ऐसा धार्मिक ग्रंथों में भी वर्णन मिलता है।
वास्तव में बात यह है कि नीम की लकड़ी हिन्दू धर्म में घर में जलाना या पुजा पाठ हवन में जलाना मना हैं ।
आइए इसी से संबंधित एक कहानी सुनाता हूं जो कि आपको ले चलते हैं हिन्दू पंचांग अनुसार संवत् ९६८ में।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
👆 यह श्लोक तो आपने सुना ही होगा और खूब याद भी होगा।
भगवान नारायण ने धर्म की स्थापना करने के लिए अनेकों बार धरती पर अवतार लिए यह सत्य बात है और धार्मिक ग्रंथों में भी वर्णन किया गया है।
भगवान नारायण ने संवत् ९६८ में माघ मास शुक्ल पक्ष सप्तमी को माता साडू के घर कमल के पुष्प में अवतार लिया ।
*उत्तर पश्चिम भारत स्थित राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के आसींद के पास खारी नदी के तट पर गोठां गांव में रहने वाली दुखियारी प्रताड़ित साडू माता जी की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने अवतार लिया ।
बाल्यकाल से ही ननिहाल शिप्रा नदी के किनारे उज्जैन मध्यप्रदेश में रहे हैं।
*और मामी के चुभते हुए बोल के कारण अपने पुर्वजों के बारे में जानने की जिज्ञासा रखी और घर छोड़ चल पड़े।
*जब उन्हें पता चला कि हमारे पूर्वजों की बात केवल एक ही व्यक्ति बता सकते हैं वे है घर के "भाट" और पता चला कि उसका नाम छोचू भाट हैं।
छोचू भाट को संभालते हुए कामरू देश में चला गया और वहां पता चला कि उसे तो चार कामिनीयों ने बांटकर खा गयी।
जब उन कामिनीयों पर माया रुपी हंटर पड़ने लगे तो उन्होंने टुकड़े टुकड़े में वापस उगल दिया और एक पंसली जो अन्य कामिनी खा गयी वो पुनः प्राप्त नहीं हुई।
भगवान देवनारायण ने आनन फानन में कैर की लकड़ी की पंसली बनाकर छोचू भाट को जीवित करने का परचा दिया और भाट को खुशी खुशी ननिहाल में मां साडू के पास लाकर खूब आदर से स्वागत किया।
उसी समय माता साडू के मन में भय जागा कि यदि छोचू भाट हमारे पूर्वजों के दुश्मन और उनकी मौत की व्याख्या कर देंगे तो मेरा अतिप्रिय पुत्र देवनारायण उनसे लड़ने जरूर जाएगा और मेरे पुत्र का और नुक़सान होना मैं नहीं सह पाऊंगी इसलिए आज छोचू भाट को ही हीरा दासी के साथ मिलकर खाने में जहर घोल कर खिलाने का प्लान बनाया।
और भोजन पर विराजमान छोचू भाट और देवनारायण भगवान तभी हीरा दासी दो भोजन की थाली लाई उसमें से जहर वाली थाली छोचू भाट को दी और अच्छी थाली देवनारायण को दी तो भगवान अंतर्यामी है उन्हें तो पता ही था इसलिए उन्होंने थाली बदल भाई बनने की रस्म निभाई छोचू भाट की जहर वाली थाली भगवान ने ले ली और जहर को चंटी (सबसे छोटी) उंगली में धारण कर लिया।
भगवान देवनारायण जब भोजन कर घर से बाहर निकले तो नीम का पेड़ खड़ा था उसमें छोड़ दिया और उस दिन से यह नीम कड़वा हो गया।
नीम ने प्रार्थना करते हुए कहा कि प्रभु कलयुग में बिना स्वार्थ के लोग अपने पिता घर से बाहर निकाल दिया करते हैं तो मैं तो एक कड़वा पेड़ हो गया अब मेरा संरक्षण कौन करेगा।
तब प्रभु देवनारायण ने नीम को वचन दिया कि जाओ मैं वचन देता हूं कि जहां मेरी पूजा होगी वहां सबसे पहले और सबसे ऊपर यानी कि मेरे माथे पर आपका पत्ती चढ़ेगी और १२ माह में से एक माह के लिए तुम मीठा भी हो जाएगा।
इसलिए आज भी कड़वे पेड़ नीम के मीठे फल निंबोली होती हैं।
और आयुर्वेद में बहुत काम आता हैं।