ऋण ले लेते हैं। भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए वह व्यक्ति अनेक ऋण का कर्जदार बन जाता है।
आज ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण हमारी भौतिकवादी और उपभोक्तावादी जीवनशैली है। इससे हम विभिन्न बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। इससे मनुष्य पर ही नहीं बल्कि प्रकृति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। हमें अपने आचरण में सकारात्मक परिवर्तन कर प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ बंद करना होगा। दुनिया को एक नई सोच, एक नया नजरिया अपनाने की आवश्यकता है। ऐसी सोच जो जितना संभव हो वैज्ञानिक और आध्यात्मिक हो जिसे एक नई क्रांति का नाम दिया जाए, जिससे धर्म और विज्ञान का भेद खत्म हो जाए और धर्म में विज्ञान, विज्ञान में धर्म नजर आए। दोनों एक दूसरे के सहयोगी हों।
. 🚩हर हर महादेव 🚩